अजमेर के जेएलएन अस्पताल को पिछले 50 दिनों में एक लाख ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध करवाए गए। अब सेना के इंजीनियरों का कहना है कि जो सिलेंडर 75 मिनट चलना चाहिए, वह लीकेज के कारण 45 मिनट ही काम में आया। अंदाजा लगाया जा सकता है कि एक लाख सिलेंडरों से ऑक्सीजन की कितनी बर्बादी हुई। यह स्थिति तो अकेले अजमेर के एक सरकारी अस्पताल की है। क्या मुख्यमंत्री अशोक गहलोत प्रदेशभर के अस्पतालों में बर्बाद हुई ऑक्सीजन की जांच करवाएंगे? सेना की कार्यवाही के बाद मेरे आरोप सही-विधायक भदेल।
अजमेर के जिला कलेक्टर प्रकाश राजपुरोहित को शाबाशी मिलनी चाहिए कि उन्होंने नसीराबाद स्थित सैन्य छावनी के इंजीनियरों को बुलाकर संभाग के सबसे बड़े अजमेर स्थित जेएलएन अस्पताल में ऑक्सीजन सिलेंडरों के लीकेज की जांच पड़ताल करवाई। 25 मई को सेना के इंजीनियरों ने अस्पताल पहुंचकर सिलेंडरों की जांच पड़ताल की तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। इंजीनियरों ने देखा कि जिन सिलेंडरों से अस्पताल की सेंट्रल पाइप लाइन जुड़ी है, वे सभी लीकेज हैं। इससे बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन बर्बाद हो रहा है। लीकेज को रोकने के लिए स्वास्थ्य कर्मियों ने जो टेप लगाए वो भी सही तरीके से नहीं लगाए गए। किसी सिलेंडर का वाल्व खराब था तो किसी सिलेंडर का नट ढीला था। इंजीनियरों का मानना रहा कि जो सिलेंडर 75 मिनट काम में आना चाहिए वह 45 मिनट में खत्म हो रहा है। सेना के इंजीनियरों ने तो अपना काम पूरा कर दिया, लेकिन सवाल उठता है कि कोरोना काल में जो ऑक्सीजन बर्बाद हुई, उसका जिम्मेदार कौन होगा? सरकारी आंकड़े बताते हैं कि अस्पताल में रोजाना औसतन 2200 ऑक्सीजन सिलेंडर सप्लाई हो रहे हैं। यह स्थिति पिछले 50 दिनों से निरंतर जारी है। यानी 50 दिनों में अस्पताल को एक लाख से भी ज्यादा ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध करवाए गए हैं। मात्र 50 दिनों में एक लाख सिलेंडर से बर्बाद हुई ऑक्सीजन का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऑक्सीजन के जानकारों के अनुसार एक सिलेंडर में 7 क्यूबिक मीटर ऑक्सीजन भरी जाती है। एक क्यूबिक मीटर का मतलब एक हजार लीटर ऑक्सीजन होता है। यानी एक सिलेंडर में 7 हजार लीटर ऑक्सीजन होती है। 2200 सिलेंडर की ऑक्सीजन मापी जाए तो एक करोड़ 54 लाख लीटर होती है। यह ऑक्सीजन तब बर्बाद हुई है, जब ऑक्सीजन के अभाव में जेएलएन अस्पताल के बाहर मरीज दम तोड़ रहे थे। यानी अस्पताल के अंदर ऑक्सीजन बर्बाद हो रही थी और बाहर ऑक्सीजन के अभाव में संक्रमित मरीज मर रहे थे। ऑक्सीजन के लीकेज या बर्बादी में अस्पताल के चिकित्सकों एवं स्वास्थ्य कर्मियों का कोई दोष नहीं है, क्योंकि चिकित्सकों का काम तो मरीज का इलाज करना है। ऑक्सीजन लीकेज की जिम्मेदारी सरकारी के तकनीशियनों की है। अब यदि सरकार ने अस्पताल में तकनीशियनों की नियुक्ति नहीं कर रखी है तो जेएलएन अस्पताल का प्रबंधन क्या कर सकता है? एमबीबीएस और एमडी की डिग्री लेने के बाद चिकित्सक ऑक्सीजन सिलेंडर के लीकेज को तो ठीक नहीं करेंगे। इतनी बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन की बर्बादी के लिए अस्पताल प्रशासन को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। यह जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। सवाल उठता है कि जिस प्रकार अजमेर में ऑक्सीजन सिलेंडरों के लीकेज का पता चलता, क्या उसी प्रकार प्रदेशभर के अस्पतालों की जांच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत करवाएंगे? सीएम गहलोत माने या नहीं, लेकिन यह बहुत ही गंभीर मामला है। ऑक्सीजन की कमी का सामना प्रदेशभर के अस्पतालों को करना पड़ा है। सेना के इंजीनियरों ने तो अकेले अजमेर के अस्पताल की जांच की है, लेकिन यदि प्रदेशभर के अस्पतालों की जांच करवाई जाए तो ऑक्सीजन की बर्बादी की सच्चाई सामने आ सकती है। सब जानते हैं कि अजमेर प्रदेश के चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा का गृह जिला है। जब चिकित्सा मंत्री के गृह जिले में ऑक्सीजन की बर्बादी की ऐसी स्थिति है तो अन्य जिलों का अंदाजा लगाया जा सकता है। सीएम गहलोत माने या नहीं, लेकिन बर्बाद हुई करोड़ों लीटर ऑक्सीजन से सैकड़ों लोगों की जान बचाई जा सकती थी। सीएम गहलोत को तत्काल प्रभाव से सरकारी अस्पतालों में ऑक्सीजन की बर्बादी को रोकना चाहिए। सीएम खुदा मान रहे हैं कि अभी कोरोना संक्रमण का खतरा टला नहीं है।मेरे आरोप सही निकले:26 मई को मीडिया कर्मियों से संवाद करते हुए अजमेर दक्षिण क्षेत्र की भाजपा विधायक श्रीमती अनिता भदेल ने कहा कि जेएलएन अस्पताल प्रशासन पर मैंने लापरवाही बरतने के जो आरोप लगाए थे वे सेना की कार्यवाही से सही साबित हुए हैं। इतनी बड़ी मात्रा में यदि ऑक्सीजन लीकेज हो रहा है तो इसके लिए अस्पताल प्रशासन ही जिम्मेदार है। भदेल ने कहा कि उनके आरोपों के बाद रेजीडेंट डॉक्टर लगातार मेरे विरुद्ध बयानबाजी कर रहे हैं, जबकि मैंने चिकित्सकों और चिकित्सा कर्मियों के विरुद्ध कोई बयान नहीं दिया। मैं अपने स्टैंड पर कायम हूं इसलिए चिकित्सकों से माफी मांगने की कोई बात ही नहीं है। मैंने जो भी आरोप लगाए वे किसी सार्वजनिक स्थल पर नहीं लगाए, मैंने अपनी बात अस्पताल के प्राचार्य डॉ. वीर बहादुर सिंह के कक्ष में कही। क्या एक जनप्रतिनिधि को अस्पताल प्रशासन के समक्ष लोगों की भावनाएं व्यक्त करने का अधिकार भी नहीं है? S.P.MITTAL BLOGGER (26-05-2021)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9602016852To Contact- 9829071511