सचिन पायलट के जयपुर आवास पर कांग्रेस विधायकों का जमावड़ा। पायलट के घर गया था पाकिस्तान नहीं-गुरदीप सिंह, भाजपा विधायक। सिंधिया-जितिन के मुकाबले में सचिन पायलट की राजनीतिक हैसियत में बहुत फर्क है। पायलट, सिंधिया की तरह राजस्थान में कांग्रेस सरकार गिराने की स्थिति में नहीं है और न ही जितिन की तरह राजनीतिक स्थिति कमजोर है। मध्यप्रदेश में वसुंधरा जैसी भाजपा नेता भी नहीं है।

10 जून को सचिन पायलट के जयपुर स्थित आवास पर कांग्रेस के विधायकों का जमावड़ा रहा। विधायकों की उपस्थिति को इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है कि पायलट ने अखबारों और न्यूज चैनलों पर बयान देकर अपनी नाराजगी जताई है। ताजा बयानों के माहौल में ही 10 जून को कांग्रेस विधायक राकेश पारीक, मुकेश भाकर, वेदप्रकाश सोलंकी, पीआर मीणा, राम निवास गवारिया, जीआर खटाणा आदि मौजूद रहे। पायलट के निवास पर कांग्रेस विधायकों की मौजूदगी पर राज्य सरकार की भी निगाह रही। इस बीच भाजपा विधायक गुरदीप सिंह ने भी 10 जून को पायलट से उनके निवास पर मुलाकात की। मुलाकात के बाद गुरदीप सिंह ने कहा कि वे पायलट से व्यक्तिगत कार्य से मिलने गए थे, वो पाकिस्तान नहीं गए, पायलट से मिलना कोई गुनाह नहीं है।राजनीति के पंडितों का मानना है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद के बाद अब सचिन पायलट पायलट भी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो सकते हैं। मीडिया रिपोर्टों में भी ऐसे ही कयास लगाए जा रहे हैं, लेकिन मेरा मानना है कि राजस्थान में कांग्रेस के असंतुष्ट नेता सचिन पायलट की राजनीतिक हैसियत सिंधिया और जितिन वाली नहीं है। 9 जून को कांग्रेस छोड़ने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री जितिन प्रसाद को भले ही भाजपा उत्तर प्रदेश का कद्दावर नेता बता रही हो, लेकिन सब जानते हैं कि मौजूदा समय में जितिन प्रसाद वार्ड के पार्षद भी नहीं है। यदि जितिन की राजनीतिक पकड़ होती तो यूपी में 430 में से कांग्रेस के मात्र 7 विधायक नहीं होते। भाजपा कुछ भी दावा करें, लेकिन अपने राजनीतिक वजूद को बचाए रखने के लिए जितिन भाजपा में शामिल हुए हैं। जितिन को भी पता है कि यूपी में कांग्रेस चौथे नम्बर की पार्टी है। जितिन चौथे नंबर की पार्टी को छोड़कर पहले नंबर वाली पार्टी में शामिल हो गए हैं। इससे पता लगाया जा सकता है कि किसे फायदा होगा। जबकि सचिन पायलट कांग्रेस में असंतुष्ट होने के बाद भी राजनीतिक दृष्टि से मजबूत स्थिति में हैं। राजस्थान में पायलट की मजबूत स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा सब कुछ छीन लेने के बाद भी पायलट को उन सभी 18 कांग्रेसी विधायकों का समर्थन प्राप्त है जो गत वर्ष दिल्ली गए थे। ऐसा नहीं कि गहलोत के समर्थक मंत्री रघु शर्मा, प्रताप सिंह खाचरियावास, सुभाष गर्ग, महेश जोशी आदि ने पायलट गुट में सेंधमारी नहीं की। लेकिन लाख कोशिश के बाद भी पायलट का गुट एकजुट रहा है। यह तब है कि जब सीएम गहलोत ने अपने समर्थक विधायकों के लिए धन धान्य की मांग बहतर रखी है। यदि कोई विधायक पायलट को छोड़कर गहलोत गुट में आ जाए तो वह रातों रात हर दृष्टि से मालामाल हो जाए, लेकिन वहीं यह भी सही है कि 18 विधायकों का पक्का समर्थन होने के बाद भी सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह कांग्रेस सरकार गिराने की स्थिति में नहीं है। असल में युवा पायलट का मुकाबला राजनीति के माहिर खिलाड़ी अशोक गहलोत से है। गहलोत भले ही पायलट गुट को तोडऩे में सफल नहीं हुए हों, लेकिन उन्होंने 200 में से 100 विधायकों का समर्थन बनाए रखा है। यदि गहलोत के पास बहुमत नहीं होता तो गत वर्ष अगस्त में ही 18 विधायक कांग्रेस विधायक के तौर पर दिल्ली से वापस नहीं आते। चूंकि मध्यप्रदेश में सिंधिया कांग्रेस की सरकार गिराने की स्थिति में थे, इसलिए भाजपा में शामिल हो गए। इस हकीकत को पायलट भी समझते हैं, इसलिए फिलहाल कांग्रेस में ही रह कर अपने वजूद के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जो लोग पायलट की तुलना सिंधिया से कर रहे हैं, उन्हें यह भी समझना चाहिए कि मध्यप्रदेश में वसुंधरा राजे जैसी भाजपा नेता नहीं है। गत वर्ष कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार को गिराने में मध्य प्रदेश के सभी भाजपा नेता एकजुट थे, लेकिन राजस्थान में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की राजनीतिक गतिविधियां भाजपा की एकता की पोल खोल रही हैं। जन्मदिन के बहाने गिर्राजी में सांसदों, विधायकों को एकत्रित करने, 20 विधायकों द्वारा प्रतिपक्ष के नेता को पत्र लिखने और कोरोना काल में वसुंधरा रसोई चलाने जैसे कृत्य दर्शाते हैं कि राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार चलती रहेगी। चूंकि अब पायलट भी राजनीति की पैंतरेबाजी समझने लगे हैं, इसलिए कांग्रेस में रह कर ही विरोध के स्वर गूंजते हैं। पायलट को पता है कि 5 में से ढाई वर्ष गुजर जाएंगे। दो वर्ष बाद ही राजस्थान के गुर्जर बाहुल्य इलाकों में कांग्रेस को सचिन पायलट की ही जरूरत होगी। अशोक गहलोत माने या नहीं कि कांग्रेस का आम कार्यकर्ता मानता है कि भाजपा शासन में सचिन पायलट ने जो संघर्ष किया उसी की बदौलत राजस्थान में 2018 में कांग्रेस को बहुमत मिला है। यह बात अलग है कि दिल्ली में बैठे गांधी परिवार ने ऐन मौके पर अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बना दिया। S.P.MITTAL BLOGGER (10-06-2021)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9602016852To Contact- 9829071511

Print Friendly, PDF & Email

You may also like...