… पर 50 प्रतिशत से ज्यादा न हो आरक्षण। सामान्य वर्ग की जातियों के अनेक परिवारों की स्थिति अनुसूचित जातियों से भी बदत्तर। लोकतांत्रिक व्यवस्था में आरक्षण खत्म या आर्थिक आधार पर करना अब संभव नहीं।
राज्य सरकारें अपने यहां सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ी जातियों को आरक्षण की ओबीसी सूची में शामिल कर सकें, इसके लिए 9 अगस्त को लोकसभा में एक बिल रखा गया। हालांकि यह बिल सत्तारूढ़ भाजपा ने रखा, लेकिन इस पर सभी विपक्षी दलों ने भी सहमति जताई है। अब तक शेष पिछड़ी जातियों को ओबीसी की सूची में शामिल करने का अधिकार सिर्फ केन्द्र सरकार को ही था। इस बिल के स्वीकृत होने के बाद राज्य सरकारें भी अपने स्तर पर पिछड़ी जातियों को ओबीसी की सूची में शामिल कर सकेंगी। सब जानते हैं कि देश में सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है। इसमें से 27 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी के लिए आरक्षित है। जानकारों के अनुसार देश में अभी भी 5 हजार जातियां ऐसी हैं जो सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ी हैं। अब ऐसी जातियों को भी ओबीसी वर्ग में शामिल होकर आरक्षण का लाभ मिलेगा। स्वाभाविक हैं कि ओबीसी वर्ग का दायरा बढ़ जाएगा। उदाहरण के लिए पहले जहां एक हजार आवेदकों को 27 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिलता था, वहां अब दो हजार आवेदक होंगे। अब हरियाणा में जाट, गुजरात में पटेल, महाराष्ट्र में मराठा और कर्नाटक में लिंगायत जातियों के परिवारों को भी ओबीसी वर्ग में आरक्षण मिल सकेगा। राजस्थान के संदर्भ में यह खास तौर से उल्लेखनीय है कि जाट समुदाय को पहले ही ओबीसी वर्ग में शामिल किया जा चुका है। राजस्थान कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा के पुत्र, पुत्रवधू तथा पुत्र के साले और साली आरएएस में चयन भी ओबीसी वर्ग के आरक्षण से संभव हुआ है। यह अच्छी बात है कि शेष पिछड़ी जातियों को भी आरक्षण का लाभ मिले, लेकिन यह भी सुनिश्चित किया जाए कि आरक्षण 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होना चाहिए। सामान्य वर्ग की जातियों के ऐसे अनेक परिवार हैं, जिनकी स्थिति अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों से भी बदतर है। अनुसूचित जाति वर्ग के अधिकांश परिवार के एक न एक सदस्य को सरकारी नौकरी मिल गई है, लेकिन सामान्य वर्ग के परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी बेरोजगार और गरीब ही बने हुए हैं। ऐसे परिवारों का दोष सिर्फ यही है कि वे सामान्य वर्ग में पैदा हुए हैं। सामान्य वर्ग में जन्म लेने के कारण अनेक सरकारी सुविधाओं से भी वंचित हैं। कोई सरकार यदि सामान्य वर्ग के परिवारों की आर्थिक स्थिति का सर्वे करवाए तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आएंगे। लोकतांत्रिक व्यवस्था में अब देश से आरक्षण खत्म या आर्थिक आधार पर करना संभव नहीं है। हर राजनीतिक दल को सत्ता में बने रहना है, इसलिए कोई भी अपना वोट खराब नहीं होने देगा। राजनीतिक दलों की ऐसी सोच में भाजपा भी शामिल हैं। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फिलहाल इस बात की शाबाशी मिलनी चाहिए कि दबी कुचली जातियों को भी ओबीसी वर्ग में शामिल होने का अवसर दिया है। यह एक ऐतिहासिक फैसला है। मोदी सरकार ने सामान्य वर्ग के लोगों के लिए आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण देने का जो कानून बनाया है, इसका लाभ अभी तक जमीन पर नहीं मिला है। सामान्य वर्ग के आरक्षण नियमों को सरल किए जाने की जरूरत है। S.P.MITTAL BLOGGER (10-08-2021)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9799123137To Contact- 9829071511