प्रति वर्ष 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस मनाने का निर्णय एकदम सही, क्योंकि शांति के जिस मकसद से विभाजन हुआ, वह सफल नहीं रहा। 75 वर्ष पाकिस्तान से ही सबसे ज्यादा खतरा। भारत में पाकिस्तान समर्थक भी।
14 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कहा कि अब प्रति वर्ष 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के तौर पर मनाया जाएगा। देश के बंटवारे के दर्द को कभी भुलाया नहीं जा सकता। नफरत और हिंसा की वजह से हमारे लाखों बहनों और भाईयों को विस्थापित होना पड़ा और जान तक गवानी पड़ी। सब जानते हैं कि पिछले 75 वर्षों से हम 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के तौर पर मनाते आ रहे हैं, लेकिन यह पहला अवसर है जब 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के तौर पर मनाने का निर्णय लिया गया है। सवाल उठता है कि जिस शांति के मकसद से देश का विभाजन स्वीकार किया गया क्या वह मकसद पूरा हुआ? विभाजन के पक्षधर खास कर मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा था कि यदि विभाजन हो जाएगा तो पाकिस्तान में मुसलमान शांति से रह सकेंगे और भारत में भी शांति रहेंगी। लेकिन जिन्ना का यह कथन या वायदा उसी समय झूठा साबित हो गया, जब कराची लाहौर आदि से आने वाले हिंदुओं का कत्लेआम हुआ। विभाजन के पक्षधर किसी ने भी हिन्दुओं के कत्लेआम को रुकवाने की कोशिश नहीं की। आज कोई भी यह बताने की स्थिति में नहीं है कि विभाजन के समय हिंदुओं का कत्लेआम क्यों हुआ? उम्मीद जताई गई थी कि विभाजन के बाद शेष भारत में हिन्दू समुदाय के लोग शांति के साथ रह सकेंगे, लेकिन क्या आज ऐसा है? सब जानते हैं कि जिस उद्देश्य से देश का विभाजन स्वीकारा, वह विपुल रहा। भारत के कई प्रांत ऐसे हैं जो विभाजन के कगार पर खड़े हैं। भले ही पाकिस्तान से हिन्दुओं को भगा दिया गया हो, लेकिन भारत में मुस्लिम समुदाय के लोग हिन्दुओं के साथ पूरे अधिकार के साथ रह रहे हैं। किसी भी मुसलमान के साथ भेदभाव नहीं होता। धर्म के आधार पर भले ही पाकिस्तान बन गया हो, लेकिन शेष भारत में कभी मुसलमानों की नागरिकता पर सवाल नहीं उठाया गया, जबकि पाकिस्तान में हिन्दुओं की स्थिति सबके सामने हैं। पाकिस्तान से धर्म के आधार पर प्रताड़ित होकर आए हिंदुओं को भारत की नागरिकता देने पर भी एतराज होता है। पाकिस्तान में भले ही हिन्दुओं के मंदिर तोड़े जा रहे हों, लेकिन शेष भारत में मुस्लिम समुदाय की दरगाहों पर बड़ी संख्या में हिंदू समुदाय के लोग जियारत के लिए आते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण अजमेर स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह है। ख्वाजा साहब की दरगाह को साम्प्रदायिक सौहार्द का प्रतीक माना जाता है। पाकिस्तान एक मुस्लिम राष्ट्र है, लेकिन पाकिस्तान और भारत में रहने वाले मुसलमान की स्थिति को देखा जा सकता है। भारत में रहने वाला मुसलमान अपेक्षाकृत समृद्ध है, जबकि पाकिस्तान के मुसलमान को अभावों का सामना करना पड़ रहा है। शेष भारत का आम मुसलमान मानता है कि वह हिन्दू समुदाय के साथ सुकून से रह रहा है। एक हिन्दू परिवारों के 5-10 मुस्लिम परिवारों को रहने में कोई खतरा नहीं है, जबकि ऐसी भावना पाकिस्तान में नहीं देखी जाती। अब जब पड़ोसी देश अफगानिस्तान पर कट्टरपंथी सोच वाले तालिबान का कब्जा हो गया है, तब भारत में रहने वाले मुसलमानों को और समझदारी तथा सतर्कता दिखने की जरूरत है। तालिबानी लड़ाके अफगानिस्तान में हिन्दू या ईसाई को नहीं मार रहे, बल्कि मुसलमानों का ही कत्लेआम कर रहे हैं। क्या भारत में रहने वाले मुसलमान तालिबानी सोच के साथ रह सकते हैं? इस सवाल पर गहन विचार विमर्श की जरूरत है। S.P.MITTAL BLOGGER (14-08-2021)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9799123137To Contact- 9829071511