तो अपनी दादी श्रीमती इंदिरा गांधी की नीतियों पर अमल क्यों नहीं कर रहे राहुल गांधी। इंदिरा जी ने पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए बांग्लादेश बनवाया तो खालिस्तान की मांग को सख्ती के साथ दबाया।
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे राहुल गांधी भारत की दमदार प्रधानमंत्री रही श्रीमती इंदिरा गांधी के पोते हैं। इसलिए 31 अक्टूबर को पुण्य तिथि पर राहुल गांधी ने ट्वीट किया-मेरी दादी अंतिम घड़ी तक निडरता से देश सेवा में लगी रहीं, उनका जीवन हमारे लिए प्रेरणा स्त्रोत है। नारी शक्ति की बेहतरीन उदाहरण श्रीमती इंदिरा गांधी जी के बलिदान दिवस पर विनम्र श्रद्धांजलि। राहुल गांधी ने अपनी दादी के बारे में लिखा उस पर किसी को भी एतराज नहीं है, लेकिन सवाल उठता है कि क्या राहुल गांधी स्वयं अपनी दादी जी की नीतियों पर अमल कर रहे हैं? सब जानते हैं कि पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए इंदिरा गांधी बांग्लादेश को अलग करवाया। युद्ध में पाकिस्तान की सेना को उसकी औकात बता दी। यह भारतीय फौज का पराक्रम ही था कि पाकिस्तान के एक लाख सैनिकों को बंदी बना लिया गया। इसी प्रकार पंजाब में खालिस्तान की मांग करने वालों को भी इंदिरा जी ने सख्ती से दबाया। तब उन्होंने अपनी जान की परवाह भी नहीं की। चाहे पाकिस्तान के दो टुकड़े करना हो या फिर खालिस्तान की आवाज को कुचलना हो, सभी में इंदिरा जी ने देश की एकता और अखंडता को सर्वोपरि माना। इसलिए देशवासियों ने इंदिरा जी को आयरन लेडी की संज्ञा दी। इंदिरा गांधी की निडरता पर राहुल गांधी गर्व कर सकते हैं। लेकिन राहुल गांधी कौन सी नीति पर अमल कर रहे हैं? जिस खालिस्तान की आवाज को दबाने के लिए इंदिरा गांधी को बलिदान देना पड़ा, उसकी खालिस्तान की आवाज एक बार फिर पंजाब में उठने लगी है। किसान आंदोलन की आड़ में भी खालिस्तान के समर्थक सक्रिय हैं। खुफिया एजेंसियों के पास इसके सबूत भी हैं। लेकिन राहुल गांधी ने खालिस्तान के समर्थकों की कभी भी निंदा नहीं की। उल्टे किसान आंदोलन को लेकर केंद्र सरकार की आलोचना की। विपक्ष का नेता होने के कारण राहुल गांधी को सरकार की आलोचना करने का अधिकार हैं, लेकिन इंदिरा जी के पोते को यह भी देखना चाहिए कि आंदोलन में कौन से तत्व सक्रिय हैं। किसी आंदोलन की आड़ में खालिस्तान की आवाज मजबूत होती हैं तो इंदिरा जी की आत्मा क्या कहेगी इसका जवाब राहुल गांधी को ही देना चाहिए। गत वर्ष नागरिकता कानून में संशोधन किया गया तो ऐसे तत्व सक्रिय हुए जो पाकिस्तान के समर्थक माने गए। राहुल गांधी ने ऐसे तत्वों की भी हौसला अफजाई की। सवाल उठता है कि यदि धर्म के आधार पर पाकिस्तान से प्रताड़ित होकर आ रहे हिन्दू, सिख, जैन, ईसाई और पारसी समुदाय के लोगों को भारत की नागरिकता दी जा रही है तो फिर एतराज क्यों किया जा रहा है। श्रीमती इंदिरा गांधी होती तो संशोधित कानून का पूरा समर्थन करतीं। इंदिरा जी कभी भी ऐसा काम नहीं करती जिसकी वजह से पाकिस्तान के समर्थकों को मजबूत मिलती हो। जहां तक देश में हिन्दू मुस्लिम एकता का सवाल है तो इस पर भी दो राय नहीं हो सकती है। भारत की तरक्की हिन्दू मुस्लिम एकता में ही निहित है। भारत उन देशों में से हैं जहां सूफीवाद का अपना महत्व है। कोई कितनी भी कट्टरता फैला ले, लेकिन देश की प्रमुख दरगाहों पर बड़ी संख्या में हिन्दू समुदाय के लोग जाते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है। यहां के खादिम समुदाय के लोग भी मानते हैं कि सामान्य दिनों में 60 प्रतिशत जियारत हिन्दू समुदाय के होते हैं। ख्वाजा साहब की दरगाह को देशभर में हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक माना जाता है। दुनिया में सबसे ज्यादा मुसलमान भारत में रह रहे है। भारत के मुसलमान न केवल समृद्ध हुए हैं बल्कि सरकारी योजनाओं का लाभ भी बिना भेदभाव के ले रहे हैं। ऐसे में राहुल गांधी को भी चाहिए कि वे अपनी दादी की नीतियों का अनुसरण करें। S.P.MITTAL BLOGGER (31-10-2021)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9799123137To Contact- 9829071511