कृषि सुधार कानून वापस लेने की घोषणा के बाद भी दिल्ली की सीमाओं से जाम नहीं हट रहा। आखिर देश में यह कौन सा लोकतंत्र है?

संसद का शीतकालीन सत्र 29 नवंबर से शुरू हो रहा है। इस सत्र में ही तीन कृषि सुधार कानूनों को रद्द करने के लिए वैधानिक प्रक्रिया अपनाई जाएगी। इन कानूनों को रद्द करने की घोषणा 19 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं की। लेकिन प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद भी दिल्ली की सीमाओं पर से जाम नहीं हटाया जा रहा है। संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े कुछ प्रतिनिधियों ने अब न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी देने जैसी मांग रख दी है तथा सरकार से समझौता होने की मांग भी की जा रही है। सवाल उठता है कि जिस मांग को लेकर पिछले एक वर्ष से आंदोलन हो रहा था, वह मांग पूरी हो गई है, तब किस बात का समझौता? समझौता तब होता है, जब कोई मांग पूरा करने का सिर्फ आश्वासन दिया जाए। प्रधानमंत्री ने तो तीनों कृषि सुधार कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी है। क्या आंदोलनकारियों को प्रधानमंत्री की घोषणा पर भरोसा नहीं है? इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने तीनों कानूनों पर रोक लगाते हुए आंदोलन को समाप्त करने के निर्देश दिए थे, लेकिन तब भी दिल्ली की सीमाओं से जाम को नहीं हटाया गया। सवाल उठता है कि आखिर आंदोलनकारियों को किस पर भरोसा है? सुप्रीम कोर्ट के निर्देश नहीं मानेंगे और न ही प्रधानमंत्री की घोषणा पर भरोसा करेंगे? आखिर देश में यह कैसा लोकतंत्र है? लोकतंत्र में तो यही माना जाता है कि जिस दल को जनता ने सत्ता पर बैठाया है, वही सरकार चलाएगा। सब जानते हैं कि कृषि सुधारों के प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों में मंजूर हुए थे। लेकिन कुछ किसानों और राजनीतिक दलों की जिद के आगे सरकार को झुकना पड़ा और संसद से स्वीकृत कानूनों को रद्द करने की घोषणा करनी पड़ी। क्या यह लोकतंत्र को डंडे के बाल कुचलना नहीं है? यदि कोई सरकार जन विरोधी कानून बनाती है तो उसे चुनाव में हराया जा सकता है, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ लोगों ने लोकतंत्र को बंधक बना लिया है और अब निर्वाचित सरकार की नहीं बल्कि लोकतंत्र को बंधक बनाने वालों की चलेगी सब जानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने माफी मांगते हुए कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की, इन्हीं प्रधानमंत्री की वजह से हमारे कश्मीर से अनुच्छेद 370 को समाप्त करने, अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बनने जैसे महत्त्वपूर्ण निर्णय हुए हैं। देश के अधिकांश लोक इन निर्णयों से खुश हैं। भले ही कुछ राजनीतिक दलों के नेताओं को नरेंद्र मोदी से व्यक्तिगत नाराजगी हो, लेकिन देश के अधिकांश लोग मानते हैं कि नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री रहते हुए देश को आंतरिक दृष्टि से तो मजबूत किया ही है, साथ ही अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की धाक जमाई है। कुछ लोग भले ही मोदी को गालियां बके, लेकिन अधिकांश लोग मानते हैं कि मोदी ने भारत की सनातन संस्कृति को और मजबूत किया है। यह सब काम लोकतांत्रिक व्यवस्था में रह कर किया है। सबको पता है कि लोकतंत्र विहीन तानाशाह देश चीन किस प्रकार सीमाओं पर भारत की घेराबंदी कर रहा है। चीन में विरोध की कोई गुंजाइश नहीं है। सरकार के आदेशों की अवेलना करने वालों को जेल में डाल दिया जाता है या फिर गोली मार दी जाती है। ऐसे चीन से भी नरेंद्र मोदी को लोकतांत्रिक दायरे में रह कर निपटना पड़ रहा है। जो लोक दिल्ली की सीमाओं को जाम करके बैठे हैं उन्हें एक बार देश की सीमाओं पर तानाशाह चीन की हरकतों को भी देखना चाहिए। आंदोलनकारी यह भी समझें कि कश्मीर में किस प्रकार टारगेट किलिंग हो रही है। 
S.P.MITTAL BLOGGER (20-11-2021)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9799123137To Contact- 9829071511

Print Friendly, PDF & Email

You may also like...