यदि अशोक गहलोत सरकार के आदेशों की क्रियान्विति ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ हो जाए तो राजस्थान में हर किस्म की भूमि पर बने मकानों-दुकानों के पट्टे जारी हो सकते हैं। 31 मार्च 2023 तक चलने वाले अभियान में पट्टे जारी करने का काम और सरल किया। 21 अप्रैल को सरकार ने नए दिशा निर्देश जारी किए हैं।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के निर्देश पर नगरीय विकास आवासन एवं स्वायत्त शासन विभाग के प्रमुख शासन सचिव कुंजीलाल मीणा और शासन सचिव डॉ. जोगाराम ने 21 अप्रैल को कृषि भूमि, वन भूमि, सरकारी भूमि आदि किस्मों की जमीनों पर बने मकानों और बसी हुई कॉलोनियों तथा धारा 69ए के संबंध में तीन स्पष्टीकरण और चार पांच नए आदेश जारी किए हैं। अब इन स्पष्टीकरण और आदेशों की पालना में ही प्रशासन शहरों एवं गांव के संग अभियान में पट्टे जारी होंगे। सरकार ने अभियान को 31 मार्च 2023 तक बढ़ा दिया है पिछले लंबे समय से इन स्पष्टीकरणों का इंतजार किया जा रहा था। इसलिए प्रदेश भर में अभियान के कैम्प भी नहीं लग रहे थे। लेकिन 21 अप्रैल के आदेशों के बाद अब फिर से कैंप लगेंगे और लोगों को राहत मिल सकेगी। सरकार ने पट्टे जारी करने का काम और सरल कर दिया है। यदि इन आदेशों के अनुरूप ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ काम होता है तो राजस्थान में हर किस्म की भूमि पर बने मकानों, दुकानों के पट्टे जारी हो सकते हैं। सरकार ने अधिकारियों की सभी बहाने बाजी पर स्पष्ट निर्देश जारी कर दिए हैं। जिन प्रमुख शासन सचिव कुंजीलाल मीणा और शासन सचिव डॉ. जोगाराम ने यह आदेश जारी किए हैं उनकी भी यह जिम्मेदारी है कि सरकार में ईमानदारी के साथ काम हो। यदि कोई व्यक्ति काम न होने की शिकायत मीणा या जोगाराम से करता है तो इन दोनों अधिकारियों को तत्परता दिखाने की जरूरत है। ऐसा न हो कि इतनी सरलीकरण के बाद भी भ्रष्टाचार कायम रहे। 21 अप्रैल को सरकार ने जो स्पष्टीकरण और आदेश जारी किए हैं, उन सभी को मेरे फेसबुक पेज www.facebook.com/SPMittalblog पर देखा जा सकता है। सरकार ने जो आदेश जारी किए हैं उसके अनुसार स्थानीय निकायों के योजना क्षेत्र से बाहर पेराफेरी में कृषि भूमि पर बने मकान, अथवा बसी आवासीय कॉलोनी के पट्टे जारी हो सके। यदि किसी कॉलोनी में तीस प्रतिशत सुविधा क्षेत्र वाली भूमि नहीं बची है तो पड़ौसी की भूमि का शामिल कर पट्टे जारी किए जा सकते हैं। सरकार के इस स्पष्ट आदेश के बाद अब अधिकारियों के पास कृषि भूमि पर बने मकानों अथवा दुकानों के पट्टे जारी नहीं करने का कोई बहाना नहीं बचा है। इतना ही नहीं योजना के लिए अधिग्रहण की गई भूमि पर भी बने मकानों अथवा भूखंडों के पट्टे जारी हो सकते हैं। सरकार ने स्पष्ट किया है कि योजना क्षेत्र की जिस भूमि पर अभी भी खातेदार का कब्जा है वह खातेदार अपने वैधानिक दस्तावेज दिखाकर पट्टे जारी करवा सकता है। भले ही भूमिका का मुआवजा कोर्ट में जमा करा दिया हो। यानी अवाप्ति के बाद मुआवजा जमा होने के बाद भी कब्जे के आधार पर खातेदार को पट्टा जारी हो सकता है। यह आदेश इतना स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार की कोई गुंजाइश नहीं है। इन्हीं आदेशों में वन भूमि पर बने मकानों के संबंध में भी कहा गया है। राजस्व रिकॉर्ड में यदि वन विभाग की भूमि दर्ज है और उस पर लंबे समय से आवास बना हुआ है तो कलेक्टर के माध्यम से वन विभाग को अन्यत्र भूमि दी जाकर कब्जाधारी को पट्टा जारी करने के आदेश दिए गए हैं। यानी अब वन भूमि पर किया गया कब्जा भी वैध हो जाएगा। अवाप्त भूमि मंदिर बना हुआ है और मंदिर परिसर में कोई व्यक्ति रह रहा है तो शपथ पत्र के आधार पर संबंधित भूमि का पट्टा जारी हो सकता है। इसी प्रकार राजस्व रिकॉर्ड में भूमि को सिवायचक दर्ज किया है, लेकिन उस पर मकान बना हुआ है तो भी वैधानिक दस्तावेज प्रस्तुत कर पट्टा जारी किया जा सकता है। 21 अप्रैल को जारी आदेशों में आवाप्तशुद्ध भूमि पर पट्टे जारी करने के काम को बहुत सरल कर दिया है। यह कहा जा सकता है कि अधिग्रहण के बाद जिस भूमि का कब्जा ले लिया गया है सिर्फ उसी पर पट्टा जारी नहीं हो सकता। लेकिन यदि खातेदार का कब्जा ही है ऐसी अवाप्ति की कार्यवाही भी निष्प्रभावी हो सकती है। कुछ लोग इन आदेशों को गहलोत सरकार का चुनावी आदेश मान सकते हैं। लेकिन इससे कृषि, सरकारी, अवाप्त शुद्ध सभी किस्म की भूमि पर बने मकानों अथवा कब्जे पर पट्टे जारी हो सकते हैं देखना होगा कि सरकार के इन आदेशों की कितनी ईमानदारी के साथ पालना होती है। सरकार ने अपनी ओर से रिश्वत मांगने की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी है। यानी संबंधित अधिकारियों को रिश्वत के बिना भूखंडों के पट्टे जारी करने ही होंगे। अब कोई भी अधिकारी किसी भी प्रकार की अड़ंगेबाजी नहीं कर सकता है। अच्छा हो कि सरकार इन आदेशों की क्रियान्विति पर भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की भी नजर रहे। इतने स्पष्ट आदेश के बाद भी यदि कोई अधिकारी पट्टे वाली फाइल को रोकता है तो उस पर तत्काल कार्यवाही होनी चाहिए। एससीबी सिर्फ रिश्वत मांगने पर सक्रिय न हो, बल्कि फाइल रोकने पर भी कार्यवाही करे, क्योंकि अधिकारी जब फाइल रोकता है तो संबंधित व्यक्ति मजबूरी में रिश्वत देता है। यदि फाइल का निपटारा एक दो दिन में हो जाए तो फिर रिश्वत देने की नहीं पड़ेगी।
S.P.MITTAL BLOGGER (23-04-2022)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9929383123To Contact- 9829071511