राजस्थान में दो जैन संतों की सड़क दुर्घटना में दर्दनाक मौत के बाद क्या सख्त परंपराओं में बदलाव पर विचार किया जा सकता है? 50 डिग्री तापमान में नंगे पैर पैदल विहार करना बहुत कठिन है। आचार्य तुलसी के तेरापंथ ने बदलाव की पहल तो की है।
21 मई को राजस्थान के पाली के निकट श्वेतांबर समाज से जुड़े तपागच्छ पद्धति वाले दो जैन संत चैतन्य तिलक विजय (36) और चरण तिलक विजय (56) की दर्दनाक मौत हो गई। जबकि तीसरे जैन मुनि शाश्वत तिलक विजय घायल हो गए। ये तीनों मुनि पाली से जोधपुर की ओर जा रहे थे कि तभी मोगड़ा के निकट एक ट्रक की चपेट में आ गए। तीनों जैन संत सड़क के किनारे चल कर अपना सफर तय कर रहे थे, लेकिन लेकिन ट्रक चालक की लापरवाही के कारण हादसा हो गया। यह सही है कि जैन संत दिगंबर समाज के हों या श्वेताबंर। दोनों ही प्रमुख समाजों के संत कठिन परंपराओं का निर्वहन करते हैं। इनमें से एक पैदल विहार भी है। यानी संत को जब एक स्थान से दूसरे स्थान जाना होगा, तब वे पैदल ही अपना सफर तय करेंगे। गर्मी का तापमान चाहे 50 डिग्री हो या सर्दी का माइनस। हर मौसम में पैदल ही चलना पड़ता है। जैन धर्म के साधु संतों के लिए कुछ ज्यादा सख्त परंपराएं हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि धर्म की पताका फहराने में जैन साधु संतों की महत्वपूर्ण भूमिका है। हर श्रद्धालु चाहता है कि जैन साधु संतों का सानिध्य ज्यादा से ज्यादा मिले। यदि एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचने के लिए मोटर वाहन का उपयोग किया जाए तो जैन संतों के प्रवचन भी ज्यादा स्थानों पर हो सकते हैं तथा सड़क दुर्घटनाओं से भी बचा जा सकता है। कई बार बुजुर्ग साधु संतों के पैर में दर्द और सूजन के बाद उन्हें पैदल चलने की परंपरा का निर्वहन करना पड़ता है। जैन संत किसी चिकित्सा पद्धति से भी परहेज करते हैं। जो परंपराएं चली आ रही है उन्हीं के तहत बीमार संतों का इलाज होता है। असल में ऐसी धार्मिक परंपराएं और नियम जैन समाज में तपस्या और त्याग से जुड़े हैं। परंपराओं और नियमों में बदलाव के लिए जैन समाज का ेही पहल करनी होगी। यदि कोई संत ज्यादा समय तक जीवित रहेगा तो धर्म का प्रचार भी ज्यादा समय तक होगा। साधु संतों के महत्व को देखते हुए ही श्वेतांबर समाज के प्रमुख संत आचार्य तुलसी ने तेरापंथ की स्थापना कर बदलाव के प्रयास भी किए। आचार्य तुलसी ने स्वयं भी विदेश यात्राएं की। तेरापंथ से जुड़े साधु संत मोटर वाहन का उपयोग जरुरत होने पर करते हैं। श्वेताम्बर समाज के खतरगछ के जैन संत चंद्रप्रभ महाराज और ललित प्रभ महाराज मोबाइल, कैमरा आदि इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल भी करने लगे हैं। इससे वे अपना संदेश और विचार अधिक लोगों तक पहुंचा सकते हैं। दिवंगत रूप मुनि महाराज ने भी सार्वजनिक तौर पर मोटर वाहनों का उपयोग किया ताकि एक स्थान से दूसरे स्थान पर जल्द और सुरक्षित पहुंचा जा सके। जैन समाज के कई संप्रदायों में बीमार संतों के लिए व्हील चेयर की छूट दी गई है। लेकिन फिर भी बड़े स्तर पर बदलाव को लेकर विमर्श की गुंजाइश है। बदलाव का उद्देश्य जैन साधु संतों के जीवन को सुरक्षित रखना है। हालांकि जब साधु संत सड़क पर चलते हैं, तब समाज के श्रद्धालु भी होते हैं जो संतों का ख्याल रखते हैं। श्वेतांबर समाज के मुकाबले दिगंबर समाज के साधु संतों का पैदल विहार ज्यादा कठिन होता है। श्वेतांबर समाज के अनेक साधु संतों ने बदलाव की पहल की है, लेकिन दिगंबर समाज के साधु संतों की परंपराएं अभी भी बेहद कठिन बनी है। पाली में दो जैन संतों की दर्दनाक मौत के संदर्भ में परंपराओं में बदलाव के लिए पहल की जा सकती है।
S.P.MITTAL BLOGGER (22-05-2022)
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