1000 की बटालियन में जब 700 सैनिक अग्निपथ वाले होंगे, तब यह विरोध क्यों? किसान आंदोलन में मंडियों का मुद्दा बनाने वाले अब एमएसपी पर अनाज क्यों नहीं बेच रहे? सीएए के समय जो माहौल खड़ा किया, वहीं माहौल अब बनाया जा रहा है। ऐसी ताकतें सक्रिय जो देश को मजबूत नहीं होने देना चाहतीं।

भारतीय सेना की एक हजार सैनिकों की क्षमता वाली बटालियन के 700 सैनिकों का चयन अग्निपथ वाले युवाओं में से ही होगा। सैनिकों का यह चयन मौजूदा भर्ती व्यवस्था से तीन गुना ज्यादा है। यानी अभी मौजूदा भर्ती व्यवस्था में से 1000 सैनिकों का चयन होता है तो अग्निपथ से 3000 सैनिकों का चयन होगा। सेना में युवाओं के तीन अवसर बढ़ने के बाद भी अग्निपथ योजना का विरोध हो रहा है। देखा जाए तो इस विरोध को करवाया जा रहा है। देश में ऐसी ताकतें सक्रिय हैं जो देश को मजबूत देखना नहीं चाहतीं। अग्निपथ योजना को समझे बिना ही देश में हिंसक आंदोलन करवाया जा रहा है। गैर भाजपा शासित राज्यों में ट्रेनों को क्षतिग्रस्त किया जा रहा है। इससे षडय़ंत्रकारियों की मंशा को समझा जा रहा है। जो राजनीतिक दल लोकसभा के चुनाव में नरेंद्र मोदी को हराने में विफल रहे, वो सब एक होकर युवाओं को भड़काने में लगे हुए हैं। असल में यह अग्निपथ योजना का विरोध नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध है। कुछ राजनीतिक दल तो इस बात से नाराज है कि भ्रष्टाचार के मामलों में उनके पदाधिकारियों के विरुद्ध जांच हो रही है। तो क्या राजनेता बन जाने के बाद भ्रष्टाचार करने की छूट मिल जाती है? जिस नेता ने भ्रष्टाचार किया है उसे सजा तो मिलनी ही चाहिए। संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के समय भी यह भ्रम फैलाया गया कि इस कानून से देश में रह रहे मुसलमानों की नागरिकता छीन जाएगी। आज दो साल गुजर जाने के बाद एक भी मुसलमान की नागरिकता नहीं छीनी है। असल में सीएए कानून किसी की नागरिकता छीनने के लिए नहीं है, बल्कि पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धर्म के आधार पर प्रताड़ित हो रहे सिक्ख, हिन्दू, ईसाई, बौद्ध और पारसी समुदाय के लोगों को नागरिकता देने के लिए ही नागरिकता कानून में संशोधन किया गया है। लेकिन फिर भी देश विरोधी ताकतें सक्रिय हुई और माहौल खराब करने का प्रयास किया गया। तीन कृषि कानूनों के समय भी किसान आंदोलन के दौरान न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को प्रमुख मुद्दा बनाया गया। कहा गया कि नए कानून से एमएसपी व्यवस्था बंद हो जाएगी। आरोप लगाया गया कि इससे कृषि उपज मंडियां बंद हो जाएंगी। हालांकि हालातों को देखते हुए सरकार ने तीनों कृषि कानून वापस ले लिए। लेकिन सवाल उठता है कि  अब किसान अपना अनाज मंडियों में जाकर एमएसपी पर क्यों नहीं बेच रहा? आंदोलन के दौरान जो राजनेता मंडियों की वकालत कर रहे थे वे अब किसानों को मंडियों में अनाज बेचने के लिए प्रेरित क्यों नहीं करते? असल में अब बाजार में किसानों को एमएसपी से ज्यादा के भाव मिल रहे हैं। इसलिए किसान अपना अनाज सरकार को बेचने के बजाए सीधे व्यापारी को ही बेच रहा है। अब किसी भी किसान को व्यापारी से डर नहीं लग रहा है। बल्कि सरकार  से ज्यादा व्यापारी पर भरोसा किया जा रहा है। मौजूदा समय में किसान अपना अनाज जिस प्रकार व्यापारियों को बेच रहा है, उससे आंदोलन के दौरान गुमराह करने वाले नेताओं की पोल खुल गई है। आज यदि कृषि कानून लागू होते तो किसानों को और फायदा होता। देश के नागरिकों को कुछ राजनेताओं की चालाकियों को समझना चाहिए। अब अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का दबदबा दिखने लगा है, जब देश विरोधी ताकतें बेवजह देश का माहौल खराब करने में लगी है। भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था है। यदि मौजूदा केंद्र सरकार का काम काज और नीतियां खराब होंगी तो 2024 के आम चुनावों में जनता मोदी सरकार को हरवा देगी। 

S.P.MITTAL BLOGGER (17-06-2022)
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