गांधी परिवार से ईडी की पूछताछ पर आखिर कांग्रेस का विरोध क्यों? मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी राजस्थान छोड़कर दिल्ली में ही जमे हुए हैं। आखिर गुलाम नबी आजाद को भी साथ लाना पड़ा। आजाद ने बीमार सोनिया से लंबी पूछताछ पर एतराज जताया।
27 जुलाई को ही प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी से पूछताछ की। इससे पहले दो बार की पूछताछ हो चुकी है। सोनिया गांधी के पुत्र और कांग्रेस संगठन में जान फूंकने में जुटे राहुल गांधी से भी पिछले दिनों 50 घंटे की पूछताछ हुई है। दोनों ही मौकों पर कांग्रेस धरना प्रदर्शन कर रही है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तो अपना राजस्थान छोड़कर दिल्ली में ही जमे हुए हैं। पिछली बार भी जब राहुल गांधी से पांच दिनों तक पूछताछ हुई थी, तो सीएम गहलोत 10 दिनों तक दिल्ली में ही रहे। इस बार भी सोनिया गांधी से पूछताछ के मौके पर गहलोत 25 जुलाई से ही दिल्ली में हैं। असल में गांधी परिवार से पूछताछ के विरोध में आंदोलन की रणनीति गहलोत ही बना रहे हैं। गांधी परिवार की नीतियों का विरोध करने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद को भी गहलोत की पहल पर ही 27 जुलाई को प्रेस कॉन्फ्रेंस में उपस्थित रखा। गहलोत यह दिखाना चाहते हैं कि गांधी परिवार के साथ सभी कांग्रेसी खड़े हैं। गांधी परिवार से पूछताछ के विरोध में कांग्रेस जो देशव्यापी आंदोलन कर रही है, उससे अपेक्षित सफलता नहीं मिल रही। गांधी परिवार की ही सदस्य श्रीमती प्रियंका गांधी वाड्रा प्रभार वाले उत्तर प्रदेश से भी बड़े विरोध की खबरें नहीं आ रही है। चूंकि दिल्ली में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खुद मौजूद है, इसलिए राजस्थान के कार्यकर्ता मौजूद हैं। यदि पहचान की जाए तो दिल्ली में प्रदर्शन के दौरान दिल्ली से ज्यादा राजस्थान के कार्यकर्ता और नागरिक मिलेंगे। राजस्थान में गहलोत के नेतृत्व में ही कांग्रेस की सरकार चल रही है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक दलों को विरोध प्रदर्शन का अधिकार है, लेकिन ऐसे आंदोलन और विरोध जनता के हितों के लिए होने चाहिए। यानी किसी जन समस्या को लेकर विरोध होना चाहिए। लेकिन सब जानते हैं कि कांग्रेस तो गांधी परिवार के सदस्यों से ईडी की पूछताछ के विरोध में प्रदर्शन कर रही है। असल में प्रवर्तन निदेशालय को यह जानना है कि दो हजार करोड़ रुपए की संपत्ति वाले नेशनल हेराल्ड अखबार के मालिकाना हक को गांधी परिवार के सदस्यों के नाम क्यों और किस तरह हस्तारित किया गया? इतने बड़े बदलाव में वित्तीय नियमों का खुला उल्लंघन किया गया। जो जमीन सरकार से रियायती दर पर ली गई, उसे गांधी परिवार ने अपने नाम क्यों करवाया? क्या जांच एजेंसियों को जानकारी एकत्रित करने का भी हक नहीं है? जबकि इसी मामले में गांधी परिवार के सदस्य अदालत से जमानत पर हैं। असल में जब दो हजार करोड़ रुपए की संपत्ति का मालिकाना हक बदला गया, तब केंद्र में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए की सरकार थी। तब सोनिया गांधी यूपीए की चेयरपर्सन थी। तब किसी ने भी सपने में भी यह नहीं सोचा था कि देश की कोई जांच एजेंसी सोनिया गांधी से पूछताछ करने की हिम्मत करेगी। ब भले ही सपने में भ नहीं सोचा गया हो, लेकिन आज हकीकत में सोनिया गांधी से पूछताछ हो रही है। कांग्रेस के नेता भले ही इस पूछताछ को राजनीति से जोड़ रहे हों, लेकिन यह प्रकरण वित्तीय अपराध का है, जिसमें आरोपियों का पक्ष जानना जरूरी है। ईडी तो सिर्फ पक्ष जानने के लिए गांधी परिवार के सदस्यों को बुला रही है। कांग्रेसियों के आंदोलन में सोनिया गांधी के पुत्र राहुल गांधी भी शामिल हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि कांग्रेस संगठन में जान फूंकने के लिए राहुल काफी मेहनत कर रहे हैं। भले ही उन्हें सफलता नहीं मिल रही हो, लेकिन राहुल गांधी के प्रयास लगातार जारी हैं। कांग्रेस में आज भी महत्वपूर्ण निर्णय राहुल गांधी ली लेते हैं।
आजाद का एतराज:सीएम गहलोत की प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने सोनिया गांधी से ईडी की पूछताछ पर एतराज जताया। उन्होंने कहा कि पुराने जमाने में राजा महाराजाओं के बीच जब युद्ध होते थे, तब भी बीमार आदमी और महिला पर हाथ उठाने की मनाही थी। आजाद ने कहा कि सोनिया गांधी एक महिला है और पिछले कुछ दिनों से लगातार बीमार चल रही हैं। ऐसे में ईडी को सोनिया से लंबी और थकाने वाली पूछताछ नहीं करनी चाहिए। आजाद ने यह भी कहा कि जब सोनिया गांधी के पुत्र राहुल गांधी से पचास घंटे की पूछताछ हो चुकी है तब सोनिया गांधी से पूछताछ का कोई तुक नहीं है। उन्होंने कहा कि नेशनल हेराल्ड प्रकरण से जुड़े सारे दस्तावेज ईडी और अन्य जांच एजेंसियों के पास पहले से ही मौजूद हैं।
S.P.MITTAL BLOGGER (27-07-2022)
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