सोनिया गांधी के साथ भारत जोड़ों यात्रा में शामिल नहीं हुए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत। अब गांधी परिवार की मेहरबानी से नहीं, बल्कि अपने दम पर गहलोत मुख्यमंत्री बने रहेंगे। खडग़े और माकन भी जयपुर आने से झिझक रहे हैं।
6 अक्टूबर को कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी कर्नाटक के मंडचा में भारत जोड़ों यात्रा में शामिल हुई। यह यात्रा राहुल गांधी के नेतृत्व में कन्या कुमारी से कश्मीर तक निकाली जा रही है। 29 दिनों की पद यात्रा में यह पहला अवसर रहा, जब सोनिया गांधी शामिल हुई। चूंकि पद यात्रा में सोनिया गांधी पहली बार शामिल हुई, इसलिए उम्मीद थी कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी शामिल होंगे, लेकिन 6 अक्टूबर को गहलोत ने राजस्थान के भीलवाड़ा में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। ये वे ही अशोक गहलोत हैं, जब सोनिया-राहुल से ईडी की पूछताछ हुई तो दिल्ली में डेरा जमाए बैठे रहे। राजस्थान से हजारों समर्थकों को दिल्ली भेजकर गांधी परिवार के प्रति समर्थन जताया। 29 दिन पहले जब कन्या कुमारी से राहुल की यात्रा शुरू हुई तो गहलोत तीन दिनों तक साथ रहे। लेकिन 6 अक्टूबर को सोनिया गांधी के साथ यात्रा में शामिल नहीं होने से जाहिर है कि अब गांधी परिवार और गहलोत के बीच दूरियां बढ़ गई हैं। गहलोत के मन में अब गांधी परिवार के प्रति कोई लगाव नहीं है। राजस्थान में 200 में से 102 विधायकों का समर्थन दिखाकर गहलोत ने यह प्रदर्शित कर दिया है कि अब वे गांधी परिवार की मेहरबानी से मुख्यमंत्री नहीं है, बल्कि अपने दम पर मुख्यमंत्री बने हुए हैं और जब अपने दम पर मुख्यमंत्री हैं तो गांधी परिवार के कहने से मुख्यमंत्री का पद नहीं छोड़ेंगे। राजस्थान के मुख्यमंत्री के पद का फैसला अब जयपुर में विधायक ही करेंगे। जानकार सूत्रों के अनुसार अब गांधी परिवार और अशोक गहलोत के बीच कोई संवाद भी नहीं हो रहा है। केसी वेणुगोपाल जैसी संगठन महासचिव की इतनी हिम्मत नहीं कि वे गहलोत से बात कर सके। वेणुगोपाल भी गहलोत की मेहरबानी से ही राजस्थान से राज्यसभा सांसद हैं। गहलोत को मुख्यमंत्री के पद पर विधायकों के समर्थन के साथ साथ गहलोत तो कांग्रेस में बचे खुचे नेताओं का भी समर्थन प्राप्त है। अब जब गहलोत अपने दम पर मुख्यमंत्री हैं तो फिर सोनिया गांधी के साथ भारत जोड़ों यात्रा में शामिल क्यों हों? इधर गहलोत के समर्थक विधायकों ने गांधी परिवार को स्पष्ट संदेश दे दिया है कि गहलोत ही मुख्यमंत्री होंगे। यदि गांधी परिवार ने किसी और को मुख्यमंत्री बनाने का प्रयास किया तो राजस्थान में कांग्रेस की सरकार गिर जाएगी। गांधी परिवार भी अशोक गहलोत के करतबों को समझ रहा है, इसलिए खामोश है। गहलोत के समर्थक खुले आम गांधी परिवार को आंखें दिखा रहे हैं। गांधी परिवार की मेहरबानी से मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब देखने वाले सचिन पायलट के तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है, क्योंकि पायलट को यह उम्मीद नहीं थी कि अशोक गहलोत गांधी परिवार के खिलाफ बगावत करेंगे। पायलट का मानना था कि जब गहलोत कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनेंगे तो मुख्यमंत्री पद छोड़ देंगे। गहलोत ने राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड दिया, लेकिन मुख्यमंत्री का नहीं।
खडग़े और मकान भी झिझके:
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के उम्मीदवार मल्लिकार्जुन खडग़े और कांग्रेस के प्रभारी महासचिव अजय माकन को सरकार के लिए राजस्थान आना है, लेकिन राजस्थान में चल रही राजनीतिक गतिविधियों के मद्देनजर इन दोनों नेताओं का आना मुश्किल हो रहा है। खडग़े और माकन भी मानते हैं कि मुख्यमंत्री गहलोत की सहमति के बाद ही चुनाव के मतदाताओं से संवाद किया जा सकता है। राजस्थान में 200 विधानसभा क्षेत्र हैं, एक विधानसभा क्षेत्र में दो प्रदेश प्रतिनिधि नियुक्ति किए गए हैं। प्रदेश प्रतिनिधि ही राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए मतदान करता है।
S.P.MITTAL BLOGGER (06-10-2022)
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