1998 में मुख्यमंत्री बनने पर राजनीति में जितनी रगड़ाई अशोक गहलोत की हुई, उतनी रगड़ाई अब तक सचिन पायलट की भी हो चुकी है। तो पायलट को मुख्यमंत्री बनने से क्यों रोक रहे हैं गहलोत?
राजनीति में रगड़ाई शब्द का उपयोग सबसे पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ही किया। गहलोत ने अपने प्रतिद्वंदी सचिन पायलट को सलाह दी कि मुख्यमंत्री बनने से पहले राजनीतिक रगड़ाई करवाई या नहीं, यह गहलोत और पायलट ही जाने, लेकिन राजस्थान के सबसे बड़े अखबार राजस्थान पत्रिका का आकलन है कि 1998 में मुख्यमंत्री बनने पर गहलोत ने जितनी रगड़ाई करवाई थी, उतनी अब तक सचिन पायलट ने भी करवा ली है। चूंकि रगड़ाई का मुद्दा गहलोत ने ही उठाया था, इसलिए अब पायलट को मुख्यमंत्री बनाने में गहलोत को सहयोग करना चाहिए। 1980 में सांसद बनने के बाद 1998 में जब गहलोत सीएम बने तब, उनकी उम्र 47 साल थी। 2004 में जब पायलट पहली बार सांसद बने तो उनकी उम्र 27 वर्ष थी, लेकिन अब 2022 में पायलट की उम्र भी 45 वर्ष हो गई है। इन 18 वर्षों में पायलट ने भी सत्ता और संगठन के विभिन्न पदों पर रहते हुए खूब रगड़़ाई करवा ली है। रगड़ाई की कसौटी पर पत्रिका में 27 अक्टूबर को प्रकाशित आर्टिकल को ब्लॉग में ज्यों का त्यों लिखा जा रहा है। राजस्थान के नागरिक खुद आकलन करें। यह आर्टिकल राजनीतिक समीक्षक अनंत मिश्रा ने लिखा है।
पत्रिका का आर्टिकल:
राजस्थान में सियासी उठापटक के दौर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पिछले दिनों दिए गए बयानों की गहराई समझने वालों को यह सहज अंदाजा हो सकता है कि वे पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट पर संकेतों में ही सियासी अनुभव को लेकर तंज कसते रहते हैं। लेकिन हर कोई यह समझना जरूर चाहता होगा कि बार.बार रगड़ाई जैसे शब्द का इस्तेमाल करने वाले सीएम आखिर क्या संदेश देना चाहते हैं। जैसा वे कहते आए हैं कि उनके हर बयान के मायने होते हैं. ऐसे में यह माना जा सकता है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर चल रहे संग्राम के दौर में वे पायलट को कम रगड़ाई यानी कम अनुभव वाला बता रहे हैं।
न केवल कांग्रेस पार्टी बल्कि प्रमुख प्रतिपक्ष दल भाजपा का समर्थन करने वाले और नौकरशाही में सियासी बयानों की चीर.फाड़ करने वाले अशोक गहलोत के रगड़ाई फितूर बाजी जैसे शब्दों की मीमांसा अपने तरीके से कर रहे हैं। सीएम साफ कह रहे हैं कि रगड़ाई नहीं होने से फितूरबाजी वे ही कर रहे हैं जिन्हें जल्दी मौका मिल गया। यह बात सही है कि राजनीति में उम्र के मुकाबले अनुभव का अपना महत्व है। जब बात सचिन पायलट की होती है तो ऐसे बयानों का यही मतलब निकाला जाने लगा है कि सचिन पायलट को अभी अधिक अनुभव नहीं है। यह भी कहा जाने लगा है कि ऐसे बयान देकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सचिन को सीएम पद पर इतना जल्द बैठने योग्य भी नहीं मानते। सियासी तंज के अपने निहितार्थ होते हैं। ऐसे में दोनों नेताओं की उम्र व अनुभव की पड़ताल भी जरूरी हो जाती है। अतीत के पन्नों को पलटें तो अशोक गहलोत 1980 में पहली बार जोधपुर से लोकसभा का चुनाव जीते। 1998 में वे राजस्थान के मुख्यमंत्री बन गए। यानी 18 साल बाद। इस बीच वे कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष रहेए केंद्र में चार साल मंत्री भी रहे। सिक्के के दूसरे पहलू पर गौर करें तो सचिन के सियासी अनुभव को भी कसौटी पर कसना होगा। सचिन 2004 में पहली बार सांसद बने। 2009 में फिर सांसद बने। मनमोहन सिंह सरकार में पांच साल मंत्री भी रहे। फिर कांग्रेस के साढ़े छह साल तक प्रदेशाध्यक्ष भी रहे। 2018 में पहली बार विधायक बने। राज्य सरकार में पंचायत राज व पीडब्ल्यूडी जैसे विभागों को संभालने के साथ उपमुख्यमंत्री भी रहे। यानी पहली बार मुख्यमंत्री बनने तक गहलोत की जितनी रगड़ाई हुई थी, मुख्यमंत्री पद के दावेदार सचिन की भी उतनी ही रगड़ाई हो चुकी है।
S.P.MITTAL BLOGGER (27-10-2022)
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