गुजरात चुनाव के मौके पर अशोक गहलोत की उपस्थिति में मानगढ़ में आदिवासियों का सफल कार्यक्रम करवा गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। मोदी-गहलोत की अकेले में वार्ता से भी कांग्रेस में खलबली । मानगढ़ की पहचान और विकास में ओंकार सिंह लखावत की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत विपक्ष के उन मुख्यमंत्रियों में शामिल है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सबसे ज्यादा आलोचना करते हैं। मोदी की आलोचना में गहलोत ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भी पीछे छोड़ दिया है। उन्हीं गहलोत के शासन वाले राजस्थान के बांसवाड़ा स्थित मानगढ़ धाम में नरेंद्र मोदी आदिवासियों का बड़ा कार्यक्रम सफलता पूर्वक करवा गए। गुजरात चुनाव के मौके पर हुए इस समारोह में गुजरात मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के साथ साथ राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी उपस्थित रहे। गहलोत को उम्मीद थी कि पीएम मोदी इस समारोह में मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करेंगे। इसके लिए गहलोत ने कार्यक्रम से दो दिन पहले ही मांग करना शुरू कर दिया था। गहलोत का मानना रहा कि जब पीएम मोदी राष्ट्रीय स्मारक की घोषणा करेंगे तो इसका श्रेय उन्हीं को मिलेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। समारोह में गुजरात मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के साथ साथ केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने आदिवासियों के विकास करने का सारा श्रेय पीएम मोदी को दिया। यह श्रेय इसलिए भी महत्व रखता है कि इस समारोह में राजस्थान के आदिवासियों के साथ साथ गुजरात और मध्यप्रदेश के आदिवासी भी शामिल रहे। सभी मानते हैं कि राजस्थान और गुजरात की सीमा पर स्थित मानगढ़ में यह कार्यक्रम गुजरात चुनाव को देखते हुए किया गया। इस कार्यक्रम का आयोजन मध्यप्रदेश में आदिवासियों का एनजीओ चलाने वाले महेश शर्मा की ओर से किया गया। यह कार्यक्रम भारत सरकार अथवा किसी राज्य सरकार के स्तर पर नहीं हुआ। यह कार्यक्रम महेश शर्मा के संगठन द्वारा आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में महेश शर्मा ने भी प्रधानमंत्री के आदिवासियों के प्रति लगाव की प्रशंसा की। महेश शर्मा ने कहा कि उनके एक साधारण पत्र पर प्रधानमंत्री ने मिलने के लिए बुला लिया। इससे प्रतीत होता है कि देश के प्रधानमंत्री को साधारण व्यक्ति से मिलने में कोई परहेज नहीं है। आदिवासियों के प्रति भी पीएम मोदी का विशेष लगाव है। कहा जा सकता है कि अशोक गहलोत की उपस्थिति में हुआ आदिवासियों का यह समारोह पूरी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर केंद्रित था। ऐसा प्रतीत होता है कि गहलोत सरकार का खुफिया तंत्र यह पता लगाने में विफल रहा कि पीएम मोदी मानगढ़ के राष्ट्रीय स्मारक घोषित नहीं करेंगे। इतना ही नहीं गहलोत ने अपने संबोधन में ऐसी कोई बात नहीं कही जो प्रधानमंत्री के प्रतिकूल हो। मीडिया रिपोर्टस में कहा गया कि समारोह के बाद वेटिंग रूम में पीएम मोदी और सीएम गहलोत की दस मिनट तक अकेले में बात हुई। इस गुप्त वार्ता को लेकर अब कांग्रेस में खलबली मची हुई है। यहां खासतौर से उल्लेखनीय है कि गत 25 सितंबर को सीएम गहलोत ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के निर्देश पर जयपुर में कांग्रेस के विधायकों की बैठक नहीं होने दी। तब से यह माना जा रहा है कि कांग्रेस हाईकमान और गहलोत के बीच खींचतान चल रही है। ऐसी चर्चाओं के बीच पीएम मोदी से दस मिनट तक अकेले में बात करना राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
लखावत की भूमिका:
राजस्थान के बांसवाड़ा के मानगढ़ को लेकर आज भले ही बड़े बड़े समारोह हो रहे हो, लेकिन आदिवासियों के बलिदान से जुड़े इस मानगढ़ के विकास में राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण के अध्यक्ष रहे ओंकार सिंह लखावत की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वसुंधरा राजे के मुख्यमंत्री काल में दोनों बार लखावत इस प्राधिकरण के अध्यक्ष रहे। दोनों ही कार्यकाल में लखावत ने मानगढ़ के विकास में कोई कसर नहीं छोड़ी। मानगढ़ की पहाडिय़ां वन क्षेत्र में अधिसूचित थी। लेकिन लखावत के प्रयासों से ही इसे वनक्षेत्र से मुक्त किया गया। इसी के बाद मानगढ़ की पहाडिय़ां पर टीनशेड, मैटल की प्रतिमा, धूनी, स्तंभ आदि के निर्माण हो पाए। हालांकि कुछ विकास कांग्रेस के शासन में भी हुआ, लेकिन लखावत के कार्यकाल में विधिवत और नियोजित तरीके से मानगढ़ की पहाडिय़ां पर निर्माण कार्यक्रम संभव हुआ। क्योंकि लखावत ने मानगढ़ की पहाडिय़ों और 1913 में हुए आदिवासियों के नरसंहार की घटना का विस्तृत अध्ययन किया, इसलिए लखावत ने गोविंद गुरु और उनके संघर्ष पर एक पुस्तक भी लिखी है। इस पुस्तक में 17 नवंबर 1913 को गोली चलाने से पहले जो संदेश प्रसारित हुए उनका भी विस्तृत विवरण है। लखावत की पुस्तक से ही यह पता चलता है कि 17 नवंबर 1913 को इसी पहाड़ी पर गोविंद गुरु के नेतृत्व में हजारों आदिवासी एकत्रित हुए। इसी पहाड़ी पर हवन का आयोजन किया गया। अंग्रेजों का यह मानना रहा कि गोविंद गुरु ने अंग्रेज शासन के खिलाफ आदिवासियों को एकत्रित किया है। अंग्रेजों ने इसे विद्रोह माना और गोली चलाकर सैकड़ों आदिवासियों के मौत के घाट उतार दिया। लखावत ने इसी पहाड़ी पर एक संग्रहालय भी निर्मित किया है, जिसमें 17 नवंबर 1913 के घटना के चित्र भी अंकित किए गए हैं। लखावत का मानना है कि देश की आजादी में आदिवासियों की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। लेकिन आजादी के बाद जो इतिहास लिखा गया उसमें आदिवासियों का उल्लेख बहुत कम है।
S.P.MITTAL BLOGGER (02-11-2022)
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