सूफी संत ख्वाजा साहब की दरगाह पर पाकिस्तान के कट्टरपंथियों की दस्तक। खादिम समुदाय ने चिंता जताई। दरगाह के तबर्रुक (प्रसाद) प्याज तक का उपयोग नहीं होता।
सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की अजमेर स्थित दरगाह को दुनिया भर में कौमी एकता की मिसाल माना जाता है। सुफिज्म से जुड़ी दरगाह की अपनी रिवायतें हैं, जिन का पिछले 800 सालों से पालन हो रहा है। दरगाह से जुड़े सभी पक्ष इस बात का प्रयास करते हैं कि दरगाह की पहचान कौमी एकता की बनी रहे। लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में सूफी संत की दरगाह पर भी पाकिस्तान के कट्टरपंथियों की दस्तक हो गई है। पाकिस्तान के कट्टरपंथी नेता डॉ. मोहम्मद अशरफ आसिफ जलाली ने एक धार्मिक सभा में ख्वाजा साहब की दरगाह के खादिमों पर प्रतिकूल टिप्पणी की। डॉ. जलाली ने गत 27 जनवरी को सालाना उर्स के दौरान हुए विवाद पर भी दरगाह की परंपराओं के विपरीत अपनी बात रखी। दरगाह के खादिमों की संस्था अंजुमन सैयद जादगान के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने डॉ. जलाली की टिप्पणियों पर सख्त एतराज जताया है। चिश्ती ने कहा कि डॉ. जलाली पाकिस्तान के एक कट्टरपंथी हैं और भारत और पाकिस्तान के मुसलमानों को गुमराह करते हैं। खुद पाकिस्तान की सरकार भी डॉ. जलाली के कट्टरपंथी विचारों से सहमत नहीं है, इसलिए उन पर कानूनी कार्यवाही भी की गई है। यहां तक कि डॉ. जलाली को जेल भी जाना पड़ा है। चिश्ती ने कहा कि ख्वाजा साहब की शिक्षाओं पर अमल कर खादिम समुदाय दरगाह में आने वाले जायरीन की खिदमत करते हैं। यहां सभी धर्मों के लोगों से समान रूप से व्यवहार किया जाता है। ख्वाजा साहब ने अपने जीवनकाल में सर्वधर्म समभाव की जो परंपराएं निर्धारित की उन्हीं का पालन आज तक हो रहा है। सूफिज्म की परंपराओं को निभाने में खादिम समुदाय की महत्वपूर्ण भूमिका है। 1947 से देश के विभाजन के बाद जब अधिकांश मुसलमान पाकिस्तान चले गए, तब अधिकांश खादिम परिवारों ने दरगाह को नहीं छोड़ा। खादिम समुदाय पूरी अकीदत के साथ दरगाह में सूफिज्म की परंपराओं का निर्वाह कर रहा है। ऐसे में पाकिस्तान के किसी कट्टरपंथी नेता की धमकियों से खादिम समुदाय डरने वाला नहीं है। चिश्ती ने कहा कि पाकिस्तान के कट्टरपंथी चाहें जैसी सोच रखें, लेकिन दरगाह के तबर्रुक (प्रसाद) में आज भी प्याज तक का उपयोग नहीं होता है। उन्होंने बताया कि दरगाह की विशालकाय देगों में प्रतिदिन चावल पकाए जाते हैं और फिर पके चावलों को तबर्रुक के तौर पर जायरीन को बांटा जाता है। चावल में काजू बादाम तक डाले जाते हैं, लेकिन तबर्रुक को मांस आदि से दूर रखा जाता है। चिश्ती ने कहा कि दरगाह की कौमी एकता की परंपराओं को पाकिस्तान के किसी कट्टरपंथी को तोड़ने नहीं दिया जाएगा। पाकिस्तान के कट्टरपंथी से मुकाबला करने के लिए खादिम समुदाय एकजुट हे। उन्होंने कहा कि डॉ. जलाली के वीडियो पर केंद्र सरकार की जांच एजेंसियों को भी संज्ञान लेना चाहिए। इस बात के इंतजाम किए जाए कि कट्टरपंथी जमात के लोग दरगाह का माहौल खराब नहीं करें। खादिम समुदाय तो अपनी ओर से सतर्क है ही। मालूम हो कि गत 27 जनवरी को बरेलवी मकतब के कुछ लोगों ने अपनी विचारधारा के अनुरूप दरगाह में कलाम प्रस्तुत किए। इस खादिमों और दरगाह कमेटी ने एतराज जताया था। इस एतराज पर ही पाकिस्तान के कट्टरपंथी नेता डॉ. जलाली ने खादिमों पर अभद्र टिप्पणियां की।
S.P.MITTAL BLOGGER (08-02-2023)
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