राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलवाने के लिए लोकसभा चुनाव में मुद्दा बनाया जाए। क्योंकि 8वीं अनुसूची में शामिल करवाना आसान नहीं। यह राजस्थानियों और राजस्थानी भाषा का अपमान है-पद्मश्री सीपी देवल।

20 दिसंबर को राजस्थान विधानसभा में नवनिर्वाचित विधायकों की शपथ के समय कोई 25 से भी ज्यादा अपनी मातृभाषा राजस्थानी में शपथ लेना चाहते थे, लेकिन प्रोटेम स्पीकर कालीचरण सराफ ने राजस्थानी भाषा में शपथ लेने से रोक दिया। सराफ का कहना रहा कि राजस्थानी भाषा को केंद्र सरकार की 8वीं अनुसूची में शामिल नहीं है इसलिए राजस्थानी भाषा की शपथ संवैधानिक नहीं हो सकती। हालांकि अनेक विधायकों ने राजस्थानी भाषा में शपथ ली और बाद में हिंदी में भी शपथ ली। चूंकि आठवीं अनुसूची में राजस्थानी भाषा का शामिल कठिन है, इसलिए अब आगामी लोकसभा चुनाव में राजस्थानी भाषा को मुद्दा बनाया जाना चाहिए। राजस्थानी भाषा को सरकारी मान्यता न होना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। राजस्थानी भाषा के प्रबल समर्थक पद्मश्री सीपी देवल ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस भाषा को पांच करोड़ राजस्थानी अपनी मातृभाषा मानते हों, वह भाषा आज सरकार की मान्यता के लिए तरस रही है। उन्होंने बताया कि गोवा की कोंकणी भाषा को मात्र 22 लाख लोग लिखते हैं, सरकार ने इस भाषा को मान्यता दे रखी है। जबकि राजस्थानी भाषा के प्रति उपेक्षा का भाव रखा हुआ है। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन में जो देशभक्ति की कविताएं लिखी गई वे भी राजस्थानी भाषा में ही थी। एक लाख 80 हजार गायकों ने राजस्थानी भाषा में अपनी अभिव्यक्ति की है। राजस्थान में राजस्थानी भाषा कला और संस्कृति से भी जुड़ी हुई है। गांव में आज भी शादी ब्याह या अन्य संस्कारों के समय राजस्थानी भाषा में ही गीत गाए जाते हैं। इतना ही नहीं चुनाव में भी अधिकांश प्रत्याशी राजस्थानी भाषा में प्रचार प्रसार करते हैं। हमारे त्योहार, व्रत आदि की कथाएं भी राजस्थानी भाषा में ही है। राजस्थानी भाषा किसी अन्य भाषा का अनुवाद नहीं है। बल्कि हमारी मूल भाषा है। पद्मश्री देवल ने सवाल उठाया कि आखिर मातृभाषा क्या होती है? जन्म के बाद मां सबसे पहले बच्चे से जिस भाषा में संवाद करती है उसे ही मातृभाषा कहा जाता है। राजस्थान के हर घर में राजस्थानी भाषा बोली जाती है। लेकिन इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि हमारे विधायक विधानसभा में अपनी मातृभाषा में शपथ नहीं ले सकते। देवल ने कहा कि राजस्थानी भाषा को सरकार की मदद की जरूरत नहीं है। आठवीं अनुसूची में जो 22 भाषाएं शामिल हैं उनके संवर्धन और विकास के लिए केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय बजट स्वीकृत करता है लेकिन राजस्थानी भाषा तो पहले से ही संरक्षित और प्रभावी है। आज भी हजारों ग्रंथ राजस्थानी भाषा में लिखे हुए हैं। हमारी लोक कथाएं और गीत भी राजस्थानी भाषा में है। उन्होंने कहा कि राजस्थानी भाषा राजनीति का शिकार हुई है। यदि राजनीति को अलग रखकर विचार किया जाए तो आज पूरे देश में सबसे समृद्ध राजस्थानी भाषा है। उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव में राजस्थानी भाषा की मान्यता का मुद्दा बनता है तो यह अच्छी बात है। वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को दखल देकर राजस्थानी भाषा को सरकारी मान्यता दिलवानी चाहिए। जब जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को हटाने के लिए सारी बाधाओं को हटाया जा सकता है तो फिर राजस्थानी भाषा को मान्यता के लिए आने वाली बाधाओं को क्यों नहीं हटाया जा रहा। देवल ने कहा कि सरकारी मान्यता नहीं होने के कारण ग्राम पंचायत में भी राजस्थानी भाषा में लिखावट नहीं होगी। जबकि हम गुजरात में देखते हैं कि सभी सरकारी दफ्तरों में गुजराती भाषा में काम होता है। यहां तक कि स्थानीय अदालतों में भी गुजराती भाषा का उपयोग होता है। क्या राजस्थानी भाषा गुजराती से भी कमजोर है? उन्होंने कहा कि विधानसभा में विधायकों को राजस्थानी भाषा में शपथ नहीं लेने दिया तो उन्हें बेहद दुख हुआ। ऐसा प्रतीत होता है कि संविधान के जानकारों को सही मायने में संविधान की जानकारी है ही नहीं। संविधान के मुताबिक विधानसभा में असंसदीय भाषा का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। राजस्थानी भाषा को असंसदीय नहीं माना जा सकता। देवल ने कहा कि राजस्थान में प्रोटेम स्पीकर सराफ ने राजस्थानी भाषा में शपथ लेने दी। जबकि छत्तीसगढ़ में अनेक विधायकों ने छत्तीसगढ़ी भाषा में शपथ ली। छत्तीसगढ़ी भाषा भी आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं है। राजस्थानी भाषा की समृद्धि और सरकारी मान्यता को लेकर और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9928140717 पर पद्मश्री सीपी देवल से ली जा सकती है। 


S.P.MITTAL BLOGGER ( 23-12-2023)

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