आखिर राजस्थान में प्रशासनिक तंत्र को राजनीति के चंगुल से निकाला। अब रात के अंधेरे में नहीं, बल्कि दिन के उजाले में अफसरों की तबादला सूची जारी होती है। 36 जिलों के कलेक्टर बदले, पर अजमेर का नहीं। निगम आयुक्त सुशील कुमार को भी बालोतरा का कलेक्टर बनाया।
इसे राजस्थान में भजनलाल शर्मा सरकार की उपलब्धि ही कहा जाएगा कि प्रशासनिक तंत्र को राजनीति के चंगुल से निकाला गया है। 6 जनवरी को 72 आईपीएस और 121 आरएएस की जो तबादला सूची जारी हुई उसमें कोई राजनीतिक दखल नहीं रहा। सत्तारूढ़ भाजपा का कोई भी नेता विधायक और मंत्री यह दावा नहीं कर सकता है कि उसकी सिफारिश पर किसी अधिकारी की नियुक्ति हुई है। जाहिर है कि मुख्य सचिव सुधांश पंत ने अपने विवेक से इन सभी अधिकारियों के तबादले किए हैं। तबादला सूची 6 जनवरी को सुबह जारी हुई। इससे पहले 5 जनवरी को पीएम मोदी ने जयपुर में भाजपा पदाधिकारियों, विधायकों और मंत्रियों से साफ कहा कि उन्हें अधिकारियों के तबादले में सिफारिश नहीं करनी चाहिए। अधिकारी किसी सरकार का चहेता नहीं होता। हम जो नीति बनाते हैं उसकी क्रियान्विति प्रशासनिक तंत्र करता है। हमें क्रियान्विति के लिए प्रशासनिक तंत्र पर सिर्फ निगरानी करनी चाहिए। यदि राजनीतिक दखल नहीं होगा तो प्रशासनिक तंत्र ज्यादा प्रभावी तरीके से काम कर सकेगा। भाजपा के नेताओं पर पीएम के कथन का प्रभाव रहा। इसलिए 6 जनवरी को जब प्रदेश के 36 कलेक्टरों को बदला गया तो कोई चुंचपड़ नहीं हुई। कहा जा सकता है कि दो सौ प्रशासनिक अधिकारियों के तबादले में राजनीति का कोई दखल नहीं रहा। राजस्थान में लंबे समय बाद यह पहला अवसर रहा, जब तबादलों में किसी भी नेता का दखल नहीं रहा। राजस्थान के जागरूक लोगों ने अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार का पिछला कार्यकाल भी देखा है। छोटे छोटे से अधिकारी की नियुक्ति भी कांग्रेस के नेता, विधायक और मंत्री की सिफारिश पर होती थी। जिस विधायक ने चाहा व अपनी मर्जी का कलेक्टर, एसडीएम नियुक्त करवाने में सफल रहा। अधिकारियों को भी पता था कि कांग्रेस नेताओं की सिफारिश के बगैर नियुक्ति नहीं होगी। कहा जा सकता है कि गहलोत के शासन में कांग्रेस नेताओं और अधिकारियों का गठजोड़ हो गया था। यही वजह रही कि प्रशासन और राजनीति में भ्रष्टाचार चरम पर रहा। राजनीति में प्रशासनिक तंत्र को जकड़ लिया था। जो अधिकारी जिस नेता की सिफारिश पर नियुक्त हुआ, वजह उस नेता के प्रति वफादार रहा। नेताओं की वजह से अफसरों ने भी खूब माल कमाया। सब जानते हैं कि गहलोत के शासन में मुख्य सचिव का कोई महत्व नहीं था। आईएएस और आरएएस की तबादला सूची मुख्यमंत्री सचिवालय में तैयार होती थी। सूची तैयार होने के बाद सीधे कार्मिक विभाग को भेज दी जाती थी। कार्मिक विभाग सूची को चुपचाप जारी कर देता था। लेकिन 6 जनवरी को गहलोत सरकार की परंपरा टूट गई। सभी 200 अधिकारियों की तबादला सूची मुख्य सचिव के स्तर पर तैयार हुई और फिर कार्मिक विभाग ने जारी कर दी। किस आईएएस को कलेक्टर लगाना है यह मंथन भी मुख्य सचिव के स्तर पर ही हुआ। इससे मुख्य सचिव के पद का महत्व भी बढ़ा है। मौजूदा मुख्य सचिव सुधांश पंत को सेवानिवृत्ति के बाद किसी लाभ के पद का लालच भी नहीं है। गहलोत के शासन में मुख्य सचिव रहे डीबी गुप्ता और उनकी पत्नी वीनू गुप्ता को रिटायरमेंट के बाद लाभ के पद दिए गए। निरंजन आर्य की पत्नी संगीता आर्य को राजस्थान लोक सेवा आयोग का सदस्य नियुक्त किया गया तो निरंजन आर्य को विधानसभा चुनाव में सोजत से कांग्रेस का उम्मीदवार बनाया गया। अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन मुख्य सचिवों ने अपने पद की जिम्मेदारी कैसे निभाई होगी।
दिन के उजाले में सूची:
अशोक गहलोत के शासन में प्रशासनिक अधिकारियों की तबादला सूची रात के अंधेरे में जारी होती थी, क्योंकि रात 12 बजे बाद सूची जारी होती इसलिए अखबारों में आधी अधूरी सूचियां ही छपी थी। मुख्यमंत्री सचिवालय के अधिकारी रात के अंधेरे में तबादला सूची क्यों जारी करते थे यह तो अशोक गहलोत और उनके प्रमुख सचिव कुलदीप रांका ही बता सकते हैं। लेकिन अब भजनलाल शर्मा के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में दिन के उजाले में तबादला सूची जारी हो रही है। 6 जनवरी को 72 आईएएस और 121 आरएएस की तबादला सूची दिन में जारी हुई। सोशल मीडिया के जमाने में तबादला सूची दोपहर 12 बजे तक प्रदेश की जनता के पास पहुंच गई। माना जाता है कि जो काम दिन के उजाले में होता है उसमें ईमानदारी होती है।
डॉ. दीक्षित कलेक्टर बनी रहेंगी:
6 जनवरी को जो तबादला सूची जारी हुई, उसमें 50 में से 36 जिलों के कलेक्टर बदले गए हैं, लेकिन अजमेर में डॉ. भारती दीक्षित को कलेक्टर के पद पर बनाए रखा है। माना जा रहा है कि डॉ. दीक्षित की कार्य कुशलता को देखते हुए अजमेर में ही यथावत रखा गया है। इसी महीने होने वाले ख्वाजा साहब के उर्स को ध्यान में रखते हुए ही डॉ. दीक्षित को अजमेर में बनाए रखा है। अजमेर नगर निगम के आयुक्त सुशील कुमार को लेकर भाजपा के कई नेता खफा थे। कांग्रेस के शासन में भाजपा नेताओं ने कहा था कि हमारी बनने पर सुशील कुमार को सबक सिखाया जाएगा, लेकिन अब सुशील कुमार को बालोतरा का कलेक्टर नियुक्त कर दिया गया है। यानि भाजपा नेताओं का गुस्सा धारा रह गया है। अलबत्ता कांग्रेस शासन में केकड़ी के विधायक रघु शर्मा की सिफारिश पर नियुक्त हुए कलेक्टर विश्व मोहन शर्मा को केकड़ी से हटाकर मिड डे मील का आयुक्त नियुक्त किया गया है। शर्मा को जब नव गठित केकड़ी जिले का कलेक्टर नियुक्त किया , तब प्रशासनिक क्षेत्रों में आश्चर्य व्यक्त किया गया। क्योंकि शर्मा पूर्व में अजमेर जिले के कलेक्टर रहे चुके थे और केकड़ी उपखंड था। यानी शर्मा ने एक उपखंड का कलेक्टर बनना स्वीकार किया। शर्मा ने केकड़ी में नियुक्ति क्यों ली यह तो रघु शर्मा ही बता सकते हैं। शर्मा को कलेक्टर बनने के बाद भी रघु शर्मा केकड़ी से विधानसभा का चुनाव हार गए।
S.P.MITTAL BLOGGER (07-01-2024)
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