अशोक गहलोत की सेवाएं ली जाती तो हिमाचल में कांग्रेस सरकार का यह हश्र नहीं होता। अच्छा हुआ सोनिया गांधी ने राज्यसभा का चुनाव हिमाचल से नहीं लड़ा।
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सरकार के होते हुए भी राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी अभिषेक मनु सिंघवी की हार हो गई। कांग्रेस के जिन 6 विधायकों ने भाजपा उम्मीदवार को वोट दिया उसकी वजह से हिमाचल में सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली सरकार को खतरा हो गया है। सुक्खू सरकार अब अल्पमत में आ गई है और कभी भी गिर सकती है। कांग्रेस को चलाने वाला गांधी परिवार माने या नहीं, लेकिन यदि हिमाचल में राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सेवाएं ली जाती तो कांग्रेस सरकार का यह हश्र नहीं होता। गहलोत भले ही राजस्थान में विधानसभा का चुनाव हार गए हो, लेकिन उन्होंने विपरीत हालातों में भी कांग्रेस सरकार को पूरे पांच वर्ष चलाया। वर्ष 2020 में जब सचिन पायलट पायलट के नेतृत्व में 19 विधायक दिल्ली चले गए तब अशोक गहलोत ने सौ विधायकों को अपने समर्थन में एकजुट रखा। इसके लिए गहलोत ने एक माह तक विधायकों को होटलों में बंधक बनाए रखा। यह गहलोत की रणनीति ही थी कि होटलों में विधायकों से संपर्क पर रोक लगा दी गई। गहलोत ने अपनी सरकार बचाने के लिए सरकारी मशीनरी और विधानसभा अध्यक्ष का भरपूर उपयोग किया। गहलोत ने जिस तरह विधायकों की घेराबंदी की उससे भाजपा का नेतृत्व भी चकित हो गया है। राज्यसभा के चुनाव में भी गांधी परिवार ने जिन तीन सदस्यों को दिल्ली से उम्मीदवार बनाया उन सभी को गहलोत ने जीता कर भेजा। यह गहलोत की ही चतुराई थी कि सभी 13 निर्दलीय उम्मीदवारों का समर्थन सरकार के पक्ष में बनाए रखा। इतना ही नहीं बीटीपी जैसी दो विधायकों वाली पार्टी का समर्थन भी पूरे पांच वर्ष लिया गया। इसके विपरीत हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होते हुए भी राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के 6 विधायकों ने बगावत कर दी। यानी मुख्यमंत्री सुक्खू को यह पता ही नहीं चला कि विधायक बगावत करने जा रहे हैं। यदि हिमाचल में अशोक गहलोत की नियुक्ति की जाती तो कांग्रेस विधायकों को भाजपा खेमे में जाने दिया नहीं जाता। असल में गहलोत को सरकार बचाने के लिए सारे तौर तरीके आते हैं। उन्हें पता है कि विधायकों को किस प्रकार खुश रखा जाता है। आज भी कांग्रेस के विधायक अशोक गहलोत की दरियादिली को याद करते हैं। 2020 में जब राजनीतिक संकट आया तो गहलोत ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि जो विधायक आज मेरे साथ है, उन्हें ब्याज सहित भुगतान करूंगा। गहलोत ने अपने वादे के मुताबिक समर्थक विधायकों को ब्याज सहित भुगतान किया। ऐसे विधायकों के क्षेत्रों में थानेदार से लेकर डीएसपी और पटवारी से लेकर एसडीएम तक विधायकों की सिफारिश पर नियुक्त किए गए। विधायकों ने जो चाहा वो किया। गहलोत के समर्थक विधायकों की संपत्तियों का आकलन किया जाए तो पता चलता है कि विधायकों ने ब्याज से भी ज्यादा की वसूली की। लेकिन गहलोत की यह उपलब्धि रही कि उनके मुख्यमंत्री रहते कोई विधायक भाजपा में शामिल नहीं हुआ।
बच गई सोनिया गांधी:
राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवारों के चयन के समय सोनिया गांधी को हिमाचल प्रदेश से खड़ा करने का मंथन हुआ थ। असल में हिमाचल में कांग्रेस की सरकार को देखते हुए सोनिया गांधी की सीट को सुरक्षित माना गया, लेकिन 27 फरवरी को हुए चुनाव से जाहिर है कि सोनिया गांधी हिमाचल से चुनाव लड़ती तो हार जाती। सोनिया ने राजस्थान से राज्यसभा का चुनाव लड़ा और आज सांसद बन गई है। यदि सोनिया गांधी हिमाचल से चुनाव लड़कर हार जाती तो कांग्रेस को तगड़ा झटका लगता। राज्यसभा का सांसद बन जाने के कारण सोनिया गांधी दिल्ली स्थित दस जनपथ वाले बंगले में रह सकेंगी। यदि सांसद नहीं बनती तो यह बंगला भी खाली करना पड़ता।
S.P.MITTAL BLOGGER (28-02-2024)
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