जिन कंपनियों ने भाजपा को चंदा दिया, उन से कांग्रेस ने भी चंदा लिया। तो फिर चुनावी चंदे के सौदों की जांच का क्या फायदा? गौरव वल्लभ ने सही कहा, कांग्रेस अब दिशाहीन हो गई है। गरीब महिला और शिक्षित युवक को एक एक लाख रुपए देने का वादा कैसे पूरा होगा? क्या वादों से पहले गठबंधन के दलों की सहमति ली गई?
लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस ने 5 अप्रैल को दिल्ली में जो घोषणा पत्र जारी किया है, उसमें इंडिया गठबंधन की सरकार बनने पर चुनावी चंदे की जांच करवाने का भी वादा किया गया है। इस वादे से लगता है कि कांग्रेस वाकई दिशाहीन हो गई है। 4 अप्रैल को कांग्रेस छोड़ते हुए राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने भी कहा था कि कांग्रेस दिशाहीन है। चुनावी चंदे को लेकर एसबीआई ने जो जानकारी सार्वजनिक की है, उसके अनुसार जिन कंपनियों ने भाजपा को चंदा दिया, उनसे कांग्रेस ने भी चंदा लिया है। सार्वजनिक हुई जानकारी के अनुसार मेघा इंजीनियरिंग एंड वेस्टर्न यूपी ने भाजपा को 664 करोड़, वेदांता ने 226 करोड़ रुपए का चंदा। मेघा इंजीनियर ने कांग्रेस को 128 और वेदांता ने 105 करोड़ रुपए का चंदा दिया है। इन्हीं कंपनियों ने वीआरएस जैसी क्षेत्रीय पार्टियों को भी चंदा दिया है। भाजपा के बाद सबसे ज्यादा ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी को मिला है। यानी चंदा लेने में इंडिया गठबंधन में शामिल दल पीछे नहीं है। सवाल उठता है कि जब कांग्रेस सहित अधिकांश दलों ने कंपनियों से चंदा लिया है तो फिर इंडिया गठबंधन की सरकार बनने पर कांग्रेस चुनावी चंदे के सौदों की जांच कैसे कराएगी ? क्या कांग्रेस स्वयं के खिलाफ ही जांच कराएगी? चंदे के धंधे में सभी राजनीतिक दल बराबर है। मेरे हुए जानवरों की खाल उतारने में किसी भी दल ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा ने ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स का डर दिखाकर कंपनियों से चंदा लिया है। एक बार यह आरोप सच भी मान लिया जाए तो सवाल उठता है कि फिर कांग्रेस और क्षत्रिय दलों का चंदा कैसे मिला? सब जानते हैं कि तीन महीने पहले तक राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस की सरकार थी। जिन कंपनियों ने चंदा दिया उनका कारोबार इन दोनों राज्यों में भी है। कोई भी कारोबारी बिना स्वार्थ के राजनीतिक दलों को चंदा नहीं देता। हर कारोबारी अपने धंधे को संरक्षित करने के लिए ही चंदा देता है। सवाल यह भी है कि चंदे के सौदों की जांच का वादा करने से पहले क्या कांग्रेस ने ममता बनर्जी की सहमति ली? इंडिया गठबंधन की सरकार बनने पर क्या ममता बनर्जी अपने ही खिलाफ जांच करवाएंगी। समझ में नहीं आता कि कांग्रेस का घोषणा पत्र किन नेताओं ने तैयार किया है? क्या घोषणा पत्र को जारी करने से पहले राहुल गांधी ने घोषणा पत्र को पढ़ा? सवाल यह भी है कि जब इंडिया गठबंधन तार तार हो चुका है, तब इस गठबंधन की सरकार कैसे बनेगी? पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने कांग्रेस को एक सीट भी नहीं दी है। ऐसा ही रवैया पंजाब में आम आदमी पार्टी ने अपनाया है। इसे कांग्रेस की दिशा हीनता ही कहा जाएगा कि वामपंथी दल वायनाड में राहुल को हराने का काम कर रहे है, लेकिन राजस्थान के सीकर में कांग्रेस वाम दल के उम्मीदवार अमराराम चौधरी के लिए वोट मांग रही है।
वादा कैसे पूरा होगा:
कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में देश की गरीब महिलाओं और शिक्षित युवाओं को एक एक लाख रुपए देने का वादा किया है। सवाल उठता है कि आखिर यह वादा कैसे पूरा होगा? क्या इंडिया गठबंधन की सरकार के पास इतना पैसा होगा कि वह एक एक लाख रुपए बांट सके? जब कांग्रेस गठबंधन सरकार की बात कर रही है तो सवाल उठता है कि क्या वादा करने से पहले गठबंधन में शामिल दलों की सहमति ली गई? जब गठबंधन में शामिल दलों की सहमति ही नहीं है तो फिर कांग्रेस अपने दम पर घोषणा पत्र के वादे कैसे पूरा करेगी। मौजूदा समय में 545 में से कांग्रेस के मात्र 50 सांसद है। इस बार पचास सांसदों का जितना भी मुश्किल प्रतीत हो रहा है। ऐसे में कांग्रेस के वादों का क्या होगा। यह मतदाता भी समझते हैं। कांग्रेस ने जो वादे किए हैं उन से प्रतीत होता है कि कांग्रेस ने अपने बूते पर बनने वाली सरकार के हिसाब से वादे किए हैं।
S.P.MITTAL BLOGGER (06-04-2024)
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