यदि राहुल गांधी ने इंग्लैंड में बांग्लादेश के कट्टरपंथी नेता तारिक रहमान से मुलाकात की थी तो यह भारत के लिए खतरनाक है। मंदिरों और हिंदुओं पर हमले जारी। अब इस्कॉन मंदिर में आग लगाकर भागवत गीता को जलाया।

बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के तख्ता पलट के बाद हो रही हिंसा में हिंदुओं और मंदिरों पर हमले जारी है। हालांकि हिंदुओं ने भी सड़कों पर आकर एकजुटता का परिचय दिया, लेकिन मुस्लिम कट्टरपंथियों पर इसका कोई असर नहीं हुआ। 12 अगस्त को ही भारत-बांग्लादेश सीमा के मेयरपुर में इस्कॉन मंदिर में जमकर तोडफ़ोड़ की गई और गर्मगृह में आग लगाकर भागवतगीता को जला दिया। अब तक पचास से भी ज्यादा मंदिरों में तोडफ़ोड़ की गई है। हिंसा में जख्मी हिंदुओं का सरकारी अस्पतालों में इलाज नहीं किया जा रहा है तो हिंदू महिलाओं के साथ बलात्कार की खबरें लगातार आ रही है। मुस्लिम कट्टरपंथियों ने जो रवैया अपनाया है उससे हिंदुओं का बांग्लादेश में रहना मुश्किल हो रहा है। दहशत के इस माहौल में ही बांग्लादेश के वरिष्ठ पत्रकार सलाउद्दीन शोएब चौधरी ने दावा किया है कि भारत में कांग्रेस के नेता और मौजूदा समय में लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी ने अपनी इंग्लैंड यात्रा में बांग्लादेश के भगोड़े और कट्टरपंथी नेता तारिक रहमान से मुलाकात की थी। इस मुलाकात के बाद ही बांग्लादेश में हसीना सरकार का तख्तापलट हुआ और उपजी हिंसा में हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है। तारिक रहमान पूर्व पीएम खालिदा जिया के बेटे हैं। जिया जब प्रधानमंत्री थी, तब तारीक ने इंडिया आउट कैम्पेन चलाया था। अपने कट्टरपंथी विचारों के कारण ही तारिक रहमान हिंदुओं से नफरत करता है। चूंकि बांग्लादेश के तख्तापलट छात्र आंदोलन में तारिक रहमान की सक्रिय भूमिका थी, इसलिए मंदिरों और हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है। यदि राहुल गांधी ने इंग्लैंड में तारिक रहमान से मुलाकात की है तो यह भारत के लिए खतरनाक स्थिति है। बांग्लादेश के पत्रकार के आरोप के बाद भी राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी की ओर से अभी तक भी आरोपों का खंडन नहीं किया गया है। इससे जाहिर है कि लंदन में हुई मुलाकात को राहुल गांधी स्वीकार कर रहे है। आरोप है कि तारिक रहमान को पाकिस्तान की बदनाम खुफिया एजेंसी आईएसआई का खुला समर्थन है। आईएसआई का बांग्लादेश की सेना पर भी नियंत्रण है और अब सेना की मदद से ही बांग्लादेश में पाकिस्तान की समर्थन वाली सरकार बनने जा रही है। यही वजह है कि 1971 में पाकिस्तान की हार वाले प्रतीक चिह्नों को भी बांग्लादेश के सार्वजनिक स्थलों से हटाया जा रहा है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (13-08-2024)
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