देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का। क्या यह बयान हिंदुओं के साथ भेदभाव वाला नहीं था? तो फिर असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा के बयान पर विवाद क्यों? असम में अब मुस्लिम विवाह का पंजीकरण अनिवार्य।
भाजपा शासित असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने बांग्लादेश के घुसपैठियों को सरकारी योजनाओं का लाभ देने पर सवाल उठाया है। हेमंता का कहना है कि जो लोग घुसपैठ कर असम में बसे हैं, उन्हें योजनाओं का लाभ नहीं मिलना चाहिए। हेमंता के इस बयान पर विपक्षी दलों खासकर कांग्रेस ने आपत्ति जताई है। हेमंत के इस बयान को मुसलमानों के साथ भेदभाव करने वाला बताया जा रहा है। हेमंता ने भारतीय नागरिकता वाले किसी भी मुसलमान को सरकारी योजनाओं से वंचित करने की बात नहीं की। विपक्ष भले ही हेमंता को मुस्लिम विरोधी कहे, लेकिन विपक्ष को पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के उस बयान पर भी प्रतिक्रिया देनी चाहिए, जिसमें कहा गया था कि देश के संसाधनों पर मुसलमानो का पहला हक है। सवाल उठता है कि क्या बयान हिंदुओं के साथ भेदभाव वाला नहीं है? जब भारतीय संविधान में समान अधिकारों की बात कही गई है, तब संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का होने की बात का क्या अर्थ है? मनमोहन सिंह ने यह बयान प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए दिया। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मनमोहन सिंह ने किस सोच के साथ दस साल तक प्रधानमंत्री का दायित्व निभाया।
पंजीकरण अनिवार्य:
असम विधानसभा में 29 अगस्त एक महत्वपूर्ण बिल पारित किया गया है, इसके अंतर्गत मुस्लिम विवाह का सरकारी स्तर पर पंजीकरण कराना अनिवार्य किया गया है। अब तक मुस्लिम विवाह का पंजीकरण संबंधित काजी द्वारा ही किया जाता था। लेकिन अब काजी के बजाए जिला प्रशासन के माध्यम से विवाह का पंजीकरण होगा। सरकार का कहना है कि मुस्लिम विवाह के सरकारी पंजीकरण से नाबालिग बच्चियों के विवाह रुक सकेंगे। कानून के मुताबिक लड़की की उम्र 18 वर्ष और लड़के की उम्र 21 वर्ष होने पर ही विवाह संभव है। लेकिन काजी के माध्यम से 18 वर्ष से कम उम्र की बच्चियों के विवाह को भी पंजीकृत किया जा रहा था। सरकार के इस फैसले से उन बच्चियों को भी राहत मिलेगी जो कम उम्र में विवाह नहीं करना चाहती।
S.P.MITTAL BLOGGER (30-08-2024)
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