उपचुनाव की जीत से राजस्थान में सीएम भजनलाल शर्मा सबसे बड़े नेता बन गए हैं। नेतृत्व को चुनौती देने वाला कोई नहीं। हनुमान बेनीवाल और किरोड़ी लाल मीणा को अब कुछ समय चुप रहना चाहिए।
11 माह पहले जब भजनलाल शर्मा को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया गया, तब उनके नेतृत्व क्षमता को लेकर अनेक सवाल उठे। छह माह बाद लोकसभा चुनाव में प्रदेश की 25 में से 11 सीटों पर भाजपा की हार ने सीएम शर्मा पर अनेक सवाल उठाए। लेकिन अब उपचुनाव में 7 में से 5 सीटों पर जीत मिलने से भजनलाल शर्मा प्रदेश में सबसे बड़े नेता बन गए है। शर्मा के लिए सबसे अनुकूल बात यह है कि भाजपा में उनके नेतृत्व को चुनौती देने वाला कोई नहीं है। सतीश पूनिया, राजेंद्र राठौड़ जैसे नेता विधानसभा चुनाव हारने के बाद खुद ही अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपने गलत निर्णयों से राजनीतिक कद छोटा कर लिया। उपचुनाव में भी राजे की कोई सक्रियता देखने को नहीं मिली। पांच सीटों पर जीत इसलिए मायने रखती है कि गत चुनाव में सिर्फ सलूंबर सीट पर भाजपा की जीत हुई थी। देवली उनियारा, झुंझुनूं और रामगढ़ की सीट भाजपा ने कांग्रेस से छीनी, जबकि खींवसर की सीट आरएलपी से ली गइ्र। यह भी तब जब लोकसभा के चुनाव में खींवसर, देवली और झुंझुनूं से कांग्रेस और आरएलपी के सांसद बने। देवली में सांसद हरीश मीणा, झुंझुनूं में बृजेंद्र ओला और खींवसर में सांसद हनुमान बेनीवाल ने पूरी ताकत लगा रखी थी। झुंझुनूं में तो सांसद ओला के पुत्र अमित ओला और खींवसर सांसद बेनीवाल की पत्नी कनिका बेनीवाल उम्मीद थी। इतना ही नहीं देवली वाली सीट पर टोंक के विधायक पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने पूरी ताकत लगा रखी थी। अलवर की रामगढ़ सीट पर आमतौर पर कांग्रेस का कब्जा रहा है। इन विपरीत परिस्थितियों के बाद भी भाजपा को इन सीटों पर जीत मिली है। स्वाभाविक है कि इसका श्रेय सीएम भजनलाल शर्मा को ही मिलेगा। जहां तक आदिवासी बाहुल्य डूंगरपुर की चौरासी सीट का सवाल है तो भले ही बीएपी के अनिल कटारा ने 23 हजार मतों से जीत दर्ज की हो, लेकिन गत चुनाव में इसी पार्टी के राजकुमार रोत 70 हजार मतों से जीते थे। मौजूदा समय में राजकुमार रोत सांसद हैं, लेकिन फिर भी 48 हजार मतों की खाई को पार किया गया। यानी चौरासी में भी भाजपा का प्रभाव बढ़ा है। कहा जा सकता है कि अब भजनलाल शर्मा प्रदेश में भाजपा की राजनीति में सबसे बड़े नेता है। प्रदेश का कोई भी नेता उन पर दबाव डालने की स्थिति में नहीं है।
बेनीवाल और किरोडी चुप रहे:
प्रदेश के उपचुनावों में सबसे बड़ा झटका आरएलपी के सांसद हनुमान बेनीवाल और प्रदेश के कृषि मंत्री डॉ. किरोड़ी लाल मीणा को लगा है। यह दोनों ही नेता बड़बोले है। बेनीवाल तो स्वयं को प्रदेश की राजनीति का सबसे बड़ा नेता मानते हैं और किरोड़ी मीणा को यह मुगालता है कि उनकी वजह से प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी है। इतने गुमान के बाद भी बेनीवाल अपनी पत्नी और किरोड़ी लाल मीणा अपने भाई को चुनाव नहीं जितवा सके। किरोड़ी के समर्थक अब भले ही यह आरोप लगाए कि दौसा सीट पर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा अपनी ब्राह्मण जाति के वोट नहीं दिला सके, लेकिन मीणा की हार का सबसे बड़ा कारण किरोड़ी लाल का बड़बोलापन ही रहा है। इधर खींवसर में प्रचार के दौरान बेनीवाल ने कांग्रेस खासकर जाट नेताओं पर जो प्रतिकूल टिप्पणी की उसका खामियाजा कनिका बेनीवाल को उठाना पड़ा। बेनीवाल ने 2023 का चुनाव मात्र 2059 मतों से जीता था, लेकिन इन मतों की जीत को बेनीवाल ने गंभीरता से नहीं लिया। इसलिए उनकी पत्नी पुराने उम्मीदवार रेवत राम डांगा से 14 हजार मतों से हार गई। इसमें कोई दो राय नहीं कि हनुमान बेनीवाल और किरोड़ी लाल मीणा का राजनीतिक सफर संघर्ष पूर्ण रहा है। दोनों ही लोकप्रिय नेता है। लेकिन उनकी लोकप्रियता पर उनका बड़बोला पन पानी फेर देता है। अच्छा हो कि अब कुछ समय के लिए यह दोनों नेता शांत रहे। चुप रहने से उनकी ताकत फिर से संग्रहीत होगी।
S.P.MITTAL BLOGGER (24-11-2024)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9166157932To Contact- 9829071511