दहेज प्रताड़ना के कानून से भी ज्यादा खतरनाक है एससी एसटी का कानून। हजारों लोग बेवजह जेलों में पड़े हैं। अधीनस्थ अदालतें भी जमानत नहीं दे रही।

दहेज प्रताड़ना कानून के अंतर्गत हुई कार्यवाहियों से परेशान होकर बेंगलुरू के एआई इंजीनियर अतुल सुभाष के सुसाइड कर लेते के बाद अब देशभर में दहेज प्रताड़ना कानून के नाम पर हो रही ज्यादतियों को लेकर चर्चा हो रही है। न्यूज़ चैनलों पर इस कानून के प्रावधानों को लेकर बहस हो रही है। अधिकांश लोगों का मानना है कि इस कानून की आड़ में निर्दोष लोगों को परेशान किया जाता है। पीड़ित महिला के बयान के आधार पर ही पति के साथ साथ सास ससुर, ननद देवरानी आदि रिश्तेदारों को भी मुजरिम बना दिया जाता है। भले ही पीड़ित महिला अपने पति के साथ दूसरे शहर में रहती हो, लेकिन फिर भी ससुराल वालों पर आरोप लगाए जाते हैं। इंजीनियर अतुल सुभाष ने सुसाइड करने से पहले एक वीडियो बनाया और अपने केस के बारे में विस्तृत जानकारी दी। अतुल सुभाष का कहना रहा कि पुलिस ही नहीं अदालतें भी दहेज प्रताड़ना के मामले में न्याय नहीं कर रही है। पुलिस में चल रहे भ्रष्टाचार को भी अतुल ने उजागर किया है। आज देश भर में जिस तरह दहेज प्रताड़ना कानून को लेकर चर्चा हो रही है, वैसी ही चर्चा एससी एसटी (अत्याचार निवारण) कानून को लेकर भी होनी चाहिए। इस कानून में भी शिकायतकर्ता के आरोप मात्र पर ही गिरफ्तारी हो जाती है। संबंधित व्यक्ति ने जातिसूचक शब्द बोलकर अपमानित किया या नहीं इसकी जांच बाद में होती है। प्रथम दृष्टया यह माना जाता है कि एससी एसटी वर्ग के व्यक्ति ने जो बात कही है, वह सही है। गंभीर बात तो यह है कि बिना जांच के गिरफ्तारी होने पर अधीनस्थ अदालतें भी जमानत नहीं देती है। जबकि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने कई बार कहा है कि अधीनस्थ अदालतों को जमानत देने से घबरा नहीं चाहिए। यदि न्यायाधीश को यह लगता है कि आरोपी व्यक्ति निर्दोष है तो जमानत दी जानी चाहिए। आज जिस प्रकार दहेज प्रताड़ना कानून के दुरुपयोग के आरोप लग रहे हैं उसी प्रकार एससी एसटी कानून के दुरुपयोग की भी खबरें आ रही है। रिकॉर्ड बताता है कि एससी एसटी के आधे से ज्यादा मामलों में अदालतों में आरोप लगाने वाला व्यक्ति बयान बदला देता है। कई मामलों में समझौता भी हो जाता है। यह सही है कि समाज में सामाजिक  भेदभाव को समाप्त करने के लिए एससी एसटी (अत्याचार निवारण) कानून बनाया गया है। कई मामलों में यह कानून जरूरी भी है, लेकिन देखने में आया है कि व्यक्तिगत दुश्मनी निकालने के लिए भी ऐसे आरोप लगा दिए जाते हैं। यदि किसी श्रमिक को मन मर्जी का मेहनताना नहीं मिला तो वह भी संबंधित व्यक्ति के खिलाफ एससी एसटी कानून में मुकदमा दर्ज करवा देता है। कई बार अधीनस्थ कर्मचारी उच्च अधिकारी के खिलाफ भी ऐसा मुकदमा दर्ज करवा देता है। जब रिपोर्ट लिखाई जाती है तो सबसे ज्यादा मौज पुलिस की होती है। बिना जांच के गिरफ्तारी का डर दिखाकर पुलिस अपना स्वार्थ पूरा कर लेती है। ऐसे मामलों में भारी लेनदेन होता है। जो व्यक्ति मोटी राशि देने में असमर्थक है उसे जेल जाना ही पड़ता है। इस कानून के कारण ही आज हजारों लोग बेवजह जेलों में पड़े हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में जब एससी एसटी वर्ग के लोग प्रशासन के साथ साथ राजनीति में भी उच्च पदों पर बैठे हैं, तब इस कानून के सख्त प्रावधानों पर विचार होना ही चाहिए। 

S.P.MITTAL BLOGGER (12-12-2024)
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