क्या सुप्रीम कोर्ट उन अफसरों पर कार्यवाही करेगा, जिन्होंने स्मार्ट सिटी के काम करवाए? जब सरकारी निर्माण ही टूट रहे हैं तो आनासागर के किनारे बसी आवासीय कॉलोनियों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों का क्या होगा? सेवन वंडर, फूड प्लाजा, गांधी स्मृति उद्यान आदि तोड़ने का मामला।

स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में अजमेर में आनासागर के किनारे भराव क्षेत्र में बनाए गए फूड प्लाजा, सेवन वंडर की इमारतों, गांधी स्मृति उद्यान आदि पक्के निर्माण को जेसीबी से तोडऩे का काम 11 मार्च को भी जारी रहा। तोडफ़ोड़ की यह कार्यवाही सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप 10 मार्च से शुरू हुई थी। यदि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेशों पर पूरी तरह अमल होता है तो आनासागर के किनारे 10 किलोमीटर लम्बे बने पाथवे को भी तोडऩा पड़ेगा। आरोप है कि आनासागर के भराव क्षेत्र की जिस आद्र्र भूमि (वेटलैंड) पर पेड़ लगाए जाने चाहिए थे, उस पर अधिकारियों ने पक्के निर्माण करवा दिए। सुप्रीम कोर्ट की सख्त कार्यवाही से बचने के लिए राजस्थान के मुख्य सचिव सुधांश पंत ने सरकारी पक्के निर्माण तुड़वा दिए। पंत का मानना रहा कि सरकारी इमारतों को बचाने के लिए वे सजा क्यों भुगते। इन पक्के निर्माणों पर 150 करोड़ रुपए से भी ज्यादा की राशि खर्च हुई है। लेकिन सारा पैसा केंद्र और राज्य सरकार का है। किसी भी अधिकारी ने एक रुपया भी अपनी जेब से नहीं लगाया। जब अधिकारियों ने एक रुपया भी नहीं लगाया तो फिर ऐसे निर्माणों को तोड़ने में कोई दुख भी नहीं हो रहा। सब जानते हैं कि सरकार जो पैसा खर्च करती है, वह जनता का ही होता है। देखा जाए तो यह अजमेर के लोगों का ही नुकसान है। मुख्य सचिव सुधांश पंत ने तो स्मार्ट सिटी के पक्के निर्माण तुड़वा दिए, लेकिन सवाल उठता है कि क्या सुप्रीम कोर्ट उन अफसरों पर कार्यवाही करेगा, जिन्होंने नियमों का उल्लंघन कर ऐसे निर्माण करवाए? कायदे से सुप्रीम कोर्ट को उन अफसरों पर कार्यवाही करनी चाहिए जिन्होंने स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में होने वाले कार्यों का चयन किया। यहां खासतौर से उल्लेखनीय है कि स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में जनप्रतिनिधियों और शहर के जागरूक नागरिकों की भागीदारी भी रही है। उन जागरूक नागरिकों के नाम भी उजागर होने चाहिए, जिन्होंने सेवन वंडर, फूड प्लाजा, पाथवे जैसे कार्यो को करवाने पर सहमति दी। अजमेर के जनप्रतिनिधि भी अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते हैं। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट की कार्यसमिति में नगर निगम के मेयर, अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष, विधायक, सांसद आदि भी प्रतिनिधि होते हैं। ऐसे में स्मार्ट सिटी के कार्यों की जिम्मेदारी इन सबकी भी है। अजमेर की जनता बहुत भोली है, इसलिए अधिकारी और जनप्रतिनिधि अपनी मनमर्जी करते है। अच्छा हो कि सुप्रीम कोर्ट स्मार्ट सिटी के कार्यों को हटाने के साथ साथ उन अधिकारियों पर भी कार्यवाही करें जो इन कार्यों के लिए जिम्मेदार हैं। 

आवासीय कॉलोनियों और व्यावसायिक प्रतिष्ठान:
जब स्मार्ट सिटी के पक्के निर्माण ही टूट रहे हैं, तब सवाल उठता है कि आनासागर के भराव क्षेत्र में बसी आवासीय कॉलोनियों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों का क्या होगा? देखा जाए तो आनासागर के किनारे ऋषि उद्यान से लेकर सर्किट हाउस के नीचे तक की भूमि भराव क्षेत्र में ही आती है। ऐसे में इस दस किलोमीटर में जो भी निर्माण है उन्हें टूटना चाहिए। अब आवासीय कॉलोनियों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को बचाने में प्रशासन की भी कोई रुचि नहीं होगी। प्रशासन ने पूर्व में भी आनासागर के किनारे बसी कॉलोनियों को हटाने को लेकर कार्यवाही की है। कुछ माह पहले ही रीजनल कॉलेज के सामने सभी व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को सीज किया गया है। इसमें कोई दो राय नहीं कि अजमेर शहर के बीचों बीच बनी आनासागर झील प्राकृतिक सौंदर्य में चार चांद लगाती है। यदि आनासागर की भराव क्षमता पहले की तरह 16 फीट हो जाती है तो इससे भूमिगत जलस्तर में भी वृद्धि होगी। सेवन वंडर जैसी इमारतों के टूटने से आनासागर के किनारे बसी कॉलोनियों में दहशत का माहौल है। 

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