अपनी सरकार को टिकाए रखने के लिए अशोक गहलोत ने विधायकों को ही नहीं तत्कालीन राज्यपाल कलराज मिश्र को भी पटाए रखा। इसलिए राजस्थान की यूनिवर्सिटी में उत्तर प्रदेश के शिक्षाविद ही कुलपति नियुक्त हुए। भजन सरकार ने तो सवा वर्ष में सिर्फ दो ही कुलपति बनाए। शेष गहलोत सरकार के ही है। टीकाराम जूली को विधानसभा में बोलने से पहले गहलोत सरकार के कामकाज को देख लेना चाहिए।

20 मार्च को राजस्थान विधानसभा में जब विश्वविद्यालयों में कुलपति पद का नाम कुलगुरु करने का प्रस्ताव स्वीकृत हुआ तो प्रतिपक्ष के नेता टीकाराम जूली ने अनेक महत्वपूर्ण बातें कही। जूली का कहना रहा कि अब कुलगुरुओं को विश्वविद्यालयों में अपने नाम के अनुरूप आचरण भी करना चाहिए। उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि राजस्थान में 32 यूनिवर्सिटी में से सिर्फ चार में ही राजस्थान के शिक्षाविद् नियुक्त है। जूली ने कहा कि विश्वविद्यालयों में कुलपति पद की सबसे बड़ी योग्यता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा वाला शिक्षाविद होना चाहिए। शायद जूली ने इस बात को कहने से पहले अपनी कांग्रेस पार्टी की अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली सरकार के कामकाज का अध्ययन नहीं किया। जूली को पता होना चाहिए कि प्रदेश में भजनलाल शर्मा के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बने हुए सवा वर्ष हुए हैं और इस अवधि में सिर्फ दो यूनिवर्सिटी में कुलपतियों की नियुक्ति हुई है। मौजूदा समय में अजमेर, जोधपुर और कोटा यूनिवर्सिटी के साथ साथ जोधपुर एग्रीकल्चर और बीकानेर टेक्निकल यूनिवर्सिटी में कुलपतियों के पद रिक्त पड़े हैं। यानी प्रदेश में सभी 32 यूनिवर्सिटी में कुलपतियों की नियुक्ति अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में हुई। टीकाराम जूली को यह बताना चाहिए कि क्या गहलोत ने मुख्यमंत्री रहते हुए प्रदेश की यूनिवर्सिटी में संघ विचारधारा वाले शिक्षाविदों की नियुक्ति की। सब जानते हैं कि गहलोत ने पांच वर्ष तक अपनी सरकार  को किस प्रकार टिकाए रखा। अगस्त 2030 में जब डिप्टी सीएम सचिन पायलट के नेतृत्व में कांग्रेस के 18 विधायक एक माह के लिए दिल्ली चले गए, तब गहलोत को अपने समर्थक विधायकों को लेकर जयपुर और जैसलमेर की होटलों में बंद रहना पड़ा। इसके बाद 25 सितंबर 2022 को गहलोत ने स्वयं को मुख्यमंत्री बनाए रखने के लिए कांग्रेस के 90 विधायकों के इस्तीफे दिलवा दिए। स्वाभाविक है कि विधायकों को अपने पक्ष में रखने के लिए गहलोत ने अनेक तौर तरीके अपनाए। विधायकों के साथ साथ केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा नियुक्त राज्यपाल कलराज मिश्र को भी पटाए रखने में गहलोत ने कोई कसर नहीं छोड़ी। किसी भी राज्यपाल को पटाए रखने में सबसे बड़ी भूमिका कुलपतियों की नियुक्त होती है। यह सही है कि राज्यपाल ही कुलपति की नियुक्ति करते हैं, लेकिन यह नियुक्ति राज्य सरकार की सिफारिश पर होती है। टीकाराम जूली को इस सच्चाई का पता होना चाहिए कि कलराज मिश्र ने जिन शिक्षाविदों के नाम अशोक गहलोत को बताएं, उन्हीं नामों की सिफारिश राज्य सरकार की ओर से राजभवन को की गई। चूंकि राज्यपाल मिश्र को खुश रखना जरूरी था, इसलिए राजस्थान की यूनिवर्सिटी में उत्तर प्रदेश के शिक्षाविद ही कुलपति बना। यदि गहलोत और मिश्र में सांठगांठ नहीं होती तो  उत्तर प्रदेश के बताए राजस्थान के शिक्षाविद कुलपति बनाए जाते। 32 यूनिवर्सिटीज में से याद मात्र चार यूनिवर्सिटी में राजस्थान के कुलपति नियुक्त है तो इस सवाल का जवाब जूल को अपने नेता अशोक गहलोत से लेना चाहिए। 

मोटी अटैची और कुलपति:
कुलपति से कुलगुरु बनाए जाने की चर्चा के दौरान ही निर्दलीय विधायक रविंद्र भाटी ने विधानसभा में आरोप लगाया कि  मोटी अटैची लेकर कुलपतियों की नियुक्ति होती है। जब मोटी अटैची देकर कोई व्यक्ति शिक्षाविद बनता है तो वह तीन वर्ष में अनेक अटैचियसों को भरने का काम करता है। भाटी ने कहा कि राजस्थान में कई यूनिवर्सिटी के कुलपति भ्रष्टाचार के आरोप में पकड़े भी गए है। रविंद्र भाटी ने जो सवाल उठाए उसका जवाब भी अशोक गहलोत को ही देना चाहिए। 

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