भूजल विधेयक को वापस लेना राजस्थान की भाजपा सरकार की कमजोरी दर्शाता है। विधानसभा के इतिहास में पहला अवसर है, जब प्रवर समिति से आया प्रस्ताव समिति को वापस भेजा। जब हरियाणा और मध्यप्रदेश से पानी लाया जा रहा है तो राजस्थान में पानी की किल्लत क्यों बताई जा रही है? क्या इससे निवेश पर फर्क नहीं पड़ेगा?
19 मार्च को विधानसभा में राजस्थान भूजल संरक्षण एवं प्रबंध प्राधिकरण विधेयक सरकार की ओर से प्रस्तुत तो किया गया, लेकिन कुछ ही देर में जलदाय मंत्री कन्हैयालाल चौधरी ने इस विधेयक को वापस ले लिया। चौधरी ने कहा कि प्रस्ताव पर विपक्ष ने जो आपत्तियां दर्ज करवाई है, उन्हें देखते हुए विधेयक को फिर से विधानसभा की प्रवर समिति में भेजा जा रहा है। गंभीर बात यह है कि यह प्रस्ताव प्रवर समिति में विचार विमर्श के बाद ही आया था। राजस्थान विधानसभा के इतिहास में संभवत: पहला अवसर रहा, जब प्रवर समिति से आया कोई विधेयक वापस प्रवर समिति को भेज दिया गया। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा माने या नहीं, लेकिन भूजल प्राधिकरण विधेयक वापस प्रवर समिति को भेजना सरकार की कमजोरी को दर्शाता है। इससे प्रतीत होता है कि सरकार पूरी तैयारी के साथ विधेयकों को सदन में नहीं ला रही है। जब कोई विधेयक सदन में रखा जाता है तो उसे प्रवर समित में इसलिए भेजा जाता है ताकि पक्ष-विपक्ष अपनी राय रख सके। प्रवर समिति को भी वो ही अधिकार होते हैं, जो विधानसभा को है। यह विधेयक गत वर्ष एक अगस्त को प्रवर समिति को भेजा गया था। यानी इस विधेयक ने समिति ने 6 माह तक मंथन हुआ। छह माह तक मंथन के बाद भी सरकार के विधेयक को वापस लेना पड़े यह सरकार के लिए अच्छी बात नहीं है।
क्यों बताई जा रही है किल्लत:
भूजल प्राधिकरण का जो विधेयक प्रस्तुत किया गया। उस में सरकार की ओर से बताया गया कि राजस्थान में भूजल का गहरा संकट है, इसलिए भूजल निकासी को लेकर सख्त कानून बनाया जा रहा है। इसके अंतर्गत जमीन से पानी निकालने वालों से शुल्क वसूला जाएगा। यानी जो लोग मौजूदा समय में अपने घरों में और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में ट्यूबवेल लगाकर जमीन से पानी निकालते हैं उन्हें शुल्क देना होगा। यहां तक कि हैंडपंप खोदने के लिए भी सरकार से अनुमति लेनी होगी। यदि कोई व्यक्ति इन कानूनों का उल्लंघन करेगा तो उस पर एक लाख तक का जुर्माना और छह माह तक की कैद होगी। प्रस्तुत विधेयक में प्रदेश में भूजल के गिरते स्तर पर चिंता जताई गई। सरकार की ओर से यह चिंता तब जताई जा रही है, जब ईआरसीपी लिंक परियोजना के माध्यम से मध्यप्रदेश से राजस्थान में पानी लाया जा रहा है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ईआरसीपी का शुभारंभ करते हुए कहा है कि अब राजस्थान में पानी की कोई किल्लत नहीं रहेगी। यहां तक कहा गया कि ईआरसीपी के तहत टोंक जिले के ईसरदा में 28 गेट वाला बांध बनकर तैयार हो गया है। अब बरसात में बीसलपुर बांध का जो पानी ओवरफ्लो होगा, उसे ईसरदा में रोक लिया जाएगा। एक और पानी के क्षेत्र में राजस्थान को आत्मनिर्भर बनाने के दावे किए जा रहे है तो दूसरी ओर भूजल प्राधिकरण जैसा विधेयक प्रस्तुत कर पानी की किल्लत बताई जा रही है। यह सरकार का विरोधाभासी रवैया प्रदर्शित करता है। राइजिंग राजस्थान के माध्यम से 35 लाख करोड़ के निवेश की बात कही जा रही है, लेकिन यदि भूजल निकासी पर शुल्क वसूला जाएगा तो कोई भी उद्योगपति राजस्थान में निवेश नहीं करेगा।
S.P.MITTAL BLOGGER (20-03-2025)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9166157932To Contact- 9829071511