आरजीएचएस का मतलब अस्पताल, चिकित्सक, कार्मिक, मेडिकल स्टोर और सरकार का हैरेसमेंट । 250 करोड़ वाला बजट 350 करोड़ तक पहुंच रहा है। यानी प्रतिमाह 100 करोड़ ज्यादा। निजी अस्पतालों और ब्यूरोक्रेसी के बीच समझ का अभाव। मेडिकल वाले आईएएस डॉक्टर समित शर्मा पशुपालन विभाग का काम देख रहे हैं।
राजस्थान में सरकारी कर्मियों के लिए आरजीएचएस (राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम) चल रही है। इसके अंतर्गत सरकारी कर्मचारियों का निजी अस्पतालों में फ्री इलाज की सुविधा है। लेकिन अब यह स्कीम अस्पतालों, चिकित्सकों, कार्मिकों, मेडिकल स्टोर और खुद सरकार के लिए हैरेसमेंट स्कीम बन गई है। सरकार ने मोटे तौर पर इस स्कीम में 250 करोड़ रुपए प्रतिमाह का प्रावधान कर रखा है, लेकिन सरकार के पास निजी अस्पतालों से 350 करोड़ रुपए से भी ज्यादा बिल पहुंच रहे हैं। सरकार को लगता है कि निजी अस्पताल फर्जीवाड़ा कर रहे हैं और निजी अस्पतालों के मालिकों को लगता है कि सरकार बेवजह परेशान कर रही है। फर्जीवाड़े की आशंका के मद्देनजर सरकार ने निजी अस्पतालों को 100 करोड़ रुपए का भुगतान नहीं किया है। इतना ही नहीं फर्जीवाड़े की आशंका को देखते हुए प्रदेश के कई प्रतिष्ठित अस्पतालों पर जुर्माना लगाया गया है, तो कई अस्पतालों को इस स्कीम से पृथक (ब्लैकलिस्ट) कर दिया है। ब्यूरोक्रेसी ने लिखित में तो कोई आदेश नहीं दिया, लेकिन इशारा किया है कि आरजीएचएस में मरीजों की संख्या घटा दी जाए। यही वजह है कि निजी अस्पतालों आरजीएचएस काउंटरों पर लंबी लाइन लगने लगी है और आए दिन अस्पताल प्रबंधन तथा सरकारी कार्मिकों के साथ विवाद हो रहा है। कार्मिकों को लगता है कि निजी अस्पताल इलाज नहीं करना चाहते और निजी अस्पतालों के ऊपर ब्यूरोक्रेसी का डंडा है। ब्यूरोक्रेसी ने निजी अस्पतालों से कहा दिया है कि यदि मरीजों की संख्या नहीं घटाई तो किसी भी बिल का भुगतान नहीं किया जाएगा। ब्यूरोक्रेसी के डंडे से बचने के लिए अब प्रदेश भर के निजी अस्पतालों ने निर्णय किया है कि सरकार की इस स्कीम में किसी भी मरीज का इलाज नहीं किया जाएगा। राजधानी जयपुर और जोधपुर, उदयपुर शहरों के बड़े अस्पतालों ने तो सरकारी कर्मचारियों का इलाज करना भी बंद कर दिया है। अस्पतालों का कहना है कि जब मरीज की फोटो और अंगूठा अस्पताल के कम्प्यूटर (सरकारी पोर्टल) पर लगवाया जा रहा है, तब फर्जीवाड़े की कोई गुंजाइश नहीं है। हो सकता है कि गली मोहल्लों में चलने वाले कुछ निजी अस्पताल गड़बडिय़ां कर रहे हो,ं लेकिन जिन निजी अस्पतालों में सौ से अधिक कर्मचारी कार्यरत हो वहां ऐसा फर्जीवाड़ा संभव नहीं है। लेकिन ब्यूरोक्रेसी सभी अस्पतालों को एक डंडे से हांक रही है। ऐसा इसलिए भी हो रहा है कि ब्यूरोक्रेसी और अस्पतालों के बीच समझ का अभाव है। मौजूदा समय में प्रदेश के वित्त विभाग में व्यय सचिव का जिम्मा नवीन जैन के पास है। चूंकि नवीन जैन को चिकित्सकीय शिक्षा का ज्ञान नहीं है, इसलिए वे ऐसे निर्देश दे रहे हैं। जो अस्पतालों के डॉक्टरों के समझ से परे है। वहीं चिकित्सा शिक्षा के डॉ. समिति शर्मा के पास पशुपालन विभाग की जिम्मेदारी है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार ने आईएएस अफसरों के बीच कार्य का विभाजन किस प्रकार से हो रखा है। सरकार को यदि आरजीएचएस को सफल बनाना है तो ऐसे आईएएस की नियुक्ति करनी होगी जो चिकित्सा शिक्षा को भी समझता हो। निजी अस्पताल पहले से ही मांग कर रहे है कि आरजीएचएस में इलाज की दरों को बढ़ाया जाए। सरकार दरों को बढ़ाने के बजाए अस्पतालों पर जुर्माना लगा रही है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को चाहिए कि वह सीधे तौर पर निजी अस्पतालों के प्रतिनिधियों से संवाद करें और समस्या का समाधान निकाले। यदि तत्काल कोई समाधान नहीं निकाला तो इलाज के अभाव में मरीजों की मौतों की खबर आने लगेगी। ब्यूरोक्रेसी ने डंडे का जो डर दिखा रखा है उसकी वजह से अस्पतालों में गंभीर मरीजों का इलाज भी नहीं हो रहा। इस मामले में राज्य कर्मचारियों के जो संगठन बने हुए हैं, उन्हें भी दखल देना चाहिए। सबसे ज्यादा परेशानी अधिक उम्र के सेवानिवृत्त कर्मचारियों को हो रही है। सरकारी अस्पतालों का हाल तो नरक जैसा है, इसलिए कोई भी कर्मचारी अपना इलाज सरकार के अस्पताल में नहीं करवाना चाहता।
S.P.MITTAL BLOGGER (25-05-2025)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9166157932To Contact- 9829071511