अंग्रेजों की चालाकियों से राजे-रजवाड़ों को अहिल्याबाई ने पहले ही सावचेत कर दिया था। राजस्थान की सूचना अधिकारी नर्बदा इन्दौरिया ने अहिल्या बाई को लेकर महिला सशक्तिकरण पर प्रभावी आलेख लिखा।

लोकमाता का दर्जा प्राप्त अहिल्या बाई होल्कर की 300 वीं जयंती के उपलक्ष में देश भर में कार्यक्रम हो रहे है। 31 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्यप्रदेश के भोपाल में और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने राजस्थान के जयपुर में आयोजित समारोह में भाग लिया। दोनों नेताओं ने अहिल्या बाई होल्कर के जीवन के बारे में जानकारी दी और यह बताने का प्रयास किया कि आज 250 वर्ष बाद भी अहिल्या बाई की नीतियां प्रासंगिक है। अहिल्या बाई के जीवन की शुरुआत तब हुई, जब भारत में अंग्रेज पैर पसार रहे थे। तभी अहिल्या बाई जैसी नेत्री ने अंग्रेजों की चालाकियों को समझा और राजे रजवाड़ों को सावचेत किया। अहिल्याबाई ने किन विपरीत हालातों में काम किया इसको लेकर राजस्थान के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग की अतिरिक्त निदेशक नर्बदा इन्दौरिया ने एक प्रभावी आलेख लिखा है। इस आलेख का प्रकाशन 31 मई को राजस्थान पत्रिका के संपादकीय पृष्ठ पर हुआ है। इंदौरिया के इस आलेख को यहां ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया जा रहा है। अहिल्या बाई होल्कर के जीवन के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 941407927 पर नर्बद इंदौरिया से ली जा सकती है।
 इन्दौरिया का आलेख 

साधारण परिवार में जन्म लेकर अखंड राष्ट्र की दृष्टि से हम सबको प्रेरित करती लोकमाता अहिल्याबाई पुण्यश्लोक हैं। उन्होंने मनसा, वाचा, कर्मणा सदैव लोकहित के कार्य ही किए। सत्तर वर्ष का उनका जीवन कर्तव्य की मिसाल है, जो बताता है कि अबोध बालिका से लेकर होलकर वंश की सोनबाई होने और फिर राजमाता से लोकमाता बन जाने तक प्रतिदिन -प्रतिपल परिवार, समाज और राष्ट्र जीवन की मर्यादाएं तय करते हुए किस तरह न्यायप्रिय, आध्यात्मिक-सात्विक-प्रजावत्सला, लोकदेवी और जनमानस के लिए प्रातः स्मरणीय हुआ जा सकता है। ये वह उपाधियां हैं, जो उनको जीते जी आमजन से प्राप्त हुईं।

उन्होने दिखाया कि युद्ध को राजकोष भरने का साधन न मानते हुए और राजकोष को युद्ध के लिए रिक्त न करने की नीति पर चलकर भी राज्य को सदैव सशक्त और सशस्त्र रखा जा सकता है। उनकी राजनीतिक समझ का आकलन इस बात से किया जा सकता है कि उन्होंने अंग्रेजी कूटनीति को भालू की गुदगुदी के समान घातक बताते हुए विभिन्न राजे-रजवाड़ों को उनसे सावधान रहने और अखंड भारत के लिए एक रहने की नेक सलाह दी। अहिल्याबाई ने अपनी ननद के साथ मिलकर 500 स्त्रियों की सैन्य टोली का गठन किया। उन्होंने स्वयं तोपखाने का निर्माण करवाया और महंगी बंदूक उपलब्ध कराने की अंग्रेजी नीति के प्रत्युत्तर में सेना में फ्रांसीसी अधिकारी की भर्ती कर बंदूकों का उत्पादन करवाया। 

यह लोकमाता की सामाजिक दूरदृष्टि थी कि स्त्रियों के अतिरिक्त समय का सदुपयोग करने के लिए वस्त्र उद्योग का ऐसा स्टार्टअप प्रारम्भ किया, जो आज तक महेश्वरी साड़ी के नाम से फलता-फूलता उद्योग है। उन्होंने अखिल भारतीय दृष्टिकोण के साथ देश में बद्रीनाथ से रामेश्वरम और द्वारिका से कोलकाता तक १०० से भी अधिक स्थानों पर मंदिर जीर्णोद्धार, धर्मशाला निर्माण, नदी किनारे घाट का निर्माण करवाया। उनका भोजन महेश्वर वाड़े के ३०० कर्मचारियों के साथ होता था, जिनमें दीवान से लेकर सफाईकर्मी भी भागीदार होते थे। काशी में कुशावर्त घाट बनवाया, जहां कोई भी दाह संस्कार कर सकता था। उन्होंने पर्यावरण और खेती के लिए नियम तैयार किए। नर्मदा का पृथक प्रवाह तैयार करवाया, ताकि नदी दूषित न हो। पशु-पक्षियों के लिए पृथक खेत रखवाए, जिन का अनाज बेचने की अनुमति नहीं थी। इसकी भरपाई राज्य से होती थी। शहरी नियोजन उनके समय किया गया, जिसमें उद्योग के अनुसार बस्तियां बसाई गईं। 

एक उज्ज्वल जीवन को स्मरण करने का यह सुअवसर जन्म त्रिशताब्दी वर्ष के रूप में प्राप्त हुआ है और आज उनकी जयंती है। सामाजिक प्रयासों से अखिल भारतीय स्तर पर अनेक कार्यक्रम, कार्यशाला, संगोष्ठी, लेखन, नाटिका इत्यादि के माध्यम से समाज में यह विषय पहुंचा है। अतीत से प्रेरणा लेकर भविष्य निर्माण करने की सीख का यह सुअवसर है जब किसी व्यक्तित्व को इतनी गहराई से जानने-समझने का प्रयास हुआ। 

मध्यकालीन समाज जब विदेशी आक्रमणों से आहत होकर स्वबोध विस्मृत कर बैठा था, धर्म के प्रति आग्रही नहीं रहा, यात्राओं के माध्यम से आस्था का प्रकटीकरण अवरुद्ध था,उस समय समाज की चेतना को झंकृत करने वाली वीणा के स्वर के समान लोकमाता का सम्बल-सहारा-समर्थन, कृति और नेतृत्व ईश्वरीय वरदान के रूप में सामने आया। शिवभक्त वीरांगना ने राजकार्य को %श्रीशिव आज्ञेकरुण% मानते हुए समस्त कार्य किए। उन्होंने स्वयं की क्षमता का अर्जन ही नहीं किया, शेष महिलाओं को भी आगे लेकर बढ़ीं। 

वह सिर्फ भौतिक विकास तक नहीं रुकीं, समाज की मानसिकता में भी परिवर्तन लाईं। उन्होंने विधवाओं को संपत्ति का अधिकार दिलाया। उस समय निसंतान विधवाओं की संपत्ति शासन को मिलती थी। अहिल्याबाई ने इसे कोष वृद्धि नहीं माना और इस पर विधवाओं को अधिकार दिलाया। सभी जातियों में विवाह के लिए दहेज की मनाही का आदेश जारी किया। महिलाओं की दरबार में सुनवाई होती थी। 

उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि अत्यंत स्थिर, किन्तु आग्रही रहते हुए, बिना कटुता उत्पन्न किए और विरोध न करके भी समाज के मानस को परिवर्तित किया जा सकता है। अहिल्याबाई ने उन सब अवधारणाओं के अर्थ बदल दिए, जहां व्यावहारिक जीवन में यह कहा जाता है कि धर्मपरायणता के साथ कूटनीति नहीं हो सकती, पराक्रम के साथ विनम्रता कठिन है, अथवा वैभव के साथ सात्विकता का दर्शन नहीं। लोकमाता अहिल्याबाई इन सबका अद्भुत संतुलन थीं।

वह सिर्फ भौतिक विकास तक नहीं रुकीं, समाज की मानसिकता में भी परिवर्तन लाईं। उन्होंने विधवाओं को संपत्ति का अधिकार दिलाया।S.P.MITTAL BLOGGER (01-06-2025)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9166157932To Contact- 9829071511

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