आपातकाल में यदि संविधान में समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द नहीं जोड़े जाते तो आज देश के हालात इतने खराब नहीं होते। धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देने वालों के कारण ही कश्मीर में चार लाख हिंदुओं को घर छोड़ना पड़ा।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने ही नहीं बल्कि संघ के साप्ताहिक अखबार आर्गनाइजर ने भी भारतीय संविधान से समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्दों को हटाने की वकालत की हे। संघ के इस विचार के बाद कांग्रेस और मुस्लिम वोटों पर राज्यों में सत्ता हासिल करने वाली पार्टियों ने कड़ा विरोध किया है। संघ के इस विचार के बाद विपक्षी पार्टियां केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा की मोदी सरकार पर भी हमलावर है। राहुल गांधी सहित अनेक नेताओं का कहना है कि यह विचार दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के अधिकारियों के खिलाफ है। विपक्षी दलों के नेताओं का कुछ भी कहना हो, लेकिन यदि 1976 में आपातकाल के दौरान गैर संवैधानिक तरीके से संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द नहीं जोड़े जाते तो आज देश के हालात इतने खराब नहीं होते। इतिहास गवाह है कि 1975 में श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपना प्रधानमंत्री का पद बचाने के लिए देश में आपातकाल लागू किया। इंदिरा गांधी का विचार रहा कि भारत पर राज करने का अधिकार सिर्फ उनके परिवार का ही है। सत्ता न छीने इसके लिए  पहले आपातकाल लगाया और फिर संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द जोड़ दिए गए। आज कांग्रेस के नेता कह रहे है कि संघ और भाजपा मिलकर संविधान को बदलना चाहते हैं, लेकिन राहुल गांध बताए कि उनकी दादी श्रीमती इंदिरा गांधी ने संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्द किस आधार पर शामिल किए? जबकि डॉ. भीमराव अंबेडकर ने जो संविधान बनाया उसमें यह दोनों शब्द शामिल नहीं है। क्या इन दोनों शब्दों को शामिल कर कांग्रेस ने संविधान बदलने का काम नहीं किया। आपातकाल में कांग्रेस ने संविधान ही नहीं बदला बल्कि लोकतंत्र की हत्या की। 1976 में संविधान में धर्मनिरपेक्षता का शब्द जोड़ने के बाद ही कश्मीर घाटी में आतंकवाद को बढ़ावा मिला। धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देने वालों के कारण ही कश्मीर घाटी से चार लाख हिंदुओं को प्रताड़ित कर भगा दिया गया। धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देने वालों को बताना चाहिए कि गत 22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में 26 हिंदू पर्यटकों की हत्या किस सोच के चलते की गई? क्या धर्मनिरपेक्षता का मतलब सिर्फ हिंदुओं पर अत्याचार करना है? आज ममता बनर्जी के शासन में पश्चिम बंगाल में हिंदुओं पर कितने अत्याचार हो रहे हैं, इसे पूरा देश देख रहा है। धर्मनिरपेक्षता की आड़ में ही भारत में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी और पाकिस्तानियों को बसा दिया गया है। अब समय आ गया है, जब देश के संविधान से उन दो शब्दों को हटाया जाना चाहिए, जिसे कांग्रेस ने आपातकाल में जबरन शामिल किया  था। जहां तक भारत में मुसलमानों की सुरक्षा का सवाल है तो दुनिया भर में मुसलमान भारत में ही सुरक्षित है। इसका मुख्य कारण ह यह है कि 25 करोड़ मुसलमान उन लोगों के साथ रह रहे हैं जो सनातन संस्कृति में भरोसा रखते है। दुनिया में एक मात्र सनातन धर्म है जिसमें सभी धर्मों का सम्मान होता है। जब तक मुसलमान भारत में सनातनियों के साथ रह रहे है, तब तक उन्हें कोई खतरा नहीं है। मुसलमानों के हालात बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे मुस्लिम देशों में देखे जा सकते हैं। अच्छा हो कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल मुसलमानों को उकसाने के बजाए सनातनियों के सम्मान की बात कहे। 

S.P.MITTAL BLOGGER (28-06-2025)
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