विधायक रहे नवल जी की ईमानदारी और सादगी से आज के जनप्रतिनिधि प्रेरणा ले सकते हैं।
नवल राय बच्चानी का परिवार भी उन परिवारों में शामिल रहा जो 1948 में देश के विभाजन की विभीषिका को झेलकर अजमेर पहुंचा। नवल जी के पिता सेवकराम जी भी सिंध प्रांत से विस्थापित होकर अजमेर आए थे। नवल जी की सबसे बड़ी परेशानी यह थी कि दो वर्ष पहले ही उनका विवाह हुआ था। नवविवाहिता पत्नी लाजवंती के साथ उस समय विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए अजमेर पहुंचे। सिंध में सब कुछ छोड़कर अजमेर में शरणार्थी बनकर रहे। लेकिन पिता सेवकराम जी और पुत्र नवल जी ने हिम्मत नहीं हारी और स्वयं को अजमेर में स्थापित किया। नवल जी और उनके पिता सिंध में भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए थे, इसलिए अजमेर में भी संघ की गतिविधियों से जुड़ गए। नवल जी के पास वैद्य की डिग्री थी, इसलिए अजमेर के हाथी भाटा में आयुर्वेद पद्धति से मरीजों का इलाज शुरू कर दिया। यही उनकी आजीविका रही। चूंकि नवल जी संघ की शाखाओं में नियमित जाते रहे, इसलिए आपातकाल के दौरान उन्हें भी जेल जाना पड़ा। नवल जी आपातकाल के पूरे 18 माह में अजमेर की सेंट्रल जेल में बंद रहे, तब उनकी पत्नी लाजवंती के सामने परिवार को पालने की समस्या खड़ी हो गई। लेकिन तब लाजवंती ने घर पर ही कागज की थैलियां बनाई और दुकानदारों को थैलिया बेचकर दो वक्त की रोटी का जुगाड़ किया। इस संघर्ष का प्रतिफल नवल जी को तब मिला जब वे अजमेर पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से विधायक बन गए। आपातकाल के बाद 1977 में जब चुनाव हुए तो नवल जी को संयुक्त विपक्ष का उम्मीदवार बनने का अवसर मिला। नवल जी ढाई वर्ष ही विधायक रह पाए क्योंकि 1980 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने राजस्थान में भैरोसिंह शेखावत के नेतृत्व वाली सरकार को भी बर्खास्त कर दिया था। चूंकि नवल जी राजनीति के दांव पेंच नहीं जानते थे, इसलिए बाद में राजनीति से अलग हो गए और पुन: संघ का कार्य शुरू कर दिया। उस समय उनके घर पर भैरो सिंह शेखावत, ललित किशोर चतुर्वेदी, हरिशंकर भाभड़ा, भंवरलाल शर्मा जैसे दिग्गज नेता प्रवास करते रहे। सिंध प्रांत से आने के बाद नवलजी की रेलवे में नौकरी भी लगी, लेकिन संघ कार्य के कारण नवल जी ने नौकरी के लिए अजमेर से बाहर नहीं गए। नवल जी की 14 वर्ष की उम्र में सिंध में संघ के स्वयंसेवक बन गए थे। 1970 में भारतीय जनसंघ के सचिव और फिर अध्यक्ष भी बने। 1980 में विधायक के पद से हटने के बाद दस वर्ष तक नवल जी ने निकटवर्ती खरेकड़ी गांव में विश्व हिंदू परिषद द्वारा संचालित आयुर्वेद धर्मार्थ चिकित्सालय में अपनी सेवाएं दी। इसके बाद नवल जी तीन बार अजमेर शहर भाजपा के अध्यक्ष बने। 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान जब विस्थापित आए तब भी उन्हें भारत की नागरिकता दिलवाने में नवल जी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चूंकि नवल जी को सिंधी भाषा का विशेष ज्ञान रहा, इसलिए वे राजस्थान सिंधी अकादमी के अध्यक्ष भी बने। नवल जी ने सिंध प्रांत के राजा दाहरसेन के जीवन पर एक पुस्तक भी लिखी। उन्होंने सिंधियों के आराध्य देव झूलेलाल जी और संघ के संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार जी के जीवन पर भी पुस्तक लिखी। यह सभी पुस्तकें सिंधी भाषा में लिखी गई। वैद्य होने के कारण नवल जी ने आयुर्वेद के नुस्खों पर भी एक पुस्तक लिखी है। नवल जी भारतीय सिंधी भाषा विकास परिषद के सदस्य भी रहे। संघ से जुड़े भारतीय सिंध सभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रहे। नवल जी के तीन पुत्र और तीन पुत्रियां हुई। नवल जी के सबसे छोड़े पुत्र सीताराम बच्चानी ने बताया कि बड़े भाई भगवान बच्चानी अजमेर नगर निगम के राजस्व निरीक्षक के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। जबकि दूसरे भाई भीष्म बच्चानी दिल्ली में योगा टीचर है। वे स्वयं अजमेर के आनंद नगर में अपना निजी व्यवसाय करते हैं। मोबाइल नंबर 9461594580 पर नवल जी के बारे में उनके पुत्र सीताराम बच्चानी से और अधिक जानकारी ली जा सकती है।
प्रेरणा ले सकते हैं:
आज के जनप्रतिनिधि नवल जी के जीवन से प्रेरणा ले सकते हैं। विधायक रहने के बाद भी नवल जी ने सादगी पूर्ण जीवन व्यतीत किया। आमतौर पर नवल जी पैदल ही चलते थे। 2019 में निधन से पहले अजमेर के लोगों ने नवल जी को सड़क पर पैदल चलते ही देखा है। उन्होंने अजमेर में कोई बड़ीसंपत्ति अर्जित नहीं की। हाथी भाषा के जिस किराए के मकान में अपना औषधायल खोला उसे ही बाद में खरीदा। नलव जी की सादगी के कारण ही संघ में आज उनका नाम सम्मान के साथ लिया जाता है।
S.P.MITTAL BLOGGER (06-10-2025)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9166157932To Contact- 9829071511