अजमेर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। भाग – 16 ================ स्वयंसेवकों के प्रेरणा स्रोत रहे धर्मनारायण जी। अजमेर में पहली बार 600 स्वयंसेवकों का पथ संचालन।
अजमेर में वर्षों तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में सक्रिय रहे धर्मनारायण जी सही मायने में चलती फिरती ज्ञान और अनुशासन की पाठशाला थे। जो भी व्यक्ति एक बार संपर्क में आया वह फिर धर्मनारायण जी द्वारा दी गई शिक्षा के अनुरूप ही आचरण करता था। विगत दिनों ही 82 वर्ष की उम्र में धर्मनारायण जी निधन हुआ। जीवन के अंतिम समय में भी वे विश्व हिंदू परिषद से जुड़े रहे। हजारों स्वयंसेवक आज भी उन्हें प्रेरणा स्त्रोत मानते हैं। 70 के दशक में धर्मनारायण जी संघ के प्रचारक की भूमिका में रहे। पहले वे भीलवाड़ा के जिला प्रचारक। उस समय भंवर सिंह जी शेखावत विभाग प्रचारक थे। शिक्षा वर्ग में मुख्य शिक्षक की भूमिका के बाद धर्मनारायण जी को अजमेर में विभाग प्रचारक बनाया गया। उस समय अजमेर, भीलवाड़ा और चित्तौड़ को मिलाकर प्रांत हुआ करता था। धर्मनारायण जी ने होली के पर्व पर अजमेर में एक नई परंपरा शुरू की। सभी स्वयंसेवकों को लेकर टोली के रूप में परकोटे में भ्रमण करते थे। साथ में एक थैला जिस पर माइक लगा होता था। स्वयंसेवकों की टोली घोष की आवाज के साथ गीत गाते हुए निकलती थी। स्वयं धर्मनारायण जी भी गीत गाते थे। वरिष्ठ स्वयंसेवक भाऊ प्रभुदास जी का तब जगाया तुमको कितनी बार गीत बहुत लोकप्रिय हुआ। पुष्कर में हुई एक वैचारिक गोष्ठी में स्वयंसेवकों ने निर्णय लिया कि बड़ा पथ संचलन निकाला जाए। तब अजमेर में पहली बार 600 स्वयंसेवकों का पथ संचलन निकाला। उन्हीं दिनों पटेल मैदान पर गुरुजी माधव सदाशिव गोलवरकर जी का कार्यक्रम भी हुआ। उन दिनों अजमेर में स्वयंसेवकों का खास प्रभाव था। उन्हीं दिनों भंवर सिंह जी ने तीन बुलेट गाड़ी खरीदी। चित्तौड़ और भीलवाड़ा के साथ साथ एक बुलेट अजमेर को भी दी गई। तब बुलेट से ही प्रवास होता था। तब चित्तौड़ में गुणवंत सिंह जी कोठारी तथा भीलवाड़ा में जयंती जी प्रचारक की भूमिका में थे। आपातकाल के दौरान यह बुलेट गाड़ी प्रचारकों के बहुत काम आई। आपातकाल लगने से पहले पुलिस ने संघ के हाथी भाटा कार्यालय में छापामार कार्यवाही की। चूंकि धर्मनारायण जी को पहले ही खबर लग गई थी, इसलिए वे साइकिल पर ही निकल गए। बाद में रेडियो पर सुना कि देश में आपातकाल लागू हो गया है। तब संघ पर भी प्रतिबंध लगाया गया। गिरफ्तारी से बचने के लिए धोती कुर्ता की जगह पेंट शर्ट पहनी और बांदनवाड़ा पहुंचकर ठाकुर रघुवीर सिंह जी के यहां प्रवास किया। आपातकाल के दौरान संघ योजना के अनुरूप धर्म नारायण जी 32 घरों में रहे। किसी एक स्वयंसेवक के घर ज्यादा दिन नहीं ठहरते थे। आपातकाल के दौरान जो अत्याचार हुए उसी का परिणाम रहा कि 1977 में कांग्रेस और तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को हार का सामना करना पड़ा। इंदिरा गांधी की हार पर तब गंज में मे वालों के स्थान पर भी पटाखे छोड़े गए। सरकार की ज्यादतियों के विरोध में स्वयंसेवकों ने सत्याग्रह भी किया। तब अनेक स्वयंसेवकों को जेल जाना पड़ा। जो स्वयंसेवक जेल जाते थे, उनके कसे अदालतों में ओंकार सिंह जी लखावत और नानकराम जी इसराणी निशुल्क लड़ते थे। एक बार जब एक स्वयंसेवक को दो वर्ष की जेल की सजा हुई तो लखावत जी ने संबंधित न्यायाधीश के साथ असहयोग किया। न्यायाधीश के व्यवस्ािर की शिकायत राज्यपाल तक से की गई। इसका असर न्यायाधीश पर पड़ा और फिर स्वयंसेवकों के मुकदमों में न्याय पूर्ण कार्यवाही होने लगी। राम जन्मभूमि आंदोलन में धर्म नारायण जी मध्य प्रदेश महाकौशल प्रांत के सह प्रचारक के रूप में रहे, लेकिन उनका अजमेर से लगाव कभी समाप्त नहीं हुआ। उन्हें जब भी समय मिलता तब वे अजमेर आते और संघ कार्यालय में प्रवास करते। अब जब संघ के सौ वर्ष पूरे हुए हैं, तब धर्मनारायण जी जैसे स्वयंसेवकों को हर स्वयंसेवक याद कर रहा है। धर्मनारायण जी ने अपना पूरा जीवन संघ कार्यों को दिया। उनका हमेशा प्रयास रहा कि शाखा में अधिक से अधिक स्वयंसेवक आए और समाज में सकारात्मक माहौल बने। वे हमेशा नकारात्मकता के खिलाफ रहे। उनका मानना रहा कि सकारात्मकता से ही संघ के विचारों को आगे बढ़ाया जा सकता है। धर्मनारायण जी जैसे प्रचारकों की सोच के कारण ही आज संघ समाज सेवा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
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