भाजपा नेताओं में अंता जैसी खींचतान रही तो राजस्थान में तीन वर्ष बाद कांग्रेस की सरकार बन जाएगी। राजस्थान के भाजपाई बिहार की जीत का श्रेय ले रहे हैं, ऐसे नेताओं को अंता की हार पर शर्म आनी चाहिए। भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व को दखल देने की जरुरत। नरेश मीणा ने खुद की तुलना झारखंड के नेता शिबू सोरेन से की।

वर्ष 1998 के बाद से ही राजस्थान में एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस की सरकार बनी है। यानी 1998 के बाद किसी भी दल की सरकार रिपीट नहीं हुई है। वर्ष 2023 में अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री रहते हुए कांग्रेस की सरकार को रिपीट करवाने के सारे तौर तरीके अपनाए, लेकिन फिर भी सरकार बदलने की परंपरा बनी रही। वर्ष 2023 में भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व में वसुंधरा राजे जैसे पुराने और दिग्गज नेताओं को पीछे धकेलते हुए पहली बार विधायक बने भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाया। तब राष्ट्रीय नेतृत्व की मंशा वर्ष 2028 में भाजपा सरकार को रिपीट करवाने की रही। भजन लाल शर्मा के मुख्यमंत्री रहते हुए विधानसभा के सात उपचुनाव भी हुए, इनमें से पांच में भाजपा को जीत मिली। लेकिन 8वें अंता के उपचुनाव में भाजपा को बुरी हार का सामना करना पड़ा। अंता में भाजपा की हार तब हुई जब दो वर्ष पहले आम चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार कंवरलाल मीणा की जीत हुई थी। मीणा पांच हजार से ज्यादा वोटों से जीते, लेकिन 14 नवंबर को घोषित उपचुनाव के नतीजे में भाजपा उम्मीदवार मोरपाल सुमन को 15 हजार से भी अधिक वोटों से हार का सामना करना पड़ा। 5 हजार की जीत और 15 हजार की हार से अंता में भाजपा की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। भाजपा जैसी मजबूत और सत्तारूढ़ पार्टी के लिए यह भी अफसोस की बात है कि निर्दलीय प्रत्याशी नरेश मीणा ने 53 हजार 800 मत प्राप्त कर भाजपा की बराबरी कर ली। भाजपा को 53 हजार 959 वोट मिले। यानी निर्दलीय से मात्र 159 वोट ज्यादा। अंता में भाजपा की इस बुरी हार के पीछे दिग्गज नेताओं की खींचतान सामने आई है। यह सही है कि यहां भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे का दबदबा है। उनके पुत्र दुष्यंत सिंह लगातार तीसरी बार इस क्षेत्र से सांसद है। खुद वसुंधरा राजे भी झालावाड़ से विधायक है। राजे के प्रभाव को देखते हुए ही उन्हीं की पसंद के मोरपाल सुमन को उम्मीदवार बनाया गया। भाजपा के नेतृत्व ने चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी राजे को ही दी। यही वजह रही कि राजे के पुत्र और सांसद दुष्यंत सिंह ही चुनाव प्रभारी बने। चूंकि चुनाव की रणनीति राजे ने बनाई इसलिए किरोड़ी लाल मीणा, मदन दिलावर, हीरालाल नागर जैसे मंत्री प्रचार के लिए आए ही नहीं। जबकि इन तीनों मंत्रियों का खासा प्रभाव है। नहीं आने वाले नेताओं में पूर्व मंत्री प्रभुलाल सैनी भी शामिल है। वर्ष 2013 में इसी विधानसभा क्षेत्र से सैनी ने जीत हासिल की थी। तब सैनी कृषि मंत्री भी बने। अंता में माली जाति के चालीस हजार वोट है, लेकिन फिर भी प्रभुलाल सैनी का अंता नहीं जाना खींचतान को साफ दर्शाता है। पूरे चुनाव प्रचार में प्रदेश प्रभारी राधा मोहन अग्रवाल का राजस्थान न आना भी बड़े नेताओं में खींचतान होना दिखाता है। हाड़ौती के इस क्षेत्र में कोटा के सांसद और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला का भी प्रभाव है, लेकिन परदे के पीछे से भी ओम बिरला की कोई भूमिका देखने को नहीं मिली। जबकि बिरला के खिलाफ गत लोकसभा का चुनाव लड़ने वाले कांग्रेस के उम्मीदवार प्रहलाद गुंजल अंता में सक्रिय रहे। एक ओर जहां अंता में भाजपा की बुरी हार हुई है, वहीं भाजपा के वरिष्ठ नेता राजेंद्र राठौड़, सीपी जोशी, अविनाश गहलोत, कुलदीप धनखड़, दामोदर अग्रवाल, अतुल भंसाली, निहालचंद मेघवाल, ओम प्रकाश भडाना, वासुदेव चावला, श्रीमती सुमन शर्मा, हरलाल सारण आदि बिहार में हुई जीत का श्रेय ले रहे हैँ। इन नेताओं का कहना है कि वह भी भाजपा को जिताने के लिए बिहार गए थे। बड़ी अजीत बात है कि राजस्थान के भाजपाई बिहार में तो अपनी पार्टी को जितवा सकते हैं, लेकिन खुद के गृहप्रदेश में हुए उपचुनाव में जीत नहीं दिलवा सकते। अच्छा होता कि ये नेता बिहार जाने के बजाए अंता में अपनी पार्टी के पक्ष में प्रचार करते हैं। जहां तक पूर्व सीएम राजे का सवाल है तो उन्होंने पूरी ईमानदारी और मेहनत के साथ काम किया, लेकिन उपचुनाव में रणनीति को लेकर राजे ने जो अडिय़ल रवैया अपनाया, उसकी वजह से भाजपा के वरिष्ठ नेता अंता में नजर नहीं आए। नहीं आने वाले नेताओं की राजे ने भी परवाह नहीं की। चूंकि भाजपा उम्मीदवार का चयन राजे की पंसद से ही हुआ था, इसलिए इस हार की जिम्मेदारी भी राजे की ही है। जहां तक मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ का सवाल है तो ये दोनों नेता अपने पदों पर तभी तक कायम है, जब तक राष्ट्रीय नेतृत्व का संरक्षण है। अंता उपचुनाव के परिणाम की वजह से फिलहाल इन दोनों नेताओं का कोई खतरा नहीं है, लेकिन इस उपचुनाव के परिणाम को देखते हुए भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व को राजस्थान में दखल देने की जरूरत है। यदि अब भी दखल नहीं दिया तो गत 25 वर्षों से चली आ रही परंपरा के अनुरूप तीन वर्ष बाद 2028 में कांग्रेस की सरकार बन जाएगी।  
खुद की तुलना सोरेन से:
अंता में 53 हजार वोट प्राप्त करने वाले निर्दलीय उम्मीदवार नरेश मीणा ने अपनी तुलना झारखंड के आदिवासी नेता और भ्रष्टाचार के आरोप में जेल गए शिबू सोरेन से की है। 14 नवंबर को उपचुनाव के नतीजे आने के बाद मीणा ने कहा कि शिबू सोरेन भी शुरू के तीन चुनाव हारे, लेकिन बाद में पांच बार सांसद और दो बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने। अभी भी शिबू सोरेन के पुत्र हेमंत सोरेन झारखंड के मुख्यमंत्री हैं। मेरा भी अंता का तीसरा चुनाव रहा, जहां हार का सामना करना पड़ा, लेकिन मैं हार के बाद भी हाड़ौती क्षेत्र में सक्रिय रहंूंगा। 
S.P.MITTAL BLOGGER (15-11-2025)
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