पत्नी के शव को 10 किलो मीटर तक कंधे पर लाद कर चला एक आदिवासी। कुछ तो शर्म करें राजनेता और अधिकारी।

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25 अगस्त को एनडीटीवी न्यूज चैनल पर एक मार्मिक स्टोरी प्रसारित हुई, इसमें उड़ीसा राज्य के कालाहांड़ी जिले का एक आदिवादी दाना मांझी अपनी 42 वर्षीय पत्नी अमंग देई के शव को अपने कंधे पर लाद कर चल रहा था। दाना मांझी ने बताया कि 23 अगस्त की रात को भवानीपटना के जिला मुख्यालय के अस्पताल में टीबी की बीमारी से उसकी पत्नी की मौत हो गई। मांझी ने अस्पताल के चिकित्सकों से आग्रह किया कि पत्नी के शव को 60 किमी दूर मेलघारा गांव तक ले जाने के लिए एम्बुलैंस अथवा कोई वाहन उपलब्ध करवाया जाए। लेकिन संवेदनहीन चिकित्सकों ने वाहन का कोई इंतजाम नहीं किया। मांझी के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह किराया वहन कर शव को गांव तक ले जाता। फलस्वरूप शव को मांझी ने एक चादर में लपेटा और अपने कंधे पर रख कर अस्पताल से गांव की ओर पैदल ही चल पड़ा। मांझी के साथ उसकी 12 वर्षीय मासूम बेटी भी हाथ में थैला लेकर चल रही थी, जो लोग सत्ता पर काबिज हैं,उन्हें उस मासूम बेटी के मन की कल्पना करनी चाहिए। जिस बेटी के बाप के कंधे पर मां का शव लदा हो, वह बेटी किस मानसिक पीड़ा से गुजर रही होगी। मांझी जब पत्नी के शव को लाद कर चल रहा था, तब अनेक पत्रकारों ने देखा और कलेक्टर को सूचना दी। कलेक्टर के दखल से वाहन आता, तब तक मांझी 10 किमी तक की दूरी तय कर चुका था। इस दूरी में कई जगह पत्नी के शव को एक पेड़ के सहारे खड़ा किया, ताकि मांझी सांस ले सके। कई जगह तो 12 वर्षीय मासूम बेटी ने चादर में लिपटी मां के शव को पकड़ा। इस पूरे घटनाक्रम से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश के आदिवासी इलाकों में कितना विकास हुआ है। नवीन पटनायक उड़ीसा में लम्बे समय से सत्ता पर काबिज हैं, लेकिन दाना मांझी की कहानी बताती है कि विकास का लाभ आम आदिवासी तक नहीं पहुंचा है। ग्रामीण और खासकर आदिवासी क्षेत्रों में केन्द्र सरकार भी स्वास्थ्य सेवा पर करोड़ों रुपए खर्च करती है, लेकिन अब केन्द्र सरकार तो यही कहेगी कि यह मामता राज्य सरकार का है। इस मामले में जिला अस्पताल के उन चिकित्सकों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाही होनी चाहिए, जिनकी वजह से दाना मांझी को सरकारी वाहन उपलब्ध नहीं हुआ।
(एस.पी. मित्तल) (25-08-2016)
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