राजस्थान में पूर्णकालिक गृह मंत्री की सख्त जरूरत है। अब तो पुलिस दफ्तरों में ही लूटी जा रही है महिलाओं की इज्जत। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पास गृह व वित्त जैसे महत्वपूर्ण विभागों के साथ 20 से भी ज्यादा विभाग हैं। आखिर इतने विभागों के मुखिया क्यों बने हैं अशोक गहलोत? माथुर मंत्रिमंडल में गहलोत स्वयं भी गृहमंत्री रह चुके हैं।
यह सही है कि मंत्रिमंडल के विस्तार का विशेषाधिकार मुख्यमंत्री का होता है। कोई मुख्यमंत्री अपने पास कितने विभाग रखे यह अधिकार भी मुख्यमंत्री का ही है। इस अधिकार और विशेषाधिकार का इस्तेमाल राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पूरी शिद्दत के साथ कर रहे हैं। इस शिद्दत को चुनौती देने वाला भी कोई नहीं है। यही वजह है कि गृह और वित्त जैसे महत्वपूर्ण बड़े विभाग भी मुख्यमंत्री गहलोत के पास ही हैं। लेकिन जब प्रदेश की कानून व्यवस्था बिगड़ती है तो गृह विभाग पर सवाल उठते हैं। प्रदेश के सबसे बड़े अखबार राजस्थान पत्रिका ने 13 मार्च के अंक में भी प्रथम पृष्ठ पर बिगड़ती कानून व्यवस्था को लेकर अग्रलेख लिखा। इस अग्रलेख का शीर्षक था, ‘निर्वस्त्र होती पुलिस इसमें प्रदेश की गैंगरेप की ताजा घटनाओं का उल्लेख किया गया था। पता नहीं गृहमंत्री का जिम्मा संभाल रहे सीएम गहलोत ने राजस्थान पत्रिका का यह अग्रलेख पढ़ा या नहीं, लेकिन राजस्थान पुलिस के मुंह पर इससे बड़ा तमाचा नहीं हो सकता। जब पुलिस ही निर्वस्त्र हो जाए तो फिर क्या बचा? पुलिस को निर्वस्त्र हुए दो दिन भी नहीं हुए थे कि 14 मार्च को प्रदेश की राजधानी जयपुर के पुलिस उपायुक्त कार्यालय में ही एक सहायक पुलिस आयुक्त कैलाश बोहरा के द्वारा एक बलात्कार की पीड़ित महिला की इज्जत लूटने का मामला सामने आ गया। यह कोई आरोप नहीं बल्कि एसीबी के अधिकारियों ने एसीपी बोहरा को महिला की इज्जत लूटते रंगे हाथों पकड़ा। यदि कोई पीड़िता बलात्कार के आरोपी को पकड़ने के लिए पुलिस थाने आए और सहायक पुलिस आयुक्त स्तर का अधिकारी पीडि़ता की इज्जत लूटने लगे तो प्रदेश की पुलिस का अंदाजा लगाया जा सकता है। सवाल उठता है कि क्या पुलिस महकमे पर कोई नियंत्रण नहीं रहा है? अशोक गहलोत माने या नहीं, लेकिन प्रदेश का पुलिस विभाग पूरी तरह अफसरों पर निर्भर है। सिपाही से लेकर उच्चाधिकारी की ज्यातिदयों को सुनने वाला कोई नहीं है। थानाधिकारी ऐसे बर्ताव करते हैं जैसे वे ही राजा हो। थानाधिकारी को पुलिस अधीक्षक का भी डर नहीं हैं। चूंकि सीएम गहलोत बहुत व्यस्त हैं, इसलिए ज्यादतियों की शिकायत ऊपर तक नहीं पहुंचती है। पुलिस महकमा बड़ा महकमा है और प्रदेश में पूर्णकालिक गृहमंत्री होना ही चाहिए। भौगोलिक दृष्टि से राजस्थान देश का सबसे बड़ा प्रदेश है। ऐसे प्रदेश में यदि पूर्णकालिक गृहमंत्री नहीं होगा तो फिर पुलिस दफ्तरों में महिलाओं इज्जत लूटी ही जाएगी। सीएम गहलोत की नजर में पुलिस उपायुक्त कार्यालय में इज्जत लूटने की घटना भले ही मामूली हो, लेकिन महिला अत्याचार की इससे बड़ी घटना नहीं हो सकती। चूंकि प्रदेश में पूर्णकालिक गृहमंत्री भी नहीं है, इसलिए महिला थानों और महिला शाखाओं का प्रभारी भी पुरुष पुलिस अफसरों को बना रखा है। 14 मार्च को जिस एसीपी कैलाश बोहरा ने अपने ही उपायुक्त कार्यालय में पीडि़ता की इज्जत लूटी वह एसीपी भी जयपुर पुलिस आयुक्त कार्यालय में महिला शाखा का प्रभारी है। अशोक गहलोत गृह मंत्री की हैसियत से बताएं कि महिलाओं और महिला शाखाओं का प्रभारी पुरुषों को क्यों बना रखा है? गहलोत को तो संवेदनशील मुख्यमंत्री माना जाता है। क्या गहलोत की महिलाओं के प्रति ऐसी ही संवेदनशीलता है। ऐसा नहीं कि गहलोत को गृहमंत्री के महत्व का पता न हो। शिवचरण माथुर के मंत्रिमंडल में अशोक गहलोत स्वयं गृहमंत्री रहे हैं। तब गृह विभाग को माथुर अपने पास ही रखना चाहते थे, लेकिन प्रदेश की कानून व्यवस्था का हवाले देते हुए गहलोत ने स्वयं को गृहमंत्री बनवाया। जिन अशोक गहलोत ने पूर्व में पूर्णकालिक गृहमंत्री का तर्क दिया क्या वो गहलोत अब अपने तर्क को नकार देंगे? राजनीतिक कारणों से गहलोत अब भले ही गृहमंत्री नहीं बनाएं, लेकिन प्रदेश की बिगड़ती कानून व्यवस्था को देखते हुए पूर्णकालिक गृह मंत्री की सख्त जरूरत है।
S.P.MITTAL BLOGGER (15-03-2021)
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