कामत के फार्मूले से राजस्थान के कांग्रेसी परेशान। क्या पायलट के नेतृत्व वाला संगठन कमजोर है?

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गुरुदास कामत की भले ही अपने गृह प्रदेश महाराष्ट्र में कोई पूछ न हो, लेकिन राजस्थान में सचिन पायलट को अशोक गहलोत, सी.पी.जोशी, गिरीजा व्यास जैसे नेताओं के मुकाबले स्थापित करने में कामत कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। बूथवार कार्यकर्ताओं की सूची बनाने का काम हर राजनीतिक दल में संगठन का होता है, लेकिन राजस्थान में कामत ने अपना अजूबा फार्मूला लागू किया है। प्रदेश प्रभारी की हैसियत से कामत ने निर्देश दिए हंै कि जो कांग्रेसी आगामी विधानसभा चुनाव लडऩे का इच्छुक हैं, वह अपने संबंधित विधानसभा क्षेत्र के प्रत्येक बूथ पर 15-15 कार्यकर्ताओं की सूची जमा कराएगा। यदि किसी विधानसभा क्षेत्र में 150 बूथ तो उसे 2250 कार्यकर्ताओं की सूची देनी होगी। सब जानते हैं कि एक विधानसभा क्षेत्र में 10 से लेकर 20 नेता अपनी उम्मीदवारी जताते हैं। कांग्रेस में तो पहले ही कार्यकर्ताओं का अभाव है। और इस समय तो कांग्रेस संगठन कई गुटों में नीचे तक बंटा हुआ है। जो कांग्रेसी चुनाव लडऩे का इच्छुक है, उसके सामने बूथ वार सूची बनाने की बड़ी समस्या है। चूंकि 15 कार्यकर्ताओं के नाम के साथ उसका पता और मोबाइल नम्बर भी मांगा गया है। ऐसे में फर्जी सूची बनाना भी मुश्किल है। अनुभवी कांग्रेसी कामत के इस फार्मूले को अव्यवहारिक मान रहे हैं। यदि उम्मीदवार ही बूथ स्तर पर कार्यकर्ता तैयार करेगा तो फिर कांग्रेस संगठन का क्या काम रहेगा?
इस समय प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कमान सचिन पायलट के हाथों में है। सवाल उठता है कि क्या पायलट के नेतृत्व वाले संगठन में इतनी क्षमता नहीं की वह बूथ वार कार्यकर्ताओं की सूची तैयार करें? सब जानते हैं कि पायलट ने पुराने कांग्रेसियों को दरकिनार कर अपने समर्थकों को जिला अध्यक्ष नियुक्त किया है। लेकिन इसके बावजूद भी ऐसे जिला अध्यक्ष बूथ वार कार्यकर्ताओं की सूची तैयार करने में असमर्थ रहे हैं। इसलिए कामत ने अपना फार्मूला लागू रते हुए टिकट के दावेदारों से ही सूची मांगी है। कामत के इस फार्मूले से आम कांग्रेसी बेहद गुस्से में है। 18 अक्टूबर को अजमेर में हुई शहर कांग्रेस कमेटी की बैठक में जिला प्रभारी प्रमोद भाया की उपस्थिति में जोदार हंगामा भी हुआ। पार्षद अजय कृष्ण तैंगोर ने तो इस मुद्दे पर कामत के खिलाफ निंदा प्रस्ताव तक रख दिया। तैंगोर का कहना रहा कि कामत ने संगठन के पदाधिकारियों के दायित्वों को दावेदारों पर लाद दिया है। मालूम हो कामत के फार्मूले अनुसार 30 अक्टूबर तक दावेदारों को अपनी-अपनी सूची जमा करवानी है। अब दावेदार एक दूसरे की सूची को देख कर अपनी अपनी सूची बना रहे हैं। यानि हर दावेदार की सूची में अधिकांश नाम एक से हैं। कामत का यह फार्मूला कितना सफल होता है, यह विधानसभा के चुनाव परिणाम ही बताएंगे। प्रदेश में सवा दो वर्ष बाद चुनाव होने हैं।

(एस.पी. मित्तल) (19-10-2016)
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