जब राजस्थान में बसपा विधायकों को कांग्रेस में मर्ज हो सकता है तो महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे गुट को विधानसभा में मान्यता क्यों नहीं? हाथी को हाथ में बदलने के गुर राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष सीपी जोशी से सीखे जा सकते हैं। राहुल नार्वेकर अध्यक्ष चुने गए। शक्ति परीक्षण चार जुलाई को।
कोई ढाई साल पहले जब बहुजन समाज पार्टी के सभी 6 विधायकों को विधानसभा में कांग्रेस विधायक के तौर पर मान्यता दी तो कांग्रेस ने कहा कि यह काम संविधान के अनुरूप हुआ है। हालांकि तब बसपा प्रमुख मायावती ने कांग्रेस पर धोखा देने का आरोप लगाते हुए कहा कि हमारे विधायकों को कांग्रेस का नहीं माना जा सकता, क्योंकि विलय पार्टी का होता है, विधायकों का नहीं। लेकिन राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष सीपी जोशी ने कहा कि बसपा के विधायक दल बदल विरोधी कानून के दायरे में नहीं आते हैं। जोशी के फैसले के बाद आज तक बसपा के विधायक कांग्रेस के ही माने जा रहे हैं। यहां तक बसपा वाले विधायक कांग्रेस के व्हिप को ही मानते हैं। ढाई साल पहले जो स्थिति राजस्थान में उत्पन्न हुई, वही अब महाराष्ट्र में हो रही है। महाराष्ट्र में शिवसेना के 55 विधायक हैं। दल बदल विरोधी कानून से बचने के लिए 37 विधायक चाहिए, जबकि एकनाथ शिंदे के साथ शिवसेना के 40 विधायक हैं। महाराष्ट्र में कांग्रेस भी चाहती है कि शिंदे समर्थक 40 विधायकों की विधायकी खत्म हो जाए। लेकिन सवाल उठता है कि जब राजस्थान में हाथी को हाथ में बदला जा सकता है, जब महाराष्ट्र में तीन कमान, कमल के फूल पर क्यों नहीं टिक सकता? आखिर संविधान के प्रावधान तो एक जैसे ही हैं। हाथी को हाथ में बदलने वाले गुट राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष सीपी जोशी से सीखे जा सकते हैं। मात्र 15 विधायकों का नेतृत्व कर रहे पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का कहना है कि शिवसेना संगठन की सहमति नहीं है, इसलिए एकनाथ शिंदे और उनके समर्थक विधायकों को विधानसभा में मान्यता नहीं दी जा सकती है। यही बात मायावती ढाई वर्ष पहले राजस्थान के संदर्भ में कही थी, लेकिन तब मायावती की इस बात को खारिज कर दिया गया। अब उद्धव ठाकरे की बात में कितना दम है, यह राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष सीपी जोशी और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही बता सकते हैं। संविधान के पास विशेषाधिकार हैं। राजस्थान में भले ही बसपा का कांग्रेस में विलय नहीं हुआ हो, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष जोशी ने बसपा के विधायकों को कांग्रेस का मान लिया। अब जब महाराष्ट्र विधानसभा में भाजपा का अध्यक्ष बन जाएगा, तब राजस्थान के निर्णयों का अध्ययन करते हुए शिंदे समर्थक विधायकों को ही शिवसेना का विधायक मान लिया जाएगा। विरोध करने से पहले महाराष्ट्र के कांग्रेसी नेताओं को राजस्थान का अध्ययन कर लेना चाहिए। देशभर की विधानसभाओं के अध्यक्षों में राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष सीपी जोशी सबसे समझदार और होशियार माना जाता है। जोशी की समझदारी की प्रशंसा लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला भी कर चुके हैं। राजस्थान में बसपा विधायकों के कांग्रेस में विलय को भाजपा नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रखी है, लेकिन बसपा वाले कांग्रेसी विधायकों का अभी तक कुछ नहीं बिगड़ा है। राजस्थान में विधानसभा चुनाव में सिर्फ ढाई वर्ष बचा है।
नार्वेकर अध्यक्ष बने:
भाजपा के विधायक राहुल नार्वेकर को तीन जुलाई को महाराष्ट्र विधानसभा का अध्यक्ष चुना गया। नार्वेकर को 164 विधायकों के वोट मिले, जबकि कांग्रेस, एनसीपी और उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना के उम्मीदवार राजन साल्वी को 107 वोट प्राप्त हुए। हालांकि एकनाथ शिंदे सरकार का शक्ति परीक्षण 4 जुलाई को होना है, लेकिन विधानसभा के अध्यक्ष के चुनाव में यह प्रदर्शित हो गया है कि भाजपा और शिंदे के गठबंधन वाली सरकार को पूर्ण बहुमत प्राप्त है। नार्वेकर को विधानसभा का अध्यक्ष चुन लेने के बाद अब विधायकों को लेकर सभी आपत्तियां नार्वेकर के समक्ष ही प्रस्तुत होंगी।
S.P.MITTAL BLOGGER (03-07-2022)
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