डिंगल भाषा के कवि और विद्वान शक्तिदान कविया के लेखन को संरक्षित करेगा अजमेर का चारण शोध संस्थान। लेकिन अफसोस महाकवि कविया जोधपुर यूनिवर्सिटी की राजनीति के कारण प्रोफेसर नहीं बन सके-डॉ. गजादान। चारणों की सभा में आकर मुझे मेरी विद्वता का भ्रम दूर हो गया-प्रो. अनिल शुक्ला। मंदिर का पुजारी हो तो ओंकार सिंह लखावत जैसा।
25 दिसंबर का दिन देश के राजस्थानी खास कर चारण साहित्य के इतिहास में महत्वपूर्ण माना जाएगा। राजस्थान के अजमेर में चारण शोध संस्थान के परिसर में एक ऐसा साहित्यिक समारोह हुआ, जिसे देश का इतिहास याद रखेगा। यह समारोह डिंगल भाषा के महाकवि और विद्वान शक्तिदान कविया की स्मृति में रखा गया। इस समारोह में राजस्थान भर के चारण कवि और विद्वानों ने भाग लिया। कोई चार घंटे तक चले इस समारोह में डिंगल भाषा की कविताओं का जो पाठ हुआ, वह वाकई अद्वितीय रहा। जोधपुर यूनिवर्सिटी में व्याख्याता रहे शक्तिदान कविया के परिवार वालों ने वे सभी हस्तलिखित गीत और कविताएं चारण शोध संस्थान को दी है, जिस पर राजस्थान की संस्कृति देखी जा सकती है। संस्थान के अध्यक्ष भंवर सिंह चारण और डॉ. सरला लखावत ने बताया कि कवियाजी के गीतों और कविताओं को ज्यों का त्यों 15 हजार पृष्ठों पर कंप्यूटर से स्कैन किया गया है। डिंगल भाषा का यह साहित्य अब शोधार्थियों के लिए उपलब्ध रहेगा। उन्होंने बताया कि कवियाजी ने अपने गीत और कविताएं तो लिखी ही हैं, साथ ही दूसरे कवियों की कविताओं को डिंगल भाषा में लिखा है जो अपने आप में ऐतिहासिक है। कई कविताएं तो एक हजार साल पुरानी हैं। कवियाजी 1952 में जब सातवीं कथा के विद्यार्थी थे, तभी कविताएं लिखना शुरू कर दिया था। उनकी विद्वता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि साधारण से कागज पर भी कविताएं लिखी गई है। चारण शोध संस्थान के लिए यह गर्व और सम्मान की बात है कि परिवार वालों ने कविया जी का लेखन हमें दिया है। यह लेखन न केवल संरक्षित किया जाएगा, बल्कि इसे प्रकाशित भी किया जाएगा।
लेकिन प्रोफेसर नहीं बन सके:
दिवंगत शक्तिदान कविया पर पुस्तक लिखने वाले डॉ. गजादान सुक्तिसुत ने समारोह में कहा कि जिस महाकवि के लेखन पर आज युवा वर्ग शोध कर रहा है, वे अपने जीवन काल में जोधपुर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर नहीं बन सके। प्रोफेसर बनने की सारी योग्यताएं कवियाजी में थी, लेकिन यूनिवर्सिटी की राजनीति के कारण प्रोफेसर का पद नहीं मिला। गजादान ने युवा पीढ़ी से आव्हान किया है कि वे अजमेर में माकड़वाली रोड स्थित चारण शोध संस्थान पर आएं और कवियाजी के लेखन को समझें। कवियाजी ने डिंगल भाषा में जो लिखा है, वह देश दुनिया के लिए साहित्य अमृत है। मैं सौभाग्यशाली हूं कि कवियाजी के जीवनकाल में ही उन पर पुस्तक लिखने का अवसर मिला।
भ्रम दूर हो गया:
समारोह में एमडीएस यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रो. अनिल शुक्ला ने कहा कि उन्हें अपनी विद्वता पर बड़ा गर्व था। उन्हें लगता था कि ब्रजभाषा का उन्हें बहुत जानकारी है, लेकिन आज चारणों की इस सभा में आकर मेरी विद्वता का भ्रम दूर हो गया है। चारण विद्वानों ने जिस तरह डिंगल भाषा में कविताएं पढ़ी हैं, वह वाकई काबिले तारीफ है। मुझे अभी चारणों से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। प्रो. शुक्ला ने कहा कि चारण साहित्य को युवा पीढ़ी तक पहुंचाने में एमडीएस यूनिवर्सिटी भरपूर प्रयास करेगी। प्रो. शुक्ला ने लेखन को लिखने और समझने का एक उदाहरण भी दिया। प्रो. शुक्ला ने बताया कि भारत के इतिहास और संस्कृति को पंडित जवाहरलाल नेहरू और मदन मोहन मालवीय ने भी लिखा है। लेकिन पंडित नेहरू ने साहित्य अंग्रेजी में पढ़ा, जबकि मालवीय ने संस्कृत भाषा में साहित्य को पढ़ कर भारत के बारे में लिखा है। यही वजह है कि आज मालवीय जी की पुस्तकों को ज्यादा पढ़ा जाता है। प्रो. शुक्ला ने कहा कि शक्तिदान कविया भले ही यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर नहीं बन सके हों, लेकिन आज उनका सम्मान किसी चांसलर से भी ज्यादा है। उनके लेखन से युवा पीढ़ी अमृत्व प्राप्त करेगी। समारोह में आईएएस राजेंद्र सिंह रत्नू, डीएवी कॉलेज के प्राचार्य लक्ष्मीकांत शर्मा आदि ने भी विचार रखे।
मंदिर के पुजारी:
राज्यसभा के सांसद और दो बार भाजपा सरकार में राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण के अध्यक्ष रहे ओंकार सिंह लखावत ने 1985 में अजमेर में चारण शोध संस्थान की स्थापना की थी। तब लखावत ने राजस्थान और देशभर में घूम कर चारण कवियों और विद्वानों का साहित्य एकत्रित किया। आज यह संकलन ऐतिहासिक हो गया है। लखावत ने बताया कि आज भी हमारा संस्थान राजस्थानी भाषा के कवियों और विद्वानों का साहित्य एकत्रित करने के लिए तत्पर रहता है। अब तो डिजिटलाइजेशन का कार्य भी शुरू कर दिया है ताकि दुनिया भर में लोग चारणों की संस्कृति और विचारों को समझ सके। चारण साहित्य में देश का इतिहास और संस्कृति समाहित है। आज हमारे संस्थान में महाकवि सूर्यमल्ल मीसण के महाकाव्य और केसरी सिंह बारहठ का साहित्य भी उपलब्ध है। चारण साहित्य को एकत्रित और संरक्षित करने में पद्मश्री चंद्र प्रकाश देवल का विशेष योगदान है। मुझे इस बात का गर्व है कि आज हमारे शोधार्थी हमारे संस्थान में आकर शोध कार्य कर रहे हैं। संस्थान परिसर में साहित्य की समृद्ध लाइब्रेरी के साथ साथ हॉस्टल भी है, जहां शोधार्थी कुछ समय के लिए रह सकते हैं। चारण कवियों द्वारा लिखी कविताओं को पढ़ कर कोई भी व्यक्ति अपनी समस्या का समाधान भी कर सकता है। मुगल काल से पहले से लेकर आज तक चारण कवियों ने जो साहित्य लिखा है, उसमें इतिहास की सभी घटनाओं का उल्लेख है। यानी हजारों साल पहले की घटनाओं की जानकारियां भी राजस्थानी, डिंगल, पिंगल आदि भाषाओं में लिखी कविताओं से हो सकती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि संस्थान का संस्थापक पुजारी बनकर लखावत ने इसे सर्वोच्च मुकाम पर पहुंचा दिया है। संस्था की गतिविधियों की और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9414007610 पर ओंकार सिंह लखावत से ली जा सकती है।
S.P.MITTAL BLOGGER (26-12-2022)
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