भारत की घुमंतू जातियों को समझना है तो संघ प्रचारक दुर्गादास जी की पुस्तक अपने घुमंतू पढ़नी पड़ेगी। भीलवाड़ा में बंजारा, नाथ, कंजर, कालबेलिया आदि के विद्यार्थियों की क्लास भी ली। संघ कर रहा है इन जातियों के सामाजिक उत्थान का काम।

24 फरवरी को मुझे राजस्थान के भीलवाड़ा शहर में सामाजिक कार्यकर्ता अशोक चौहान की बिटिया के विवाह समारोह में शामिल होने का अवसर मिला। इस समारोह में ही मुझे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक श्रीमान दुर्गादास जी के साथ विचारों का आदान प्रदान करने का अवसर भी मिला। विचारों के आदान प्रदान के बीच ही मुझे दुर्गादास जी के साथ घुमंतु जातियों के विद्यार्थियों के छात्रावास को देखने का भी अवसर मिला। मैं और दुर्गादास जी जब भीलवाड़ा के आदर्श शिक्षा निकेतन के परिसर में पहुंचे तो घुमंतु जातियों के विद्यार्थी स्कूल के अतिरिक्त पढ़ाई कर रहे थे। हमें बताया गया कि इन जातियों के विद्यार्थियों को स्कूल में अन्य साधन संपन्न विद्यार्थियों के मुकाबले में खड़ा करने के लिए स्कूल की कक्षा के बाद अतिरिक्त पढ़ाई कराई जाती है। दुर्गादास जी के साथ साथ मैंने भी इन विद्यार्थियों से कुछ सवाल पूछे। दुर्गादास जी ने विद्यार्थियों से देशभक्ति के गीत, पहाड़े और अंग्रेजी में कविता सुनी। मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि घुमंतू जातियों के इन छोटे विद्यार्थियों को राजस्थानी, अंग्रेजी और हिंदी भाषा अच्छी तरह आती थी। इन विद्यार्थियों ने जिस तरह अपनी बुद्धिमता का परिचय दिया वह काबिले तारीफ है। 
देश भर में चल रहे हैं ऐसे छात्रावास:
राजस्थान में संघ के प्रमुख की भूमिका निभा चुके संघ प्रचारक दुर्गादास जी इन दिनों देशभर में घुमंतु जातियों के सामाजिक उत्थान के काम में लगे हुए हैं। मुझे बताया गया कि अकेले राजस्थान के 17 शहरों में घुमंतु जातियों के विद्यार्थियों के लिए जन सहयोग से छात्रावास चलाए जा रहे हैं। इन छात्रावासों में रहने वाले विद्यार्थियों को संपूर्ण शिक्षा नि:शुल्क उपलब्ध करवाई जाती है। मौजूदा समय में जिन घुमंतु जातियों के परिवारों के बच्चे इन छात्रावासों में अध्ययन कर रहे हैं, उनमें कंजर, सांसी, नट, भाट, नायक, बावरिया, बंजारा, सिकलीगर, पारदी, गाडिय़ा लुहार, जोगी, कालबेलिया, सिंगीवाल, बेडिया, भाड, ओढ, गिराहा, गडरिया, भोपा, रेबारी, राट, साढिया शामिल हैं। आमतौर पर यह माना जाता है कि इन जातियों से जुड़े परिवारों के बच्चे पढ़ नहीं पाते , इसलिए कुछ जातियों के बच्चे युवा होते होते अपराधों में लिप्त हो जाते हैं। चूंकि इन जातियों को एक जगह ठिकाना नहीं होता, इसलिए बच्चों का स्कूलों में पढ़ना बेहद मुश्किल होता है। लेकिन इन चुनौतियों के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने घुमंतू जातियों के बच्चों को शिक्षित करने का चुनौतीपूर्ण काम किया है। छात्रावास में बच्चे ठीक रहे यह काम आसान नहीं था, लेकिन दुर्गादास जी के नेतृत्व में इस चुनौती पूर्ण कार्यों को भी किया गया। जिन बच्चों ने एक साथ छात्रावास में गुजार लिया अब वे अपने घर अथवा माता पिता के पास जाना नहीं चाहते। अधिकांश बच्चे पूरी लगन के साथ पढ़ाई कर रहे हैं। जब ऐसे बच्चे अंग्रेजी में संवाद करते हैं तो उनका भविष्य साफ नजर आता है। हो सकता है कि संघ के छात्रावास में पढ़ने वाले इन बच्चों में से कुछ आईएएस और आईपीएस की नौकरी भी हासिल कर लें। 
पुस्तक पढ़ना जरूरी:
घुमंतू जातियों के बच्चों को शिक्षा देने की जो पहल की गई है, उसे देखते हुए जाहिर है कि संघ प्रचारक दुर्गादास जी ने जातियों के बारे में विस्तृत अध्ययन किया है। अपने अध्ययन के अनुरूप दुर्गादास जी ने अपने घुमंतु नामक 168 पृष्ठों की पुस्तक भी लिखीहै। इस पुस्तक के बारे में संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य भैय्या जी जोशी ने लिखा है कि आज आवश्यकता है कि सारा समाज ऐसे समूहों को समझे, अपना माने, इतिहास में उनके लिए पुरुषार्थ का स्मरण करे। आज की वर्तमान की उनकी समस्याओं को समझकर समाधान की दिशा में पहल रके। पुस्तक लिखने के लिए भैय्या जी जोशी ने दुर्गादास जी का अभिनंदन भी किया। इस पुस्तक की एक प्रति दुर्गादास जी ने मुझे भी दी। इस पुस्तक को पढ़ने के बाद मुझे भी घुमंतु जातियों के बारे में नई जानकारियां मिली। आज भले ही इन जातियों को समाज में अपेक्षित सम्मान न मिला हो, लेकिन इन जातियों के नायक क्रांतिवीर उमाजी नायक, भीमा जी नायक, लक्खी शाह बंजारा, गोविंद गुरु, संत सेवालाल जी महाराज, क्रांतिकारी डाकू सुल्ताना अनगढ़ बावजी अमरा भक्त है। वहीं इन जातियों के आराध्य देवों में जाहरवीर, गोगादेव, बाबा रामदेव, देवी अहिल्या बाई होलकर आदि है। इस पुस्तक को पढ़ने से पता चलता है कि पहले मुगल आक्रमणकारियों के शासन और फिर अंग्रेजों के शासन में जातियों ने केवल वीरता दिखाई बल्कि अपने देश के लिए बड़ा बलिदान भी दिया। मुगलों के आक्रमण के समय हमारे राजाओं को इन्हीं जातियों के लोगों ने हथियार बनाकर दिए। चूंकि मुगलों के अत्याचारों के कारण इन जातियों के लोगों को इधर उधर भटकना पड़ा और फिर अंग्रेजों ने भी इन जातियों को संदेह की निगाह से देखा। घुमंतू जातियों के बारे में विस्तृत अध्ययन करने वाले दुर्गादास जी ने बताया कि देश भर में करीब 16 करोड़ लोग  इन जातियों से संबंध रखते हैं। इनमें से 8 करोड़ के पास तो सरकारी दस्तावेज है, लेकिन करीब 8 करोड़ लोगों के पास सरकारी दस्तावेज नहीं है, इसलिए सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल रहा। एक और हम इन जातियों के बच्चों को शिक्षा देने का काम कर रहे हैं तो वहीं सरकारी दस्तावेज दिलाने का काम भी हो रहा है। अपने घुमंतु पुस्तक सिर्फ बुद्धिजीवियों के लिए ही नहीं बल्कि इन जातियों के परिवारों के लिए भी जरूरी है। यदि घुमंतु जातियों के प्रतिनिधि इस पुस्तक को पढ़ेंगे तो उन्हें अपने पूर्वजों पर गर्व होगा। इस पुस्तक में एक एक घुमंतू जाति के इतिहास को लिखा गया है। जातियों से जुड़े महानायकों के जीवन के बारे में भी जानकारी दी गई है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के घुमंतू जातियों के सामाजिक उत्थान के लिए किए जा रहे कार्यों और अपने घुमंतू पुस्तक के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 8003789071 पर महावीर शर्मा से ली जा सकती है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (25-02-2024)

Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9929383123To Contact- 9829071511

Print Friendly, PDF & Email

You may also like...