सोनिया गांधी की मौजूदगी में टीएमसी सांसद डेरेक ब्रायन ने अशोभनीय कृत्य किया। इससे आहत जगदीप धनखड़ राज्यसभा में सभापति की कुर्सी छोड़कर चले गए। आखिर संसद में यह क्या हो रहा है?

8 अगस्त को राज्यसभा में सभापति जगदीप धनखड़ के साथ जो कुछ भी हुआ उससे संसदीय परंपराएं तार तार हुई है। सभापति धनखड़ आंखों में आंसू लेकर सभापति की कुर्सी छोड़कर चले गए। जाने से पहले धनखड़ ने कहा कि विपक्ष मुझे इस पद के लायक ही नहीं समझ रहा। यह मेरा नहीं बल्कि राज्यसभा के सभापति का अपमान है। ऐसे माहौल में मैं सभापति की भूमिका निभाने में असमर्थ हंू। धनखड़ की आंखों में आंसू तब आए जब टीएमसी के सांसद डेरे ब्रायन ने अशोभनीय मुद्रा दिखाई। डेरेन ब्रायन जब अशोभनीय कृत्य कर रहे थे, तब सदन में कांग्रेस संसदीय दल की नेता श्रीमती सोनिया गांधी भी उपस्थित थी। नम आंखों के साथ धनखड़ ने कहा कि श्रीमती सोनिया गांधी ने भी टीएमसी सांसद को अशोभनीय कृत्य करने से नहीं रोका। जहां तक प्रतिपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खडग़े का सवाल है तो राज्यसभा में कांग्रेस के सांसद ही उनके नियंत्रण में नहीं है। ऐसे में खडग़े तो टीएमसी सांसद को रोकने में पूरी तरह विफल रहे। सवाल उठता है कि आखिर संसद में यह क्या हो रहा है? सभापति जो देश के उपराष्ट्रपति भी होते हैं, यदि उन्हें रोते हुए संसद से जाना पड़े तो फिर भारत की संसदीय परंपराओं का अंदाजा लगाया जा सकता है। एक ओर कहा जाता है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, लेकिन उसी लोकतांत्रिक देश की संसद में सभापति को खुलेआम बेइज्जत किया जाता है। 8 अगस्त को जब आंखों में आंसू लेकर धनखड़ को सभापति की कुर्सी छोड़नी पड़ी, तब उनकी मन स्थिति क्या रही होगी। इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि जगदीप धनखड़ एक संवेदनशील इंसान है। यदि कोई सांसद उनकी मुद्रा बनाकर अशोभनीय कृत्य करता है तो धनखड़ की आंखों में आंसू आना वाजिब है। लेकिन धनखड़ को यह समझना चाहिए कि अब भारतीय संसद में कैसे कैसे सांसद चुनकर आ रहे है। जिस दल की विचारधारा सनातन धर्म को समाप्त करने वाली है, उस दल के सांसद अभी लोकसभा और राज्यसभा में मौजूद है। इतना ही नहीं जिन लोगों की विचारधारा देश को तोड़ने वाली है, वह भी संसद में पहुंच गए है। सवाल अकेले टीएमसी  सांसद का नहीं है। सवाल ऐसे अनेक सांसदों का है जो अपने देश का भी विभाजन चाहते हैं। इतना ही नहीं आतंकवाद को मजबूत करने वाली विचारधारा के व्यक्ति भी संसद में पहुंच गए है। ऐसे में संसद को चलाना आसान नहीं है। जगदीप धनखड़ एक अच्छे और नेक इंसान है, लेकिन उनका सामना ऐसे व्यक्तियों से हो रहा है जिन्हें नेक नहीं माना जा सकता। 

S.P.MITTAL BLOGGER (09-08-2024)
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