मोहन भागवत से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ख्वाजा साहब की मजार पर चादर पेश करते हैं। ऐसे में दरगाह में शिव मंदिर की बात बेमानी। दीवान जैनुअल आबेदीन ने अदालत में वाद को सस्ती लोकप्रियता हासिल करना बताया।
अजमेर स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह में शिव मंदिर होने के दावे के संबंध में दरगाह के दीवान सैयद जैनुअल आबेदीन ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत की ओर से संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी इंद्रेश कुमार समय समय पर ख्वाजा साहब की मजार पर चादर पेश करते रहते हैं। मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पिछले 11 वर्षों से ख्वाजा साहब के सालाना उर्स में देश की परंपरा के अनुरूप मजार शरीफ पर चादर पेश करवा रहे है। देश के अधिकांश राज्यों के मुख्यमंत्री और राज्यपाल आदि नेता भी दरगाह में आकर जियारत करते रहे हैं। ख्वाजा साहब का इतिहास 850 वर्ष पुराना है। मैं स्वयं भी ख्वाजा साहब के परिवार से संबंध रखता हंू। हमारा परिवार भी परंपरागत तौर पर दीवान बनता आ रहा है। आजादी के बाद से हर प्रधानमंत्री सालाना उर्स में चादर के साथ साथ अपना संदेश भी देता है। लेकिन आज तक भी दरगाह में मंदिर होने की बात नहीं उठी। दीवान आबेदीन ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ लोग सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए अदालतों में मामले को उलझा रहे हैं। अदालतों का भी इस मामले में देश के कानून के प्रावधानों का ख्याल रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि ख्वाजा साहब की दरगाह का अंतर्राष्ट्रीय महत्व है। दरगाह में होने वाली हर गतिविधि का असर दुनिया भर में पड़ता है। मालूम हो कि हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता के वाद पर अजमेर में सिविल अदालत ने केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय और उसके काम करने वाली दरगाह कमेटी के साथ साथ भारतीय पुरातत्व विभाग को नोटिस जारी किए हैं। गुप्ता ने वाद में ही दरगाह में शिव मंदिर होने का दावा किया गया है। अब इस मामले में 20 दिसंबर को अगली सुनवाई होगी।
मुस्लिम पक्ष को पक्षकार नहीं बनाया:
सिविल अदालत ने जो तीन विभागों को नोटिस जारी किए हैं, वह तीनों केंद्र सरकार से संबंधित है। ख्वाजा साहब की दरगाह में धार्मिक दृष्टि से खादिमों और दीवान की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। दरगाह की सभी धार्मिक रस्में इन दोनों पक्षों के द्वारा ही संपन्न करवाई जाती है, लेकिन इन दोनों महत्वपूर्ण पक्षों को पक्षकार नहीं बनाया गया है। ऐसे में मंदिर होने के दावे के संबंध में जवाब देने की सारी जिम्मेदारी केंद्र सरकार की हो गई है। दरगाह के खादिम समुदाय ने द प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट का भी हवाला दिया है। इसमें अयोध्या के प्रकरण को छोड़कर अन्य सभी धार्मिक स्थलों पर 1947 वाली स्थिति को बनाए रखने की बात कही गई है। ऐसे में सिविल अदालत द्वारा जारी नोटिस पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।
S.P.MITTAL BLOGGER (29-11-2024)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9166157932To Contact- 9829071511