महबूबा यह भी बताएं कि क्या नरेंद्र मोदी अलगाववादियों से संवाद करें? यह तारीफ है या कटाक्ष।
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6 मई को जम्मू कश्मीर की सीएम महबूबा मुफ्ती ने कहा कि कश्मीर समस्या का समाधान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही कर सकते हैं, क्योंकि इस समय वे पूर्ण बहुमत में है। महबूबा ने यह भी कहा कि डॉक्टर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री के तौर पर पाकिस्तान जाना चाहते थे, लेकिन पाकिस्तान जाने की हिम्मत तो नरेंद्र मोदी ने ही दिखाई। सवाल उठता है कि यह बात कहकर महबूबा ने मोदी की तारीफ की है या फिर कटाक्ष अच्छा होता की महबूबा वो फार्मूला भी बतातीं, जिसमें कश्मीर समस्या का समाधान होता। अब जब केंद्र सरकार ने अलगाववादियों से वार्ता नहीं करने की घोषणा कर रखी है, तब मोदी की पाकिस्तान यात्रा का जिक्र कर महबूबा क्या साबित करना चाहती है? मोदी ने लाहौर की यात्रा इसलिए की थी कि हमारे कश्मीर के हालात सुधरेंगे। यह मोदी की कूटनीति थी, लेकिन नवाज शरीफ के साथ शराफत दिखाने के बावजूद भी कश्मीर घाटी में आतंकी वारदातें नहीं रुकी। महबूबा स्वयं भी सीएम है, वह खुद ही पहल कर सकती हैं, लेकिन सब जानते हैं कि अब महबूबा की अलगाववादियों पर कोई पकड़ नहीं है। अलगाववादी चाहते हैं कि भारत कश्मीर को आजाद कर दें, लेकिन अलगाववादी ऐसा दबाव पीओके के लिए पाकिस्तान पर नहीं बनाते। उल्टे पाकिस्तान से मिलकर हमारे कश्मीर का माहौल बिगाड़ रहे हैं। महबूबा को यदि वाकई कश्मीर के हालात सुधारने हैं तो सूफी मुसलमान और हिंदुओं को फिर से कश्मीर में बसाया जाए। जब तक देश प्रेमियों को कश्मीर में नहीं बताया जाएगा, तब तक अलगाववादी हालात सुधरने नहीं देंगे। महबूबा को अलगाववादियों को संविधान के दायरे में रहकर वार्ता करने के लिए तैयार करना चाहिए। केन्द्र सरकार तो अनुच्छेद 370 के तहत कश्मीर का बोझ पहले से ही उठा रही है। यदि महबूबा को नरेंद्र मोदी की हिम्मत ही देखनी है तो अनुच्छेद 370 को हटवाने में मदद करनी चाहिए। सवाल उठता है कि महबूबा स्वयं अनुच्छेद 370 को हटाने की मांग क्यों नहीं करती? इस अनुच्छेद की वजह से ही अलगाववादी बेकाबू हो रहे हैं, क्या अपने देश में रहकर आजादी की मांग करना राष्ट्रद्रोह नहीं है?
एस.पी.मित्तल) (06-05-17)
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