तो क्या इसी मानसिकता से शशि थरूर ने 30 वर्षों तक यूएनओ में भारत का प्रतिनिधित्व किया?

तो क्या इसी मानसिकता से शशि थरूर ने 30 वर्षों तक यूएनओ में भारत का प्रतिनिधित्व किया? इसलिए दुनिया ने थरूर को नकार दिया था।


शशि थरूर सिर्फ कांग्रेस के सांसद नहीं है, बल्कि थरूर ने संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) में तीस वर्षों तक भारत का प्रतिनिधित्व किया। यानि कश्मीर मुद्दा हो या अन्य कोई विषय। भारत की ओर से थरूर ने देश का पक्ष रखा। अब थरूर कह रहे हैं कि यदि 2019 में भाजपा फिर से चुनाव जीतती है तो भारत हिन्दू पाकिस्तान बन जाएगा। मैं यह नहीं कहता कि तीसरी पत्नी सुनंदा पुष्कर की हत्या के आरोपी बन जाने से थरूर की मानसिक स्थिति खराब हो गई है। मेरा सवाल यह है कि क्या हिन्दू पाकिस्तान की मानसिकता के साथ ही थरूर तीस वर्षों तक यूएनओ में भारत का प्रतिनिधित्व किया? शायद ऐसा लगता है कि थरूर ने किसी मानसिकता के साथ प्रतिनिधित्व किया, क्योंकि इन्हीं दिनों में कश्मीर के अलगाववादियों ने पाकिस्तान के आतंकियों की मदद से 4 लाख हिन्दुओं को पीट पीट कर भगा दिया। सवाल उठता है कि शशि थरूर ने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर कश्मीर के हिन्दुओं का पक्ष क्यों नहीं रखा? अब थरूर को यह भी बताना चाहिए कि तब वे किस के दबाव में काम कर रहे थे? आज कश्मीर घाटी में जो एक तरफा माहौल हुआ है उसके पीछे शशि थरूर जैसा नेता ही है। शर्मनाक बात तो यह है कि कश्मीर घाटी पूरी तरह भारत विरोधी अलगाववादियों को सौंप कर हिन्दू पाकिस्तान बनने की बात कर रहे हैं। थरूर को पाकिस्तान के हालातों के बारे में पता नहीं है। भारत में तो सूफीवाद को आगे कर आम मुसलमान और हिन्दू अभी भी रह रहा है, लेकिन पाकिस्तान में तो मुसलमान, मुसलमान को मार रहा है। पाकिस्तान में तो पूरी तरह मुस्लिम राष्ट्र है। थरूर बताएं कि पाकिस्तान में आए दिन क्यों आतंकी हमले हो रहे हैं? आज भारत में मुसलमान जिस सुकून और सम्मान के साथ रह रहा है। उसका आधा भी पाकिस्तान में माहौल नहीं है। 70 वर्षों की आजाद में से आधा समय तो पाकिस्तान में सैनिक शासन रहा है। यदि थरूर पाकिस्तान में राजनीति करते होते तो अब तक जहन्नुम में पहुंच गए होते। थरूर के बयानों से कांग्रेस को भी राजनीतिक नुकसान हो रहा है। हालांकि कांग्रेस ने स्वयं को थरूर के बयान से अलग कर लिया है, लेकिन अच्छा हो कि कांग्रेस थरूर से किनारा कर ले। हिन्दू पाकिस्तान वाला जो बयान थरूर ने दिया उसे देखते हुए अब उनके यूएनओ के कार्यकाल की भी जांच होनी चाहिए।

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