6 माह के मासूम बेटे ने दी शहीद पिता को मुखाग्नि।
नेताओं और अफसरों के बेटे भी सुरक्षा बलों में भर्ती हों।


16 जुलाई को प्रातः साढ़े ग्यारह बजे जब राजस्थान के सीकर जिले के नाथुसर गांव में बीएसएफ के शहीद जवान लोकेन्द्र सिंह को अंतिम विदाई दी जा रही थी, तब उपस्थित हजारों लोगों की आंखों में आसंूं थे। उस समय तो माहौल और गमगीन हो गया, तब 6 माह के दूध पीते बच्चे ने अपने पिता के शव को मुखाग्नि देने की रस्म अदा की। उधर घर पर लोकेन्द्र की मां बेहोश थी तो विधवा हुई पत्नी के कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। लोकेन्द्र के बूढ़े पिता की हौंसला अफजाई करने वालों की कोई कमी नहीं थी। लोकेन्द्र सिंह बीएसएफ का जांबाज जवान था जो दो दिन पहले छत्तसीगढ़ में एक नक्सली हमले में शहीद हो गया। यानि लेाकेन्द्र देश की आंतरिक स्थितियों का शिकार हुआ। यह माना कि सीमा के हालात देश की सरकारों के हाथों में नहीं होते हैं, लेकिन देश की नीतियों तो निर्वाचित सरकारें ही बनाती है। नक्सली और माओवादी हमलों में आए दिन हमारे जवान शहीद होते हैं। देश के लिए शाहदत देना गर्व की बात है, लेकिन सवाल उठता है कि यह शाहदत आम परिवार का सदस्य ही क्यों दे? क्या वो परिवार शाहदत नहीं दे सकते जो नीतियां बनाते हैं? देश चलाने वाले नेताओं और अफसरों के बेटों को अनिवार्य रूप से सुरक्षा बलों में भर्ती होना चाहिए। ताकि शाहदत का दर्द ऐसे परिवारों को भी हो सके। जब तक शाहदत के दर्द का अहसास नहीं होगा, तब तक नेताओं और अफसरों की नीतियां भी देश के अनुकूल नहीं होंगी। सुरक्षा बलों के जवान की शाहदत पर नेता और अफसर देशभक्ति के प्रवचन देते हैं, लेकिन ऐसे प्रवचन तभी सार्थक होंगे, जब शाहदत का अहसास हो। शहीद लोकेन्द्र सिंह के 6 माह के बेटे को तो यह भी पता नहीं कि वह किसे अग्नि दे रहा है। उसे तो पिता का प्यार भी नहीं मिलेगा, लेकिन फिर भी वह जिन्दगी जीएगा। लोकेन्द्र से दो वर्ष पहले ब्याह करने वाली मासूम पत्नी की स्थिति का तो अंदाजा लगाया जा सकता है। मेरा मानना है कि शासन करने वाले नेताओं और अफसरों के बच्चे यदि सुरक्षा बलों में भर्ती होते हैं तो नक्सली, माओवादी जैसी समस्याओं का समाधान जल्द हो सकता है।

Print Friendly, PDF & Email

You may also like...