आखिर राजस्थान में रोडवेज बसों के चक्का जाम के लिए कौन जिम्मेदार?
आखिर राजस्थान में रोडवेज बसों के चक्का जाम के लिए कौन जिम्मेदार? मंत्री ने कहा कि हड़ताल उचित नहीं।
राजस्थान में 24 जुलाई की रात 12 बजे से ही रोडवेज बसों के पहिए थम गए। जो बस जिस डिपो पर खड़ी थी वह उसी स्थान पर रही। रोडवेज की कोई 6 हजार बसों के पहिए अब 26 जुलाई की रात 12 बजे बाद से घुमना शुरू होंगे। 48 घंटे की इस हड़ताल से जहां रोडवेज को करोड़ों रुपए का नुकसान हो रहा है, वहीं प्रदेश भर के यात्री परेशान हैं। रोडवेज बसों की हड़ताल से प्राइवेट बस मालिक यात्रियों की मजबूरी का फायदा उठा रहे हैं। 100 रुपए के किराए के बजाए 300 रुपए तक वसूले जा रहे हैं। सरकार ने हड़ताल के दौरान कोई वैकल्पिक इंतेजाम नहीं किया, इसलिए लाखों यात्री प्राइवेट बस मालिकों के रहमों करम पर है। हड़ताल कर रहे कर्मचारियों का कहना है कि सरकार उनकी मांगों पर लगातार अनदेखी कर रही है। जबकि सरकार के प्रतिनिधियों का कहना है कि कर्मचारियों की वजह से ही रोडवेज करोड़ों रुपए के घाटे में है। रोडवेज बसों की देखभाल सही प्रकार से नहीं होने की वजह से अनुबंध के आधार पर बसे रोडवेज में शामिल की गई है। छह हजार बसों में से दो हजार बसें लोक परिवहन और अनुबंध की है। कर्मचारियों का कहना है कि सरकार की नीतियों की वजह से ही रोडवेज घाटे में हैं। वहीं 25 जुलाई को परिवहन मंत्री यूनुस खान ने कर्मचारियों की हड़ताल को गलत बताया। खान इस समय मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के साथ झालावाड़ के दौरे पर हैं। झालावाड़ से ही मीडिया से संवाद करते हुए यूनुस खान ने कहा कि सरकार कर्मचारियों की समस्याओं का समाधान करने में जुटी हुई है। कर्मचारियों को रवैये में बदलाव कर सरकार के साथ वार्ता करनी चाहिए। हड़ताल को लेकर सरकार और कर्मचारियों के अपने अपने तर्क हैं। लेकिन सवाल उठता है कि इस हड़ताल का जिम्मेदार कौन है? दोनों ही पक्षों की जिद का खामियाजा प्रदेश की जनता उठा रही है। यह सही है कि सेवानिवृत्त कर्मचारियों को परिलाभ नहीं मिलने से परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। यही वजह है कि हड़ताल का आह्वान कम्प्यूनिस्ट संगठनों और कांग्रेस से जुड़ी इंटक ने किया है, लेकिन हड़ताल को भाजपा की समर्थक माने जाने वाली बीएमएस का भी मौन समर्थन है। विधानसभा चुनाव के मौके पर यात्रियों की परेशानी राज्य सरकार को और नुकसान पहुंचाएगी।