खून से सने सेनेटरी नेपकिन लेकर क्या कोई लड़की अपने दोस्त के घर जाएगी? पीरियड के दौरान क्या लड़कियां घर से बाहर नहीं निकलती? किस काम की है ऐसे विचारों की अभिव्यक्ति।
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केन्द्रीय कपड़ा मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी और दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल के बीच लड़कियों के मासिक धर्म की प्राकृतिक क्रिया को लेकर शब्दों की बहस हुई, उससे विचारों की अभिव्यक्ति पर अनेक सवाल खड़े हो गए हैं। केरल के सबरीमाला मंदिर में लड़कियों के प्रवेश को लेकर जो बहस शुरू हुई थी वो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद महिलाओं के मासिक धर्म तक आ गई है। लड़कियांे के मासिक धर्म को लेकर सार्वजनिक चर्चा कभी नहीं हुई, लेकिन अब ऐसा लगता है कि यही सबसे बड़ी चर्चा हो गई है। हालांकि महिलाओं की अनेक समस्याएं हैं जिन पर बड़ी बहस होनी चाहिए, लेकिन इसे अफसोसनाक ही कहा जाएगा कि अब देश में महिलाओं के मासिक धर्म पर खुली चर्चा हो रही है तथा ऐसे शब्दों का इस्तेमाल हो रहा है। जिनसे लड़कियां भी परहेज करती है। इस प्राकृतिक क्रिया में महिलाओं खास कर छोटी उम्र की लड़कियों को कितनी शारीरिक परेशानी होती है, इसका दर्द वो ही समझती है। मुझे मंदिर में पूजा करने का अधिकार है, लेकिन अपवित्र करने का नहीं। क्या आप महावारी के खून से सने सैनटरी नेपकिन लेकर किसी दोस्त के घर पर जाएंगी? यदि आप दोस्त के घर नहीं जा सकती तो फिर भगवान के घर क्यों जाना चाहती हैं। स्मृति ईरानी के ऐसे कथनों पर दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल की प्रतिक्रिया रही कि रजस्वला स्त्रियां सिर्फ सैनटरी नेपकिन है? पीरियड के दौरान क्या वे घर से बाहर नहीं निकलती? क्या पीरियड के बिना शिशुओं का जन्म हो सकता है? दोनों नेत्रियों के ऐसे विचार इलेक्ट्राॅनिक और प्रिंट मीडिया में धड़ल्ले से प्रसारित हो रहे हैं। सवाल उठता है कि क्या विचारों की अभिव्यक्ति की आड़ में ऐसे मामलों पर ऐसी बहस हो सकती है? मुद्दा सबरीमाला मंदिर में महिलाआंे के प्रवेश का था, लेकिन बहस लड़कियों के मासिक धर्म पर हो रही है। बहस में जिन शब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा है उन्हें किसी भी दृष्टि से उचित नहीं माना जा सकता। हमारी सनातन संस्कृति में महिलाओं को देवी का दर्जा दिया गया है। सभी को देवी के सम्मान का ख्याल रखना चाहिए। किसी भी स्थिति में महिलाओं की प्राकृतिक क्रिया का मजाक नहीं उड़ाया जाना चाहिए।