लोकसभा उपचुनाव में हारे हुए विधायकों पर ही भाजपा ने दांव लगाया। 

लोकसभा उपचुनाव में हारे हुए विधायकों पर ही भाजपा ने दांव लगाया। 
अजमेर में क्या देवनानी और भदेल मिल कर चुनाव लड़ पाएंगे?
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अजमेर में गत जनवरी में लोकसभा के उपचुनाव हुए थे। तब भाजपा उम्मीदवार रामस्वरूप लाम्बा को संसदीय क्षेत्र के सभी विधानसभ क्षेत्रों में हार का सामना करना पड़ा। तब हार के कारणों में क्षेत्रीय भाजपा विधायक की खराब छवि भी एक कारण बताया गया। तभी से यह चर्चा चली कि नवम्बर में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा के अधिकांश विधायकों के टिकिट कट जाएंगे। यही वजह रही कि भाजपा के दूसरे नेता इन विधायकों के सामने खड़े हो गए और पूरे दम से टिकिट की मांग  की। लेकिन 11 नवम्बर की रात को विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा के उम्मीदवारों की जो सूची जारी हुई, उसमें उपचुनाव में हारे हुए विधायकों को ही फिर से उम्मीदवार बनाया गया है। उम्मीदवारों के चयन में वर्ष 2013 वाला जातीय समीकरण ही बैठाया गया है। यानि दो जाट, दो रावत, एक राजपूत एक सिंधी तथा एक एससी। इस जातीय समीकरण में वैश्य समाज स्वयं को एक बार फिर ठगा सा महसूस कर रहा है। हो सकता है कि केकड़ी से किसी ब्राह्मण को उम्मीदवार बना दिया जाए। भाजपा को भी पता है कि वैश्य समाज तो वोट देगा ही, लेकिन  अजमेर में गुर्जर समाज की भी उपेक्षा की है। नसीराबाद और मसूदा विधानसभा क्षेत्र गुर्जर बाहुल्य होने के बाद भी जिले में कहीं से भी गुर्जर को उम्मीदवार नहीं बनाया गया।  सवाल उठता है कि जब हारे हुए को ही उम्मीदवार बनाना था तो फिर रायशुमारी सर्वे आदि की नौटंकी क्यों की गई। अब नेताओं का क्या होगा, जो अपने विधायक के सामने टिकिट मांगने खड़े हो गए। जब यही विधायक फिर से उम्मीदवार बन गए तो फिर उपचुनाव की खराब छवि का क्या होगा? क्या स्वयं की उम्मीदवारी से इन विधायकों की छवि सुधर जाएगी? ऐसे अनेक सवाल है कि उनका उत्तर भाजपा नेतृत्व को 11 दिसम्बर को मिलेगा।
उत्तर और दक्षिण में एका हो पाएगा?ः
अजमेर उत्तर से वासुदेव देवनानी और दक्षिण से श्रीमती अनिता भदेल को लगातार चैथी बार उम्मीदवार बनाया गया है। उपचुनाव में उत्तर से सात हजार और दक्षिण से एक हजार 70 मतों से भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था, जबकि वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में देवनानी 20 हजार तथा भदेल 23 हजार मतों से जीती थीं। अंदाजा लगाया जा सकता है कि उपचुनाव में दोनों की प्रतिष्ठा कितनी गिरी। अजमेर शहरवासियों ने ही नहीं बल्कि भाजपा कार्यकर्ताओं ने भी महसूस किया कि शहर किस प्रकार उत्तर और दक्षिण में बंटा रहा। पूरे पांच वर्ष देवनानी ने दक्षिण और भदेल ने उत्तर क्षेत्र में जाने से परहेज किया, लेकिन क्या अब चुनाव एक होकर लड़ा जाएगा? क्या देवनानी दक्षिण में जाकर सिंधी और भदेल उत्तर में आकर एससी वर्ग के वोट दिलवा पाएंगी? उत्तर से ज्यादा सिंधी मतदाता दक्षिण में हैं।
नसीराबाद:
रामस्वरूप लाम्बा की नसीराबाद से उम्मीदवारी पर तो भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं को भी आश्चर्य हो रहा है। उपचुनाव में हार का एक बड़ा कारण लाम्बा का व्यवहार भी था। सरकार की पूरी ताकत लगाने के बाद भी लाम्बा 85 हजार मतों से हार गए। लाम्बा के पिता सांवरलाल जाट ने वर्ष 2013 में नसीराबाद से 28 हजार मतों से जीत दर्ज की थी, लेकिन उपचुनावों में लाम्बा अपने पिता के इसी क्षेत्र से डेढ़ हजार मतों से पिछड़ गए। लेकिन इसके बावजूद भी पार्टी नेतृत्व खास कर सीएम वसुंधरा राजे लाम्बा पर ही भरोसा जताया है। नसीराबाद में तो भाजपा का विधायक भी नहीं है, क्योंकि सांवरलाल जाट के सांसद बनने के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस की जीत हुई थी। जाट के निधन के बाद उपचुनाव में सहानुभूति का असर भी नसीराबाद में नहीं देखा गया।
पुष्करः
पुष्कर से सुरेश सिंह रावत को फिर से भाजपा उम्मीदवार बनाया गया है। रावत ने वर्ष 2013 में 41 हजार मतों से चुनाव भी जीता था। लेकिन उपचुनाव में पुष्कर से 9 हजार से भी ज्यादा मतों से हार हो गई। यानि 7 दिसम्बर को होने वाले चुनाव में रावत को 50 हजार मतों की भरपाई करनी होगी। टिकिट मांगने के दौरान जो विरोध हुआ,उससे भी निपटना होगा।
किशनगढ़ः
किशनगढ़ में भागीरथ च ौधरी अभी तक एक मात्र ऐसे विधायक हैं जिन्हें दोबारा मौका नहीं दिया गया है। यहां भाजपा ने युवा और नए चेहरे के तौर पर विकास च ौधरी को उम्मीदवार बनाया है। भागीरथ के समर्थक सवाल कर रहे हैं कि जब खराब से खराब छवि वालों को दोबारा से मौका दिया तो भागीरथ को क्यों नहीं उम्मीदवार बनाया गया। भागीरथ ने गत चुनाव 31 हजार मतों से जीता था, लेकिन उपचुनाव में भाजपा यहां से करीब 5 हजार मतों से पीछे रही। नए उम्मीदवार विकास च ौधरी के सामने अपनी ही जाति में विरोध की चुनौती होगी।
ब्यावरः
ब्यावर में आश्चर्यजनक तरीके से शंकर सिंह रावत को फिर से उम्मीदवार बनाया गया है। रावत होने के नाते विरोध तो पुष्कर विधायक सुरेश सिंह रावत का भी हुआ था, लेकिन शंकर सिंह की तरह सुरेश सिंह के पुतले नहीं जले। शंकर सिंह ने तो अपने विरोधियों को भी कुचलने में कोई कसर नहीं छोड़ी। रावत बाहुल्य और ब्यावर शहर में भी जबर्दस्त विरोध के बाद भी पार्टी ने शंकर सिंह पर ही दांव खेला है। शंकर सिंह भी पुष्कर के सुरेश की तरह सीएम के प्रति वफादार रहे हैं। ब्यावर अजमेर संसदीय क्षेत्र में नहीं आता है, इसलिए उपचुनाव का असर नहीं देखा गया, लेकिन अब यह देखना होगा कि तिलक रावत से लेकर देवशंकर भूतड़ा तक की नाराजगी कैसे दूर होगी। जवाजा पंचायत समिति की प्रधान गायत्री देवी रावत की सक्रियता भी देखने लायक होगी ।
मसूदाः
लोकसभा उपचुनाव में मसूदा से भी भाजपा को 6 हजार मतों से हार मिली थी, लेकिन वर्तमान विधायक श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा का विरोध ज्यादा नहीं देखा गया। हालांकि पूर्व देहात अध्यक्ष नवीन शर्मा, मंडल अध्यक्ष आशीष सांड, वेदप्रकाश सिंह आदे ने दावेदारी जताई थी, लेकिन पार्टी ने एक बार फिर पलाड़ा को ही उम्मीदवार बनाया। इसकी एक वजह यह भी रही कि गत चुनावों में विषम परिस्थितियों में भी पलाड़ा ने जीत दर्ज की थी। इस बार भी पलाड़ा के लिए मसूदा का चुनाव आसान नहीं होगा।
केकड़ीः
हालांकि केकड़ी में अभी उम्मीदवार घोषित नहीं हुआ है, लेकिन जब शंकर सिंह रावत, सुरेश सिंह, रामस्वरूप लाम्बा आदि को घोषित कर दिया है तो फिर शत्रुघ्न गौतम को भी दोबारा से उम्मीदवार बना दिया जाना चाहिए। यही वजह है कि गौतम अभी दिल्ली में डेरा जमाए हुए हैं और बड़े नेताओं के सम्पर्क में है। गौतम को भी सीएम राजे पर ही भरोसा है। समर्थकों का मानना है कि सीएम राजे गौतम को भी उम्मीदवार बनवा देंगी। उपचुनाव में केकड़ी से भाजपा को 34 हजार मतों से हार मिली थी। उपचुनाव में विजयी हुए कांग्रेस उम्मीदवार रघु शर्मा का क्षेत्र होने की वजह से भाजपा ने केकड़ी में घोषणा को टाल दिया है। वर्ष 2013 के चुनावों में गौतम ने ही रघु को 9 हजार मतों से हराया था।
एस.पी.मित्तल) (12-11-18)
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