राजस्थान में सरकार चलाने का विशेषाधिकार आखिर किसके पास है?

राजस्थान में सरकार चलाने का विशेषाधिकार आखिर किसके पास है? 
अब मंत्रियों के विभागों का मामला अटका।
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लोकतंत्र में माना तो यही जाता है कि मंत्रियों के चयन और फिर विभागों का वितरण मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार होता है। मुख्यमंत्री चाहे जिस विधायक को मंत्री बनाए और हटाए। यदि यह सही होता तो अब तक राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मंत्रियों के विभागों का बंटवारा कर देते। राजस्थान में 11 दिसम्बर को पता चल गया था कि कांग्रेस की सरकार बनेगी। लेकिन सब जानते हैं कि दिल्ली में तीन दिनों तक मुख्यमंत्री को लेकर घमासान हुआ। न चाहते हुए भी सचिन पायलट को डिप्टी सीएम बनाना पड़ा। 17 दिसम्बर को गहलोत और पायलट ने शपथ भी ले ली, लेकिन मंत्रियों के चयन के लिए दोनों को दिल्ली दरबार में हाजरी देनी पड़ी। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी से विचार मंथन के बाद 24 दिसम्बर को 23 मंत्रियों ने शपथ ली। यानि सीएम को अपने मंत्रियों के चयन में एक सप्ताह लग गया। अब जब मंत्रियों ने शपथ ले ली है। तो फिर विभागों के वितरण का मामला अटक गया है। 23 मंत्री बिना विभाग के ही इधर उधर भटक रहे हैं। कांग्रेस की सरकारें कैसे चले यह कांग्रेस का आंतरिक मामला हो सकता है, लेकिन कांग्रेस को यह समझना चाहिए कि सरकार चलाने का अधिकार राजस्थान की जनता ने दिए है यदि सरकार के निर्णय दिल्ली से होंगे तो फिर मुख्यमंत्री का महत्व क्या रहेगा? जब विधायक दिल्ली से मंत्री पद और विभाग ले रहे हैं, तब जयपुर में अशोक गहलोत को कौन पूछेगा? कांग्रेस को यह भी समझना चाहिए कि मात्र पांच माह बाद लोकसभा के चुनाव होने हैं और तीन माह बाद आचार संहिता लागू हो जाएगी। सरकार को अपनी कार्यकुशलता तीन माह में ही दिखानी होगी। पिछली भाजपा सरकार को बेकार बताते हुए ही कांग्रेस सत्ता में आई है, लेकिन शुरुआत में ही सरकार की चाल कमजोर और सुस्त नजर आ रही है। उत्पन्न समस्याओं के लिए अभी से ही केन्द्र सरकार को दोषी ठहराया जा रहा है। सीएम अशोक गहलोत ने आरोप लगाया है कि प्रदेश में यूरिया की किल्लत के लिए केन्द्र सरकार दोषी है। केन्द्र ने राजस्थान के कोटे का यूरिया भाजपा शासित हरियाणा को दिया, हालांकि केन्द्र सरकार ने गहलोत के आरोपों का खंडन कर दिया है। लेकिन सवाल उठता है कि जब चुनाव प्रचार में कांग्रेस के नेता प्रदेश में सुशासन देने का वायदा कर रहे थे, तब केन्द्र की अड़ंगेबाजी को सामने क्यों नहीं रखा। तब तो राहुल गांधी से लेकर सचिन पायलट तक ने हर समस्या के समाधान का भरोसा दिलाया। तब यह नहीं कहा कि समस्याओं के समाधान में केन्द्र सराकार का सहयोग भी चाहिए। अब तो प्रदेश में जो भी समस्या आएगी उसके लिए केन्द्र सरकार को दोषी ठहरा दिया जाएगा। यानि राज किसी का भी हो मरण जनता का होना है। नेताओं के पास अपने बचाव के अनेक बहाने होते हैं। इसलिए राजस्थान की जनता हर पांच साल में राज बदल रही है। इसके बावजूद भी भाजपा और कांग्रेस के नेता समझदारी नहीं दिखा रहे। यदि कांग्रेस के नेताओं ने अपने रैवये में बदलाव नहीं किया तो पांच साल बाद राजस्थान में भाजपा की सरकार बन जाएगी।
एस.पी.मित्तल) (25-12-18)
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