आखिर राज्यसभा में पेश नहीं हो सका तीन तलाक का बिल। कांग्रेस ने सलेक्ट कमेटी में भेजने की मांग की।
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नरेन्द्र मोदी सरकार की लाख कोशिश के बाद भी 31 दिसम्बर को राज्यसभा में तीन तलाक का बिल पेश नहीं हो सका। हांलाकि लोकसभा में दो दिन पहले ही बिल को मंजूरी मिल गई थी। चूंकि भाजपा के पास लोकसभा में बहुमत है इसलिए बिल को मंजूर करवाने में परेशानी नहीं हुई, लेकिन राज्यसभा में बहुमत नहीं है, इसलिए कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों ने बिल को पेश नहीं होने दिया। राज्यसभा अब दो जनवरी तक के लिए स्थगित कर दी गई है। हालांकि लोकसभा में कांग्रेस ने मतदान के समय बायकाट किया था, लेकिन राज्यसभा में कांग्रेस बिल को सलेक्ट कमेटी को भेजने की मांग पर अड़ी रही। यह दूसरा अवसर है जब सरकार राज्यसभा से बिल को स्वीकृत नहीं करवा सकी है। मालूम हो कि पहले भी अध्यादेश के जरिए तीन तलाक का कानून अमल में लाया गया था। इस बार भी यही उम्मीद जताई जा रही है। मुस्लिम समाज में एकसाथ तीन तलाक को सुप्रीम कोर्ट पहले ही असंवैधानिक ठहरा चुका है। पिछले कई दिनों से तीन तलाक से पीड़ित मुस्लिम महिलाओं के बयान न्यूज चैनलों पर आ रहे है। कोई कह रही है कि फोन और वाट्सएप पर तीन तलाक दिया गया और कोई मौखिक तलाक की बात कह रही है। हालांकि मुस्लिम पर्सनल लाॅ में तीन तलाक की पूरी प्रक्रिया दे रखी है, लेकिन अनेक लोग इस धार्मिक प्रक्रिया का पालन नहीं करते और एकसाथ तीन बार तलाक कह कर औरत को दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर कर देते हैं। यह सही है कि यदि शौहर पूरी ईमानदारी से धार्मिक प्रक्रिया का पालन करे तो दुरूपयोग रूक सकता है। मुस्लिम धर्मगुरूओं का भी कहना है कि सरकार को धार्मिक मामलों में दखल नहीं देना चाहिए, लेकिन वहीं पीड़ित मुस्लिम महिलाएं कानून बनाने की मांग कर रही है। सरकार का मानना है कि एकसाथ तीन तलाक सामाजिक बुराई है, जिस पर रोक लगनी ही चाहिए। जब हिन्दू समुदाय की महिलाओं को इस मुद्दे पर कानूनी संरक्षण मिला हुआ है तो मुस्लिम महिलाओं को भी मिलना चाहिए। समाज में खासकर महिलाओं के मामले में समानता होनी चाहिए।