कांग्रेस की वर्किंग कमेटी की बैठक में छाए रहे राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत।

कांग्रेस की वर्किंग कमेटी की बैठक में छाए रहे राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत।
गहलोत की पहल पर ही हुई साबरमती आश्रम में प्रार्थना सभा।
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12 मार्च को गुजरात के अहमदाबाद में कांग्रेस की वर्किंग कमेटी की बैठक हुई। इस बैठक में लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर विचार विमर्श हुआ। यूं तो इस बैठक में राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और डिप्टी सीएम सचिन पायलट, प्रभारी महासचिव अविनाश राय पांडे आदि भी मौजूद थे। लेकिन राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत अहमदाबाद में हुए सभी कार्यक्रमों में छाए रहे। बैठक में भाग लेने आए सभी छोटे बड़े नेता गहलोत से मिलने को उत्सुक दिखे। गहलोत ने भी आत्मीयता के साथ कांग्रेस के नेताओं से मुलाकात की और इस बात को प्रदर्शित किया कि तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उनके व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया है। जानकारों की माने तो गहलोत की पहल पर ही साबरमती आश्रम में प्रार्थना सभा रखी गई। हालांकि बैठक एक पांच सितारा होटल में हुई, लेकिन इससे पहले साबरमती नदी के किनारे बने गांधी आश्रम में प्रार्थना सभा रखी गई। इस सभा में श्रीमती सोनिया गांधी राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, पूर्व पीएम मनमोहन सिंह आदि सभी नेता उपस्थित रहे। प्रार्थना सभा के माध्यम से यह दिखाने का प्रयास किया गया कि कांग्रेस आज भी महात्मा गांधी के बताए मार्ग पर चल रही है। सूत्रों की माने तो गहलोत की इस पहल का सोनिया गांधी ने स्वागत किया और गहलोत को बधाई भी दी। प्रार्थना सभा में गहलोत स्वयं एक पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर बैठे रहे। गहलोत की इस सादगी की प्रशंसा वर्किंग कमेटी की बैठक में भी रही। मालूम हो कि गुजरात के विधानसभा चुनाव में गहलोत ही प्रभारी थे और गहलोत ने जो रणनीति अपनाई उसी का परिणाम रहा कि विधायकों की संख्या सरकार बनाने तक पहुंच गई थी। स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने की वजह से कांग्रेस की सरकार नहीं बन सकी। तब गहलोत के प्रयासों को ही महत्व दिया गया। गुजरात चुनाव की वजह से ही गहलोत राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के निकट आए। यही वजह रही कि जब राजस्थान के मुख्यमंत्री का निर्णय हुआ तो सचिन पायलट के मुकाबले में गहलोत का पलड़ा भारी रहा। सब जानते हैं कि जब पायलट ने अड़ियल रुख अपनाया तो सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी को स्वयं राहुल गांधी के पास जाना पड़ा और गहलोत के नाम पर निर्णय करवाया। जिस तरह से मुख्यमंत्री पद को लेकर पायलट का रवैया सामने आया उससे राजनीति दृष्टि से गहलोत को फायदा हुआ। अब लोकसभा चुनाव में पूरी कमान गहलोत के पास ही है। जबकि विधानसभा के चुनाव में प्रदेश अध्यक्ष की हैसियत से सचिन पायलट केन्द्र बिंदु बने हुए थे। यह बात अलग है कि मुख्यमंत्री न बनने का मलाल पायलट को अभी तक है। लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद अशोक गहलोत ने पायलट को सम्मान देने में कोई कमी नहीं रखी। अपने मंत्री मंडल में केबिनेट मंत्री की शपथ दिलाए जाने के बाद गहलोत ने राज्यपाल से पायलट को उपमुख्यमंत्री बनाने की घोषणा करवाई। चूंकि संविधान में उपमुख्यमंत्री का कोई पद नहीं होता है इसलिए पायलट को केबिनेट मंत्री की ही शपथ दिलवाई गई। सरकार बनने के बाद भी पायलट को पूरा सम्मान दिया जा रहा है। किसी भी बैठक में पायलट को अशोक गहलोत अपने पास ही बैठाते हैं। यह बात अलग है कि गृह और वित्त जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों से पायलट को दूर रखा गया है। अखबारों में पायलट के विभागों के विज्ञापन भी प्रकाशित नहीं हो रहे हैं। सूत्रों की माने तो विज्ञापनों में मुख्यमंत्री का फोटो लगाया जाना जरूरी है इसलिए पायलट के विभागों से संबंधित विज्ञापन प्रकाशित नहीं करवाए जा रहे हैं। गत माह पायलट ने पंचायतीराज विभाग के एक विज्ञापन अखबारों में प्रकाशित करवाया था लेकिन इस विज्ञापन में मुख्यमंत्री का फोटो नहीं था। अकेले सचिन पायलट का फोटो होने की वजह से आपत्ति हुई और इस एक विज्ञापन के बाद पायलट से संबंधित किसी भी विभाग का विज्ञापन अखबारों में प्रकाशित नहीं हुआ।
एस.पी.मित्तल) (12-03-19)
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