दूसरे दिन भी भोले बाबा की शरण में रहे प्रधानमंत्री मोदी।
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Sp mittal
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May 19, 2019
दूसरे दिन भी भोले बाबा की शरण में रहे प्रधानमंत्री मोदी।
आलोचना करने वाले भी ऐसी पहल कर सकते थे।
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19 मई को जब बनारस संसदीय क्षेत्र में मतदान हो रहा था, तब यहां से भाजपा के उम्मीदवार और देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भोले बाबा की शरण में थे। चूंकि मोदी ने गुजरात के अहमदाबाद में अपने मताधिकार का उपयोग कर लिया था, इसलिए 19 मई को बनारस में वोट नहीं डाला। मोदी 18 मई को ही केदारनाथ धाम पहुंच गए थे। रात भर गुफा में ध्यान करने के बाद मोदी ने सुबह एक बार फिर केदारनाथ मंदिर में पूजा अर्चना की। इसके बाद मोदी बद्रीनाथ धाम आ गए। मोदी ने केदारनाथ मंदिर परिसर में पत्रकारों से संवाद भी किया। एक पत्रकार का सवाल था कि आपने भोले बाबा से क्या मांगा? इस पर मोदी ने कहा कि मैं यहां कुछ मांगने नहीं आया हंू। बाबा ने मुझे देने लायक बना दिया है अब देश के लिए कुछ करने का मेरा दायित्व है। मोदी का यह जवाब दर्शाता है कि वे लोकसभा चुनाव के परिणाम को लेकर आश्वस्त है। जहां विपक्षी दलों के नेता जोड़ तोड़ की राजनीति में लगे हुए हैं, वहीं मोदी भोले बाबा की शरण में हैं। मोदी की इस धार्मिक यात्रा को लेकर कुछ राजनेता आलोचना कर रहे हैं। आलोचना करने वालों का कहना है कि मोदी धार्मिक यात्रा की आड़ में चुनाव प्रचार कर रहे हैं। चूंकि लोकसभा चुनाव के अंतिम दौर का मतदान 19 मई को होना था, इसलिए मोदी ने धार्मिक यात्रा कर प्रचार पाने का प्रयास किया है। यह सही भी है कि जब मोदी 18 मई को केदारनाथ धाम गए और रात को गुफा में ध्यान लगाया तो सभी प्रचार माध्यमों पर मोदी छाए रहे। मोदी ने जिस तरह से सनातन संस्कृति के अनुरूप पूजा अर्चना की उसका असर निसंदेह 59 संसदीय क्षेत्रों के मतदाताओं पर हुआ होगा। लेकिन सवाल उठता है कि मोदी ने जो धार्मिक यात्रा की वैसी यात्रा आलोचना करने वाले राजनेता भी कर सकते थे। यदि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी किसी धार्मिक स्थल पर जाकर पूजा पाठ करते तो उन्हें कौन रोका रहा था? असल में नरेन्द्र मोदी की रणनीति का मुकाबला करने में विपक्ष विफल रहा है। जब मोदी कोई कार्य कर देते हैं तब विपक्षी दल चेतता है। लोकसभा चुनाव का प्रचार अभियान 17 मई को सायं पांच बजे समाप्त हुआ। मोदी 18 मई को केदारनाथ धाम जाएंगे इसकी रणनीति बहुत पहले से बन गई थी। चुनाव आयोग ने भले ही 17 मई की शाम को प्रचार पर रोक लगा दी हो, लेकिन केदारनाथ धाम जाने की वजह से सभी मीडिया माध्यमों पर मोदी छाए रहे। यह कहा जा सकता है कि कि रोक के बाद भी मोदी का प्रचार अभियान जारी रहा। ऐसी पहल विपक्षी दलों के नेता भी कर सकते थे। लेकिन आम चुनाव को लेकर मोदी और भाजपा ने जो रणनीति बनाई वैसी रणनीति विपक्षी दलों के नेता नहीं बना पाए। असल में गत वर्ष विपक्षी दलों ने भाजपा के खिलाफ महागठबंधन बनाने की घोषणा की थी, लेकिन लोकसभा चुनाव आते आते विपक्ष का महागठबंधन टुकड़े टुकड़े हो गया। यूपी में जहां सपा-बसपा के गठबंधन में कांगे्रस शामिल नहीं हुई वहीं पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी एकला चलो की नीति पर कायम रही। राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, गुजरात आदि राज्यों में कांग्रेस प्रमुख विपक्षी दल के रूप में उभरी लेकिन बंगाल, उड़ीसा, तमिलनाडु, कर्नाटक, बिहार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना आदि राज्यों में कांग्रेस की स्थिति बेहद कमजोर रही। जो राजनीतिक दल दिल्ली में राहुल गांधी के साथ मंच सांझा करते रहे, उन्होंने अपने प्रभाव वाले प्रदेश में कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं किया। विपक्ष के टुकड़े टुकड़े हो जाने का लाभ लोकसभा के चुनाव में भाजपा को मिला है।