आखिर कौन खराब कर रहा है कॉलेज कैम्पसों का माहौल। जेएनयू में अब कश्मीर के साथ फिलीस्तीन की आजादी के भी पोस्टर लगे।

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आखिर कौन खराब कर रहा है कॉलेज कैम्पसों का माहौल।
जेएनयू में अब कश्मीर के साथ फिलीस्तीन की आजादी के भी पोस्टर लगे।
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दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के परिसर में दो मार्च को कश्मीर और फिलीस्तीन की आजादी को लेकर पोस्टर लगाए गए। यूनिवर्सिटी प्रशासन ने जानकारी मिलते ही सुरक्षाकर्मियों को पोस्टर हटाने के आदेश दिए, लेकिन 3 मार्च को भी ऐसे विवादित पोस्टरों को हटाया नहीं जा सका। यूनिवर्सिटी के सुरक्षाकर्मियों में इतनी हिम्मत नहीं कि वे ऐसे पोस्टरों को हटा सके। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस यूनिवर्सिटी के हालात कैसे हैं? पिछले कुछ दिनों से दिल्ली और दूसरे शहरों के कॉलेजों के कैम्पसों के हालात भी बिगड़ रहे हैं। अभिभावक अपने बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए कॉलेज की यूनिवर्सिटीज में भेजते हैं। कोई भी अभिभावक यह नहीं चाहेगा कि उसका बेटा या बेटी पढ़ाई छोड़कर कश्मीर और फिलिप्सतीन की आजादी के लिए आंदोलन करे। लेकिन फिर भी एक सुनियोजित षडय़ंत्र के तहत देश में ऐसा माहौल खड़ा किया जा रहा है, जिससे लगे कि कॉलेजों में पढऩे वाले युवा भी कश्मीर की आजादी चाहते हैं। यदि विद्यार्थियों के बीच आम राय ली जाए तो 98 प्रतिशत पढ़ाई करना चाहते हैं। कश्मीर अथवा फिलिस्तीन को आजादी मिले या नहीं इससे पढऩे वाले बच्चों को कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन मात्र 2 प्रतिशत विद्यार्थियों की वजह से कॉलेज कैम्पसों का माहौल बेवजह खराब हो रहा है। सब जानते हैं कि पिछले दिनों वामपंथी रुझान वाले डेमोक्रेटिक स्टूडेंट यूनियन (डीएसयू) की ओर से कार्यक्रम भी आयोजित किया गया था। यह कार्यक्रम संसद हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी दिए जाने के खिलाफ रखा था। इस कार्यक्रम को लेकर खुलेआम देश विरोधी नारे भी लगाए गए। तब यह बात सामने आई कि जेएनयू में हुए इस हंगामे के पीछे कश्मीर के अलगाववादियों का हाथ है। समझा जा सकता है कि देश के हालात कितने बिगड़ रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि कॉलेजों में पढऩे वाले कुछ बच्चों के पीछे देश को तोडऩे वाली ताकतें खड़ी हुई है। यदि जेएनयू में कश्मीर की आजादी को लेकर पोस्टर लगते हैं तो क्या यह नहीं माना जाएगा कि देश को तोडऩे वाली ताकतें सक्रिय हैं। गंभीर बात तो यह है कि जब ऐसे तत्वों के खिलाफ कार्यवाही की जाती है तो अभिव्यक्ति की आजादी का मुद्दा उठा दिया जाता है। समझ में नहीं आता कि कश्मीर की आजादी की बात कहकर कौनसी अभिव्यक्ति व्यक्त की जा रही है।
(एस.पी.मित्तल) (03-03-17)
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